November 23, 2024

राग रतलामी- रिटायर्ड मास्टरों के बकाया वेतन भुगतान में लाखों का गडबडझाला,चुप्पी साधे बैठे है शिक्षा विभाग के आला अफसर

-तुषार कोठारी

रतलाम। सरकारी महकमों के कारिन्दे कितने लापरवाह हो सकते है,इसका ताजा उदाहरण पढाई लिखाई वाले महकमे में सामने आया है। कहते है कि यही महकमा देश का भविष्य निर्माण करता है,लेकिन इसी महकमे के कारिन्दे इतने लापरवाह निकले कि शिक्षकों के बकाया वेतन की रकम में लाखों का गडबडझाला कर डाला। किसी को वेतन की राशि दी ही नहीं, किसी को आधी दी और किसी को दुगुनी दे डाली। जिन्हे अपने वेतन की राशि नहीं मिली अब वे महकमे के चक्कर लगा रहे हैं और महकमे के जिम्मेदार इस गडबडी पर किसी तरह परदा डालने के चक्कर में लगे हुए है।
मामला काफी पुरानी रकम का था। हुआ यूं था कि सरकारी मदद से चलने वाल निजी स्कूलों की सरकारी मदद दिग्गी राजा के जमाने में बन्द कर दी गई थी। इससे नाराज शिक्षकों ने सबसे बडी अदालत का दरवाजा खटखटाया और देश की सबसे बडी अदालत ने सरकार को हुक्म सुना दिया कि शिक्षकों के वेतन की बकाया राशि उन्हे चुकाई जाए। शिक्षक खुश हो गए,क्योंकि उन्हे लाखों रुपए मिलने वाले थे। अदालत के हुक्म पर सरकार ने तमाम जिलों को बकाया वेतन की रकम भी भेज दी ताकि शिक्षकों को उनकी राशि चुकाई जा सके। सूबे के तमाम जिलों के साथ रतलाम को भी लाखों रुपए भेजे गए।
लेकिन रतलाम का शिक्षा महकमा अनोखा साबित हुआ। जिले के तमाम सरकारी मदद वाले निजी ्सकूलों ने महकमे को उन शिक्षकों की सूचि भेज दी जिनकी रकम का भुगतान होना था। लिस्ट के साथ यह भी बताया गया था कि किस शिक्षक को कितनी राशि दी जाना है। रतलाम के शिक्षा विभाग के कारिन्दों ने स्कूलों से भेजी हुई लिस्ट को तो कूडेदान में फेंक दिया और मनमर्जी से शिक्षकों के खाते में राशि डाल दी। जब शिक्षकों ने अपने खाते देखें तो वे भौचक्के रह गए। किसी को बकाया रकम से आधी रकम ही मिली थी और किसी को तो आधी भी नहीं मिली थी। कुछेक तो ऐसे भी थे जिन्हे बकाया रकम की दुगुनी राशि दे दी गई थी। जिन्हे बकाया राशि की आधी या कम राशि मिली थी,वे सब ऐसे शिक्षक थे जो अपनी नौकरी पूरी करके अब सेवानिवृत्ति का समय गुजार रहे हैं। ऐसे लोगों की तादाद तीन दर्जन से ज्यादा है जिन्हे दो दो लाख रु. कम मिले है। यानी कि शिक्षा विभाग के बाबूओं ने पचास लाख से ज्यादा का घोटाला कर दिया।
रिटायर्ड मास्टरों की रकम डकार कर बैठे शिक्षा विभाग के अफसर और बाबू अब चुप्पी साधे बैठे है। महकमे के सबसे बडे साहब से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होने बडी मासूमियत से बताया कि सभी को पूरा भुगतान किया जा चुका है और किसी की कोई राशि बकाया नहीं है। दूसरी तरफ करीब तीन दर्जन रिटायर्ड मास्टर हैरान है कि उनकी मेहनत की कमाई आखिर कहां गुम हो गई। मास्टर महकमे को अपनी शिकायतें भी दर्ज करवा चुके है,लेकिन महकमे के साहब कह रहे हैं कि उन्हे किसी ने कोई शिकायत ही नहीं की। जिन्हे अपनी रकम नहीं मिली है वे यह सोच सोच कर परेशान है कि महकमें के कारिन्दे कहीं गांजा भांग आदि का प्रयोग करने के बाद तो काम नहीं करते? ऐसा तभी संभव है जब काम करने वाला पिनक में हो। तभी तो किसी को आधी रकम और किसी को दुगुनी रकम का भुगतान कर दिया जाए। रिटायर्ड मास्टरों को अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर उन्हे उनकी मेहनत की कमाई कैसे मिलेगी?

जाते जाते भी कमाल……

आदिवासियों के महकमें में सोशल मीडीया पर स्टेट्स स्टेट्स खेलने वाले चर्चित साहब को कर्मचारियों की नाराजगी महंगी पड गई और उन्हे बडा बेआबरु होकर बिदा होना पडा। महकमे के कर्मचारियों ने पहले तो उनके खिलाफ मोर्चा खोला,फिर जिला इंतजामियां को ज्ञापन देकर जम कर नारेबाजी भी की। आखिरकार सरकार ने बडे साहब को फौरन रवाना करना ही ठीक समझा। जब साहब की रवानगी का परवाना आ गया,तब भी साहब कमाल दिखाने से नहीं चूके। उन्हे जाना था इसलिए उन्होने अपना चार्ज एक ऐसी अफसर को दे दिया,जिसे चार्ज दिया ही नहीं जा सकता था। कनिष्ठ स्तर की अधिकारी को उन्होने ना सिर्फ चार्ज दिया,बल्कि उक्त अधिकारी ने इस दौरान ऐसे काम करवा दिए,जिसके लिए अभी वे अधिकृत ही नहीं थी। हांलाकि जैसे ही जिला इंतजामियां के बडे साहब को इस बात की खबर लगी उन्होने फौरन इस गडबडी को दुरुस्त किया और एक बडे अफसर को महकमे की कमान सौंप दी। आदिवासी महकमे में अब इस बात की चर्चा है कि जाते जाते जो कमाल साहब दिखा गए,इस पर उनके खिलाफ कोई कार्यवाही होगी या नहीं…?

कोरोना का कहर मीडीया पर

कोरोना ने वैसे तो हर वर्ग,हर तबके पर अपना बुरा असर डाला,लेकिन लोगों को कोरोना के खिलाफ जंग में जागरुक करने के काम में लगे मीडीयाकर्मियों पर भी कोरोना का कहर जम कर बरपा है। कोरोना काल खबरचियों के लिए बहुत बुरा साबित हुआ है। तमाम बडे अखबारों ने कोरोना कहर के चलते स्टाफ में कटौती करना शुरु कर दिया है। इसका असर लोकल लेवल पर भी नजर आने लगा है। बडे अखबारों के कई मीडीयाकर्मियों को छुट्टी दे दी गई है। जिला मुख्यालय पर चलने वाले अखबारों के दफ्तर अब सूने सूने हो गए है।

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