राग रतलामी/ निगम में है दरबार,तो पानी के लिए मचता रहेगा हाहाकार,समाप्ति की ओर किसान नेता की कहानी
-तुषार कोठारी
रतलाम। त्राहि त्राहि,हाहाकार,एक्यूट वाटर स्केरसिटी जैसे तमाम शब्द रतलाम के सन्दर्भ में अपने अर्थ खोने लगे है। ये सारे शब्द अब छोटे पडने लगे है। पानी के लिए तरसते लोगों को अब यह समझाया जा रहा है कि ये जरुर उनके अपने ही पापों का नतीजा है कि शहर पानी की बूंद बूंद को तरस रहा है। जब कुछ समझदारों ने पानी की समस्या का कारण ढूंढने की शुरुआत की,तो नए नए तथ्य सामने आए। पता चला कि ढोलावड जलाशय में पानी की कमी नहीं है। जलाशय में इतना पानी है कि पूरी गर्मियों में शहर की प्यास बुझाई जा सके। तो फिर वजह क्या है? आगे बढे तो लगा कि पाइप लाइन और मशीनरी की गडबडी है। लेकिन फिर पता चला कि पाइप लाइन और मशीनरी की गडबडियां तो अक्सर होती रहती है। उन्हे समय पर ठीक नहीं कर पाना समस्या की जड है। फिर पता चलता है कि उन्हे ठीक भी समय से किया जा सकता है,लेकिन खास समस्या व्यवस्था की है। मशीनरी को ठीक करने के लिए जरुरी उपकरणों को हासिल करने के लिए बडे साहब से परमिशन मिलने में ही इतनी देरी हो जाती है कि हर दिन हजारों घरों के बर्तन खाली रह जाते है। रुपए दो रुपए के नट बोल्ट खरीदने के लिए भी नोटशीट चलाना पडती है। उस पर आदेश होने में दिन नहीं हफ्ते लगते है।
बडे साहब दरबार है। वो दूसरी बार रतलाम में आए है। या कहिए तीसरी बार। पहली बार वो जब आए थे,तब कोई गडबड नहीं थी। जब दोबारा आए,तो जनाब बदले बदले से थे। तब तक भी मामला ठीक ठीक था। लेकिन बात तब बिगडी जब जिले की बडी मैडम ने अपने चहेते बडे बाबू को रतलाम में बुलवा लिया और उन्हे एकतरफा चार्ज भी दिलवा दिया। बस यही बात दरबार को खटक गई। फिर उन्होने ऐसे दांव पेंच दिखाए कि निगम की कुर्सी पर फेविकोल जमा कर टिक गए। अब वो पहले से कई गुना खतरनाक हो चुके है। उन्हे अब किसी का कोई डर नहीं है। उन्हे उनकी मर्जी के बगैर अब हटाया नहीं जा सकता। उनके साथ जो कुछ हुआ उसका खामियाजा अब पूरा शहर भुगतने को मजबूर है। वो दिखाना चाहते है कि शहर को परेशान करने में वो कितने सक्षम है। यही वजह है कि जब जब व्यवस्था गडबडाती है,उन्हे मजा आता है। व्यवस्था को वो सुधरने नहीं देते। पूरा शहर हलाकान है और दरबार मजे में है। अब जाकर शहर के बाशिन्दों को समझ में आ रहा है कि यह उन्ही के पापों का नतीजा है। अगर पाप नहीं किए होते तो दरबार की जगह कोई व्यवस्थित अफसर कमान संभालता और तब लोग इस तरह पानी के लिए तरसते नहीं होते। कोढ में खाज ये है कि गर्मियों के इसी मौसम में आचार संहिता का डंडा भी चल रहा है। नेताओं की सारी ताकत चुनाव आयोग ने जब्त कर ली है। दरबार को रोकने टोकने वाला अब कोई नहीं। हांलाकि जिनके हाथों में जनता ने नगर निगम की चाबी दी थी,वो भी ऐसे नहीं थे कि शहर का भला कर पाते।
कुल मिलाकर ये गर्मियां,रतलाम के इतिहास में सबसे खतरनाक गर्मियां साबित होने वाली है,जब शहर के लोग पूरे तीन चार महीनों तक पानी के लिए हाहाकार करते हुए पाए जाएंगे। इसे रोकने का कोई दूसरा उपाय भी नजर नहीं आता। प्यास से तरसते लोग सडक़ों पर उतरे तब शायद कोई नतीजा निकलेगा। लेकिन तब तक तो बस हाहाकार ही होगा।
समाप्ति की ओर किसान नेता की कहानी
अभी कुछ ही महीनों पहले तक यह माना जा रहा था कि रतलाम में प्रदेशस्तर का किसान नेता तैयार हो गया है। पंजा पार्टी के नेता भी बडे खुश थे कि उन्हे एक बेहतरीन नेता मिल गया है। युवा किसान नेता की कहानी एक निजी अस्पताल से शुरु हुई थी। अस्पताल के मालिक को अपने गांव वाले कर्मचारी पर बडा भरोसा था। इसी भरोसे के चक्कर में अस्पताल मालिक ने कई महंगे भाव की जमीनें अपने कर्मचारी के नाम पर ले डाली थी। लेकिन बाद में पता चला कि कर्मचारी ने मालिक को जमकर चूना लगाया और जमीनें हथिया ली। अस्पताल मालिक डाक्टर ने कर्मचारी को नौकरी से तो निकाला ही,पुलिस में केस भी बनवा दिए। लेकिन कर्मचारी चतुर था। उसने डाक्टर से कमाए पैसों को राजनीति में निवेश किया। जिला पंचायत का चुनाव लडा और जीता भी। फिर जिला पंचायत के उपाध्यक्ष पद पर भी कब्जा कर लिया। उधर अपने बेईमान कर्मचारी की बढती हैसियत से डाक्टर को जलन होने लगी तो डाक्टर ने भी राजनीति में उतरने की ठानी और अपनी डाक्टर पत्नी को शहर का प्रथम नागरिक बनवा दिया। उधर कर्मचारी से किसान नेता में तब्दील हो चुके युवा नेता ने उग्र किसान आन्दोलन भडका दिया और पंजा पार्टी के बडे नेताओं में उसकी गिनती होने लगी। पंजा पार्टी के नामदार तक ने इस इलाके का दौरा कर लिया। विधानसभा चुनाव में किसान नेता को पंजा पार्टी से टिकट मिलने की पूरी उम्मीद थी। लेकिन टिकट मिला नहीं। खैर….। किसान आन्दोलन में युवा किसान नेता पर हत्या के प्रयास का केस भी दर्ज हो गया था। उस केस का अब तक निराकरण हुआ नहीं है,लेकिन उससे पहले ही अदालत ने किसान नेता का कहानी पर फुल स्टाप लगा दिया। पुराने मालिक के ट्रैक्टर की धोखाधडी के मामले में अदालत ने किसान नेता को दस साल के लिए जेल भेज दिया है। कहानी अब समाप्ति की ओर है। कहानी समाप्त होने से पंजा पार्टी के एक धडे में खुशी का माहौल है।