November 23, 2024

राग रतलामी/ जावरा के जमीनखोरों पर कसी नकेल,अब रतलाम के जमीनखोरों पर नजरें….

-तुषार कोठारी

रतलाम। जिले के जावरा में जमीनखोरों के लिए बुरा वक्त शुरु हो गया है। जमीनखोरों के लिए जो बुरा वक्त है,वहीं आम लोगों के लिए अच्छा वक्त साबित होता है। नियम कायदों को ताक पर रखकर अवैध कालोनियां बनाने वाले छ: जमीनखोर पहले दौर में इंतजामियां की चपेट में आए है। बडी बात ये है कि इनमें फूल छाप के दो बडे नेता भी शामिल है। बडे मगरमच्छों को दबोचने की इस कार्यवाही के लिए लोग जावरा का इंतजामियां संभाल रहे युवा अफसर की हिम्मत को दाद दे रहे हैं वरना सियासत में बडी हस्ती रखने वालों को दबोचना आसान काम नहीं होता।
वैसे तो हर शहर में जमीनखोरों का अपना रौब दाब होता है। ये जमीनखोर सरकारी नियम कायदों को ताक पर रखना अपना हक समझते है,और इनके चंगुल में फंसा आम आदमी बुरी तरह धोखा खाने के बाद भी इनका कुछ नहीं बिगाड पाता। जमीनखोरों का रसूख इतना होता है कि ना तो अफसर इनके खिलाफ कोई कार्यवाही कर पाते है,ना नियम कायदे इन्हे रोक पाते हैं। सडक़ों पर प्लाट काट देना,बगीचों को गायब कर देना,एक प्लाट,दो दो लोगों को बेच देना, इस तरह की जादुगरी इन जमीनखोरों के लिए बायें हाथ का खेल होता है। जो आम आदमी इस धोखाधडी का शिकार बनता है,वह अपनी किस्मत को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर पाता। यही नहीं,जमीनखोर आम आदमी को सब्जबाग भी बडे बडे दिखाते है और बडे बडे सब्जबाग दिखाकर जमीनों की कीमतें आसमान में पंहुचा देते है। कौडियों को दाम वाली जमीनों को बेहद उंचे दामों पर आम आदमी को बेच कर बडा मुनाफा कमाना जमीनखोरों का शगल होता है। अच्छी सुख सुविधाओं की आस में उंची कीमतों पर जमीनें खरीद कर अपने घर का सपना पूरा करने के लिए आम आदमी जब ऐसी किसी कालोनी में पंहुचता है,तब उसे असलियत का पता चलता है,कि उसे जितने भी सब्जबाग दिखाए गए थे,सब के सब झूठे थे। लेकिन तब तक आम आदमी अपनी मेहनत की कमाई जमीनखोरों को सौंप चुका होता है और उसके पास हाथ मलने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचता।
लेकिन जावरा के नए साहब ने बडे रसूखदार जमीनखोरों को कानूनी जाल में बान्ध दिया है,इससे हजारों आम आदमी धोखाधडी से बच जाएंगे। जिन जमीनखोरों को सरकार ने दबोचा है,उनमें सत्तासीन फूल छाप पार्टी के दो बडे नेता शामिल है। एक तो खुद नगर पालिका के मालिक हुआ करते थे। ये नेताजी फूल छाप छोडकर निर्दलीय चुनाव लडे थे और जीते भी थे। जीतने के बाद फूल छाप पार्टी ने इन्हे फिर से अपना लिया था। दूसरे बडे नेताजी फूल छाप पार्टी में जिले के बडे नेता थे। हांलाकि ये नेताजी खुद इसमें मुलजिम नहीं है,लेकिन इनके सुपुत्र भी फूलछाप पार्टी के नेता है। धोखाधडी के मामले नेताजी के पुत्र के खिलाफ दर्ज किए गए हैं।
बहरहाल,जिले के जावरा जैसे स्थान पर इस तरह की कार्यवाही हो सकती है,तो अब सवाल ये पूछा जा रहा है कि जिला मुख्यालय पर ऐसी कार्यवाही क्यों नहीं हो सकती। रतलाम के जमीनखोर तो जावरा के जमीनखोरों से कहीं ज्यादा बडे हैं। इन्ही की बदौलत जमीनों की कीमतें इन्दौर और मुंबई को पीछे छोडने लगी है। रतलामी जमीनखोरों की जादूगरी तो और भी बडी है। सैलाना रोड पर अभी एक कालोनी को रेरा का अप्रुवल मिला नहीं है,लेकिन कालोनी के तमाम प्लाट पहले ही बिक चुके है। शहर में ऐसी दर्जनों कालोनियां है,जहां लोग रहने भी लगे,लेकिन कालोनी का काम पूरा ही नहीं हुआ है। कालोनियों की सडक़ें,बाग बगीचे न जाने क्या क्या बिक रहा है? उम्मीद की जाए कि जावरा की कार्यवाही से रतलाम का इंतजामियां भी नसीहत लेगा और रतलाम के बडे बडे रसूखदार जमीनखोरों की गडबडियों पर अंकुश लगाएगा।

पंजा पार्टी का गुनाह और इंतजामियां की अनदेखी….

शिवगढ में जब एक नन्ही बच्ची के साथ दुष्कृत्य कर उसकी हत्या करने की खबर आई,तो मुद्दों के लिए तरस रही पंजा पार्टी को जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई। नन्ही बच्ची आदिवासी थी,इसलिए पंजा पार्टी और भी उत्साह में थी। पंजा पार्टी ने इस मुद्दे पर पूरे सूबे में कानून व्यवस्था को लेकर हायतौबा मचाने की योजना बना ली। चूंकि मामला रतलाम का था,इसलिए रतलामी पंजा पार्टी वाले ज्यादा जोश मे थे। दोबत्ती पर मोमबत्तियां जलाने का प्रोग्राम बना लिया गया। भाई लोग इतने उत्साह में थे कि ना तो इंतजामियां से इसकी इजाजत ली गई और ना ही इस बात का ध्यान रखा गया कि इस तरह के मामलों में पीडीता की पहचान को उजागर नहीं किया जाता। पंजा पार्टी वालों ने मृतक बच्ची की बडी सी तस्वीर तो लगाई ही उसका नाम भी बडे बडे लफ्जों में लिखा। पंजा पार्टी के तमाम बडे नेता,भैया से लेकर आपा तक सब इसमें शामिल हुए। खबरचियों ने इस मुद्दे को हाथोंहाथ उठाया,कि बच्चों के साथ दुष्कृत्य वाले मामलों में पीडीत की पहचान उजागर करना भी किसी अपराध से कम नहीं होता। यह मुद्दा भी उठाया गया कि कोरोना काल में बिना इजाजत प्रदर्शन कैसे कर लिया गया? लेकिन ना तो फूल छाप के नेताओं की सुस्ती उडी और ना ही इंतजामियां या वर्दी वालों ने इस पर ध्यान देने की कोशिश की। अब सवाल यह पूछा जा रहा है कि देश में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की कोई अहमियत है भी या नहीं?

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