November 24, 2024

राग रतलामी/ एक जनाजे ने शहर को धकेल दिया डर के साये में,जिनकी वजह से आई कठिनाई वे ही जुटे है जांच में

-तुषार कोठारी

रतलाम। दो दिन पहले तक सबकुछ ठीक था। सब खुश थे कि कोरोना से बचे हुए थे। लेकिन अचानक पूरा सीन बदल गया। एक जनाजे ने पूरे शहर को डर के साये में धकेल दिया। शहर इस धक्के से उबर पाता कि इससे पहले ही एक महाशय कोरोना पाजिटिव भी निकल आए। लेकिन बडा खतरा अभी टला नहीं है। जनाजे में शामिल लोगों की रिपोर्ट अब तक आई नहीं है। बडा खतरा तो वहीं है। सवाल ये है कि शहर पर ये खतरा किसकी लापरवाही से मण्डरा रहा है। जिले की सीमाएं सील हो,तो कैसे कई लोग एक मृत शरीर के साथ शहर के भीतर आ सकते है? उन्हे रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी?
ये सब कुछ हो ही गया था। अचानक खबरचियों को इस बात की भनक लगी कि शहर में इतना बडा काण्ड हो गया है। जैसे ही यह मामला खबरचियों ने उठाया सरकारी अमला फार्म में आया और आनन फानन में पूरे इलाके को सील कर दिया गया। इलाके के डेढ सौ लोगों को वहां से दूसरी जगह पंहुचा दिया गया।

लेकिन इस बात पर कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं है कि किसकी लापरवाही से ये सबकुछ हो गया। जब मामले ने तूल पकडा तो वर्दी वालों ने दो दर्जन से ज्यादा लोगों के खिलाफ मामले दर्ज कर लिए। ये वो लोग थे,जो जनाजे में शामिल हुए थे। लेकिन जनाजा निकलने के चार दिन बाद तक पूरे सरकारी इंतजामिया को इसकी भनक नहीं लगी ये किसकी गलती थी? इन चार दिनों में जनाजे में शामिल लोग बेखटके शहर में घूम रहे थे। इनमें से एक तो भोजन के पैकेट बांटने की ड्यूटी भी कर रहा था।
सवाल ढेरों है। इन्दौर से रतलाम का रास्ता डेढ सौ किमी लम्बा है। बडी मैडम ने अपनी बला टालने के लिए फौरन सूबे के बडे साहब को पत्र लिख मारा। उनका सवाल ये था कि इन्दौर से लोग निकले कैसे? लेकिन रतलाम वालों का सवाल ये है कि लोग रतलाम में घुसे कैसे? इन्दौर से रतलाम आने में पहले सातरुण्डा की चौकी पडती है फिर टोल गेट है उसके बाद सालाखेडी पुलिस चौकी है उसके बाद शहर के चौराहे है,सड़कें है। हर कहीं पुलिस तैनात है। इतना ही नहीं,शहर में आने के बाद लोहार रोड से कब्रिस्तान के बीच में हाट की चौकी वाली पुलिस चौकी भी है। इन सबको पार करके ही सुपुर्द ए खाक की रस्म अदा की जा सकती है। ये रस्म पूरी हो गई तीन दिन भी गुजर गए। इसके बाद मोहल्ले के लोगों ने खबर दी तब कहीं जाकर प्रशासन को जानकारी मिली कि शहर में इतनी बडी मुसीबत आ चुकी है।
लेकिन जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है। बडे साहब लोग अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड कर जांच के आदेश जारी कर चुके है। उनके पास कई तरह की व्यस्तताएं है। हर रोज जिले की सीमाएं सील करने के नए नए आदेश निकाले जा रहे है। अब तो कफ्र्यू का आदेश भी निकल चुका है।

सारे समझदारों की निगाहें इस पर टिकी है कि जनाजे में शामिल लोगों की रिपोर्ट्स क्या आती है? आशंका तो यही है कि इनमें से कई या कुछ की रिपोर्ट्स पाजिटिव आ सकती है। अगर ऐसा हो गया तो तय मानिए कि जिले को कई दिनों की कठिनाईयां झेलना पडेगी। लेकिन इस सवाल का जवाब फिर भी नहीं मिल पाएगा कि कई दिनों की ये कठिनाईयां किसकी वजह से आई है। जो समझते है उनको लगता है कि जिनकी वजह से कठिनाई आई है,वे ही इसकी जांच में जुटे है।

असली बनाम नकली अधिमान्य

राज्य सरकार वास्तविक पत्रकारों को अधिमान्यता देती है और उन्हे अधिमान्य पत्रकार कहा जाता है। लेकिन जिले के कई जिम्मेदार अफसरों को इस बात की जानकारी ही नहीं है। इसी का नतीजा है नकली अधिमान्य पत्रकार के नाम पर एक साथ बीस कफ्र्यू पास जारी कर दिए जाते है। आदेश में साफ लिखा जाता है कि अधिमान्य पत्रकार के आवेदन पर ये पास जारी किए गए है। शहर के असली अधिमान्य पत्रकार हैरान है कि उनके कहने पर तो अफसर एक पास जारी करने को राजी नहीं होते,लेकिन नकली के लिए बीस बीस पास जारी कर देते है। फर्जी अधिमान्य के लिए पास जारी करने का यह आदेश सोशल मीडीया पर इन दिनों काफी वायरल है और प्रशासनिक समझदारी का प्रदर्शन कर रहा है।

समझ की कमी

किस्सा कुछ यूं था कि एक फूल वाली और एक मच्छी वाली की दोस्ती हो गई। किसी दिन किसी वजह से फूल वाली को मच्छी वाली के घर रुकना पड गया। वह रात भर सो नहीं पाई क्योंकि उसे मच्छी की दुर्गन्ध आती रही। एक दिन मच्छी वाली को फूल वाली के घर रुकना पड गया। वह भी रात भर सो नहीं पाई,क्योंकि वहां रात भर फूलों की सुगन्ध आ रही थी। लेकिन ये किस्सा,रतलाम के अफसरों ने नहीं सुना था। आस पास की देखा देखी उन्होने भी कई सारे मैरिज गार्डन अधिगृहित कर लिए थे। फिर जैसे ही जरुरत पडी डेढ सौ लोगों को शहर के दो अच्छे मैरिज गार्डन में क्वारन्टाइन कर दिया गया। दो दिन तक बवाल होता रहा। जिन्हे रुकवाया गया था,वे भी परेशान थे और उनकी वजह से आसपास के लोग भी परेशान थे। आखिरकार तीन बसों में भर कर तमाम क्वारन्टीन लोगों को एक अच्छे मदरसे में पंहुचाया गया। तब जाकर मामला शान्त हो पाया। इसी को कहते है समझ की कमी। अगर मच्छी वाली और फूल वाली की कहानी पहले पता होती तो ये फिजूल की मशक्कत तो सरकार को नहीं करना पडती……।

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