मक्का मदीना में मिलते हैं शिवपूजा के प्रमाण
पुरातत्व एवं इतिहास संस्कृति पर वैचारिक संगोष्ठी
उज्जैन,07 जनवरी(इ खबरटुडे)। शैव महोत्सव में सनन्दन व्यासपीठ बालमुकुन्द आश्रम झालरिया मठ में आयोजित वेचारिक संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र में पुरातत्व एवं इतिहास संस्कृति पर विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित ने की, डॉ.सीताराम दुबे मुख्य वक्ता एवं डॉ.मुकेश शाह विषय प्रवर्तक की भूमिका में रहे। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री उमेशनाथ महाराज थे।श्री उमेशनाथ महाराज ने भारतीय संस्कृति को महान बताते हुए कहा कि भारतभूमि पर मर्यादा पुरूषोत्तम राम का जन्म हुआ, इसलिये यह संस्कृति अदभुत है। आज के बदलते युग में हमें पाश्चात्य संस्कृति से दूर होकर अपनी मूल संस्कृति की ओर जाने की आवश्यकता है। सन्यासियों को आमजन को भारत की मूल संस्कृति से अवगत कराने का दायित्व लेना चाहिये। भारतीय संस्कृति का संरक्षण और मानव समाज में मर्यादा का निरन्तर सूत्रपात होना अत्यावश्यक है।
विषय प्रवर्तक डॉ.मुकेश शाह ने पत्थरों को ईश्वर मानकर पूजने की परम्परा पर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने बताया कि मक्का मदीना में भी शिवपूजा के प्रमाण मिलते हैं। शिव का स्वरूप ताबीज के रूप में भी मिलता है। उन्होंने कहा कि आर्यों के समय भी लिंगपूजा होती थी। शिव जिन्हें महेश्वर भी कहा जाता है, की पूजा के प्रमाण सिंधुघाटी सभ्यता से भी प्राप्त होते हैं। सिंधु व वैदिक सभ्यता समकालीन है। पुराणों से शैव धर्म का व्यापक रूप प्राप्त होता है कुछ पुराण शैव मत के प्रतिपादक हैं।
मुख्य वक्ता डॉ.सीताराम दुबे ने कहा कि आज जो सभ्यता है, सारस्वत शैव सभ्यता है। उन्होंने कहा कि शासक कितना ही मूर्ख क्यों न हो वह शासित को ही मूर्ख समझता है। रामकथा की कहानी की व्याख्या व्यक्ति की मनोदशा पर निर्भर करती है। पुरातत्व एवं इतिहास संस्कृति की व्याख्या करते हुए कहा कि 1500 ईसापूर्व वैदिक साहित्य की रचना की गई थी।
सत्र के अन्त में महिदपुर के प्रो.डॉ.आरसी ठाकुर ने प्राचीन मुद्राओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मूर्ति के पहले भगवान शिव की कृति सिक्कों पर बनाई गई थी। प्राचीन नगरी उज्जयिनी से प्राप्त सिक्कों पर भी सिंधुघाटी सभ्यता की तरह शिव की मुद्राएं प्राप्त होती हैं। शिव योगी, तांडव, सदाशिव जैसे सैंकड़ों प्रकार के रूपों में प्राचीन मुद्राओं पर अंकित हैं।