November 23, 2024

भगवान श्री महाकालेश्वर को रोज भांग का प्रसाद एवं श्रृंगार अनुचित

उज्जैन,06सितम्बर(इ खबर टुडे)। भगवान शिव को भांग का नैवे द्य तथा भांग का श्रृंगार का कोई शास्त्रीय अथवा पारम्परिक प्रमाण नहीं है। यह परवर्ती व्यवस्था बन गई है। आज से 50 वर्ष पूर्व भ गवान महाकाल को केवल रक्षाबंधन पर ही भांग का भोग लगाया जाता था ,अन्य अवसरों पर नहीं। वर्तमान में आए दिन भांग का नैवेद्य तथा भांग से श्रृंगार किया जा रहा है, जो उचित नहीं है।

साथ ही बा जार से मिलने वाली भांग में अने क अम्लीय एवं क्षारीय पदार्थ मि लाए जाते हैं, जिससे शिवलिंग का क्षरण होता है। यह जानकारी विद्वत परिषद की बैठक में सामने रखी गई। उज्जयिनी विद्वत परिषद की रामजानकी मन्दिर नीलगंगा में सम् पन्न बैठक में इस तरह के निर्णय लिए गए हैं। बैठक में विद्वत परिषद के अध्यक्ष डॉ.मोहन गुप्त, डॉ.भगवती लाल राजपुरोहित, प्रो.बालकृष्ण शर्मा, पं.श्यामनारायणव्यास, डॉ .सदानन्द त्रिपाठी, डॉ.संतोष पण्ड्या उपस्थित थे।

रासायनिक रंगों एवं पदार्थों से श्रृंगार अनुचित
परिषद ने बताया कि भगवान महाकाल का रासायनिक रंगों एवं पदार्थों से विविध श्रृंगार किया जाना भी उचित नहीं है। साथ ही सेंट व स् प्रे किया जाना भी ठीक नहीं है। रासायनिक पदार्थों के लेपन एवं उनसे श्रृंगार करने से शिवलिंग का क्षरण होता है। अत: केवल चन् दन आदि प्राकृतिक एवं पवित्र वस् तुओं तथा वस्त्र आभूषणों से ही भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाना चाहिए।

शिवलिंग निरवयव और निष्कल
परिषद ने बताया कि शिवलिंग निरवयव और निष्कल होता है। लिंगा र्चन की ही शास्त्रीय विधि है। उनकी आराधना सावयव देवता के रूप में करना उचित नहीं है। अत: महा काल शिवलिंग पर प्रतिदिन अनेका नेक देवताओं की आकृतियांबनाकर श् रृंगार नहीं किया जाना चाहिए। य ह शास्त्र सम्मत नहीं है।
पुर्णिमा से श्राद्ध का प्रारंभ उचित नही
श्राद्ध पक्ष आश्विन कृष्ण प् रतिपदा से सर्वपितृ मोक्ष अमा वस्या तक माना जाना शास्त्र सम् मत है, साथ ही आश्विन शुक्ल प् रतिपदा को भी श्राद्धपक्ष में शा मिल करते हुए इस दिन भी श्राद्ध करने की परम्परा है, परन्तु पूर्णिमा से श्राद्ध का प्रारम्भ उचित नहीं है। जिनका निधन पूर्णिमा के दिन हुआ है, उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या को किया जाना विहित है। इसी प्रकार बच्चों का श्राद्ध पंचमी, सौभाग्यवति यों का श्राद्ध नवमी, शस्त्रहतों का श्राद्ध चतुर्दशी तथा सन्या सियोंका श्राद्ध द्वादशी को कि या जाना शास्त्र सम्मत है, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।

मदिरा भोग की नई परम्परा अनुचित
परिषद के सचिव डॉ.सन्तोष पण्ड्या ने बताया कि बैठक में निर्णय लिया गया कि गढ़कालिका मन्दिर में मदिरा भोग की नई परम्परा अनुचि त है। इसी प्रकार अन्य देव मन् दिरों में मदिरा की धारा का प् रसाद लगाए जाना शास्त्र सम्मत न हीं है।इसके स्थान पर प्रतीक रू प में ही मदिरा का अर्पण किया जा सकता है।

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