December 25, 2024

पेप्सिको विवाद से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का असली चेहरा उजागर-केलकर

kelkar ji

भोपाल,05 मई (इ खबर टुडे)। विगत दिनों पेप्सिको कंपनी ने गुजरात के चार किसानों पर उनके द्वारा पंजीकृत आलू की किस्म एफसी-5 का बिना कंपनी से अनुबंध किए उत्पादन पर एक एक करोड का जुर्माना वसूली का वाद अहमदाबाद की वाणिज्यिक अदालत में दायर किया था। अदालत ने कंपनी के दावे को मान्य करते हुए किसानों को उक्त आलू का उत्पादन रोकने का एकतरफा आदेश भी जारी कर दिया। गुजरात सहित पूरे देश में इस मुद्दे को लेकर भारतीय किसान संघ सहित अन्य किसान संगठनों ने व्यापक प्रतिक्रिया व्यक्त की। इस आक्रोशित प्रतिक्रिया के कारण पेप्सिको कंपनी अपने कदम वापस लेने को मजबूर हुई है।
भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभाकर केलकर ने यहां जारी एक बयान में बताया कि किसान संगठनों की आक्रोशित प्रतिक्रिया के बाद पेप्सिको कंपनी को यह भय था कि उसके उत्पादों का देशव्यापी बहिष्कार होगा,इसलिए उसने अपने कदम वापस खींचे। वास्तव में यह देश की जनता की जीत है।
श्री केलकर ने कहा कि यहां भारत के कृषि संबधी नियमो की थोड़ी जानकारी लेना उचित होगा। कृषि प्रधान देश भारत में अन्य किसानों से बीज लेना, बीज का संरक्षण करना बेचना , पुनः बोना उपयोग करना आदि किसान के मौलिक अधिकार में आता है। भारत का बौद्धिक संपदा अधिकार अधिनियम ( पी पी व्ही एफ आर) 2001 उपलब्ध है। इस अधिनियम के कारण इस क्षेत्र पर पेटेंट कानून लागू नहीं होता।
श्री केलकर ने कहा कि वास्तव में पेप्सिको कंपनी ने देश के किसानों को डरा कर सस्ती दरों पर कंपनी से किसानों का अनुबंध कराने के लिए यह अनैतिक चाल चली थी। जिसकी भारतीय किसान संघ घोर निंदा करता है।
श्री केलकर ने चेतावनी देते हुए कहा कि गुजरात के किसानों ने बहुत पहले ही कारगिल नामक कंपनी द्वारा नमक की खेती पर एकाधिकार जमाने के कुत्सित प्रयासों को अपनी संगठित शक्ति से विफल कर दिया था और कारगिल कंपनी को देश छोडने पर मजबूर कर दिया था। भारतीय किसान संघ मोनसेंटों कंपनी की कपास बीजों पर छद्म एकाधिकार जमाने के मामले में भी सफल लडाई लड चुका है। अत: इस प्रकार की षडयंत्रकारी अनैतिक नीतियों वाली कंपनियों को देश छोड देना चाहिए, अन्यथा भारतीय किसान संघ सहित देश का पूरा किसान समुदाय उन्हे मुंहतोड जवाब देने के लिए हमेशा तैयार है।
श्री केलकर ने कहा कि भारतीय किसान संघ देश की अदालतों और कानूनविदों से निवेदन करना चाहता है कि किसान एवं खेती जैसे संवेदनशील मामलों पर किसानों का पक्ष सुने बगैर निर्णय ना दें. क्योंकि खेती किसानी इस देश की आत्मा है। खेती प्राणी मात्र के जीवन सरक्षण का एकमात्र सर्वोत्तम उपाय है,उसका संरक्षण हम सब का कर्तव्य है।

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