तीन तलाक मामलाः आज भी जारी रहेगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
नई दिल्ली,17 मई (इ खबर टुडे )। तीन तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट बुधवार को भी अपनी सुनवाई जारी रखेगा। सुनवाई का पांचवां दिन है। एक दिन पहले मंगलवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने अपना तर्क रखा और तीन तलाक के मामले को आस्था का विषय बताते हुए इसकी तुलना राम के अयोध्या में जन्म लेने के विश्वास और आस्था से की। कोर्ट के समक्ष दलील दी कि तीन तलाक 1400 साल से चल रही प्रथा है। हम कौन होते हैं इसे गैरइस्लामिक कहने वाले। ये आस्था का विषय है, इसमें संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत नहीं लागू होगा।
कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर मैं यह विश्वास करता हूं कि भगवान राम अयोध्या में जन्मे थे तो यह आस्था का विषय है और इसमें संवैधानिक नैतिकता का सवाल नहीं आता। गौरतलब है कि तीन तलाक मामले पर आजकल मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। सिब्बल ने कहा कि इस्लाम की शुरुआत में कबीलाई व्यवस्था थी। युद्ध के बाद विधवा हुई महिलाओं को सुरक्षित और उनकी देखभाल सुनिश्चित करने के लिए बहुविवाह शुरू हुआ था और उसी समय तीन तलाक भी शुरू हुआ। कोर्ट कुरान और हदीस की व्याख्या नहीं कर सकता। इसकी व्याख्या उलेमा कर सकते हैं। संसद इस पर कानून बना सकती है, लेकिन कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता।
तीन तलाक वैध
कपिल सिब्बल ने एक बार में तीन तलाक को वैध बताते हुए कहा कि ये इस्लाम का हिस्सा है। कुरान और हदीस के मुताबिक ये वैध है। पैगम्बर के अनुयायियों और इमामों ने इसे सही करार दिया है। मुस्लिमों का हनफी संप्रदाय एक बार में तीन तलाक को सही मानता है और भारत में रहने वाले 90 फीसद मुसलमान हनफी हैं।
क्या निकाहनामा में इसका जिक्र हो सकता है
जस्टिस कुरियन जोसेफ ने पूछा कि अगर तीन तलाक अवांछनीय है तो क्या निकाहनामा में ये कहा जा सकता है कि तीन तलाक नहीं दिया जाएगा। उन्होंने ये भी पूछा कि क्या ये भी शामिल कराया जा सकता है कि किसी भी तरह का तलाक नहीं दिया जाएगा। इसका जवाब बोर्ड की ओर से वरिष्ठ वकील हतिम मुछाला ने दिया। मुछाला ने कहाकि एक साथ तीन तलाक न देने की बात निकाहनामा में शामिल की जा सकती है, लेकिन तलाक देने के बाकी दो प्रकार को उसमें शामिल नहीं कराया जा सकता क्योंकि वो पर्सनल ला का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि एक बार में तीन तलाक अवांछनीय है, लेकिन वैध है। इसका दुरुपयोग हो रहा है और इसके बारे में कम्युनिटी में सुधार लाने की कोशिश की जा रही है। लोगों को शिक्षित किया जा रहा है इसमें कुछ समय लगेगा, लेकिन हम नहीं चाहते कि कोई और इसमें दखल दे। कपिल सिब्बल ने कहा कि हिन्दुओं में भी बहुत से ऐसे प्रचलन हैं जो नहीं होने चाहिए, लेकिन ये बात समुदाय तय करेगा कोर्ट नहीं तय कर सकता।
व्हाट्सएप से होता है तलाक
जस्टिस कुरियन जोसेफ ने जब सिब्बल से पूछा कि क्या ई तलाक भी होता है तो सिब्बल ने कहा कि व्हाट्सएप पर भी तलाक होता है।
शरीयत एक्ट कानून नहीं, पर्सनल लॉ है
कपिल सिब्बल ने कहा कि शरीयत अप्लीकेशन एक्ट 1937 को कानून नहीं माना जा सकता ये पर्सनल लॉ है और इसमे कोर्ट दखल नहीं दे सकता। पर्सनल लॉ, रीति रिवाज और प्रथाओं को संविधान में संरक्षण प्राप्त है। अगर कोर्ट इसे कानून मानकर संविधान के मौलिक अधिकारों की कसौटी पर कसेगा तो फिर मुसलमानों का कोई पर्सनल लॉ नहीं रहेगा। उनका कहना था कि हिन्दुओं के पर्सनल लॉ को कानून बनने के बावजूद संरक्षण दिया गया है। इसे भी उसी तरह संरक्षण दिया जाना चाहिए।