ज्योति होटल के मामले में बहस पूरी,6 अप्रैल को फैसला
रतलाम,23 मार्च (इ खबरटुडे)। हाईकोर्ट द्वारा पूरी तरह से निराकृत किए जा चुका ज्योति होटल का मामला स्थानीय न्यायालय की जटिल प्रक्रिया में उलझ चुका है। गुरुवार को ज्योति होटल के मामले में दोनो पक्षों की बहस पूरी हो गई। न्यायालय ने फैसले के लिए 6 अप्रैल की तारीख तय की है।
न्यायालयीन सूत्रों के मुताबिक जिला न्यायालय के न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेेणी एमएस सोलंकी के न्यायालय में आज नगर निगम की ओर से संतोष त्रिपाठी ने ज्योति होटल को खाली कराने हेतु अपने तर्क प्रस्तुत किए और स्थगनादेश को निरस्त करने की प्रार्थना की। ज्योति होटल संचालक की ओर से अभिभाषक सुरेशचन्द्र अग्रवाल ने स्थगनादेश निरस्त किए जाने का विरोध किया। न्यायालयीन सूत्रों के मुताबिक ज्योति होटल संचालक की ओर से आज ही ज्योति होटल के बकाया किराये की राशि में से एक लाख अस्सी हजार रु.का चैक भी न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। न्यायाधीश श्री सोलंकी ने दोनो पक्षों की बहस सुनने के बाद निर्णय के लिए ६ अप्रैल की तारीख तय की है। प्रकरण की बहस के दौरान नगर निगम उपायुक्त संदेश शर्मा भी न्यायालय में उपस्थित थे।
उच्च न्यायालय की अवमानना
उल्लेखनीय है कि ज्योति होटल के मामले में इन्दौर उच्च न्यायालय द्वारा विगत 30 अक्टूबर 2014 को ज्योति होटल का कब्जा नगर निगम को दिए जाने का स्पष्ट आदेश पारित किया था। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एससी शर्मा ने ज्योति होटल के संचालक द्वारा दायर याचिका को दो हजार रु.अर्थदण्ड आरोपित करते हुए निरस्त किया था और आदेश में यह स्पष्ट किया था कि ज्योति होटल की लीज विधिवत रुप से समाप्त हो चुकी है और ऐसी स्थिति में ज्योति होटल संचालक को ज्योति होटल पर कब्जा रखने का कोई अधिकार नहीं है। इस आदेश में नगर निगम को कहा गया था कि वह विधि की प्रक्रिया के अनुसार कब्जा प्राप्त कर लें। उच्च न्यायालय के सुस्पष्ट आदेश के बावजूद नगर निगम के तत्कालीन अधिकारियों और शहर एसडीएम की जुगलबन्दी के चलते यह मामला एसडीएम कोर्ट में ढाई साल तक बेवजह लम्बित रखा गया,ताकि ज्योति होटल संचालक का अवैध कब्जा बना रहे।
इ खबरटुडे द्वारा यह मामला उजागर किए जाने के बाद प्रशासन हरकत में आया और उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद शहर एसडीएम ने इस मामले में नगर निगम के पक्ष में आदेश पारित कर दिया। लेकिन इसी बीच ज्योति होटल संचालक ने स्थानीय न्यायालय में मामला दायर कर वहां से स्थगनादेश प्राप्त कर लिया। मजेदार तथ्य यह है कि उच्च न्यायालय द्वारा जारी स्पष्ट आदेश न्यायिक दण्डाधिकारी एमएस सोलंकी के न्यायालय में भी पेश किया जा चुका था। इसके बावजूद भी निचली अदालत में इस मामले की सुनवाई जारी रही और अब जाकर अंतिम निर्णय के लिए तारीख तय की गई है। विधि के जानकारों के मुताबिक उच्च न्यायालय द्वारा किसी मामले में अंतिम निर्णय पारित कर दिया जाने के बाद उसी प्रकरण की दोबारा सुनवाई की जाना साफ साफ उच्च न्यायालय की अवमानना है। पहले एसडीएम शहर द्वारा उच्च न्यायालय की अवमानना की जाती रही और अब यही कहानी न्यायालय में दोहराई जा रही है। अब सभी लोगों की नजरें छ: अप्रैल पर टिकी है कि न्यायालय द्वारा स्थगनादेश निरस्त किया जाएगा अथवा स्थाई रुप से स्थगनादेश प्रदान किया जाएगा?