ग्राम अजयपुर में ग्रामीणों द्वारा कंजरों की बेरहमी से पिटाई- ग्रामीणों के आक्रोश का नतीजा
मंदसौर 6 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। ग्राम अजयपुर में ग्रामीणों द्वारा कंजरों की बेरहमी से पिटाई उनके आक्रोश का नतीजा है। जिस दशहत में जिले के 295 गांवों के लोग जी रहे हैं उसका प्रतिफल एक दिन ऐसा ही होना था। चंबल नदी के उस पार राजस्थान में रहने वाले कंजर जिले के इन गांवों में आकर लूटपाट करते हैं और बाद में दलालों के माध्यम से ग्रामीण रुपए देकर अपना ही सामान छुड़ाकर लाते हैं। कंजर प्रभावित गांवों में रात होते ही दशहत शुरू हो जाती है और पुलिस कभी भी इससे निजात नहीं दिला पाई। पुलिस डायरी में बीते साढ़े तीन साल में कंजरों की लूट, डकैती और चोरी की कुल 22 वारदातें कैद हैं जबकि इससे चार गुना वारदातों में ग्रामीणों ने पुलिस के बजाय दलालों से संपर्क करना ठीक समझा है।
पहले लूटपाट व फिर दलालों के माध्यम से फिरौती
जिले के तमाम कंजर प्रभावित गांवों में उनके एक-दो दलाल भी हैं, जो कंजरों को गांव के धनाढ्य लोगों सहित अफीम के कुंडों, खेत पर रखे मोटर पम्प व वाहनों की जानकारी देते हैं। उसके बाद ही कंजर बाइक, ट्रैक्टर, मोटर पम्प सहित अन्य सामान चुराकर ले जाते हैं और बाद में दलालों के माध्यम से फिरौती के समान रकम चुकाकर ग्रामीण अपना सामान वापस लाते हैं। सीतामऊ एसडीओपी हरिसिंह परमार बताया कि दलालों की पहचान करना बहुत मुश्किल होता है। श्री परमार के अनुसार कई मामले ऐसे आए हैं जिसमें बाइक लावारिस अवस्था में मिली है। इसमें से कुछ में फिरौती की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता। लोग सामान चोरी होने के बाद पुलिस के पास नहीं आते हैं। इस कारण पुलिस भी कुछ नहीं कर पाती हैं।
21 डेरे, 2048 कंजर
पुलिस ने मंदसौर जिले में अपराध करने वाले कंजरों की पूरी कुंडली भी तैयार की थी। इसमें राजस्थान के झालावाड़ जिले में मौजूद 16 डेरों में 1787 कंजरों की आबादी मिली थी। इनमें से अधिकांश कंजर सुवासरा, सीतामऊ, शामगढ़, अफजलपुर, गरोठ, भानपुरा थाना क्षेत्रों के गांवों में आतंक मचा रहे हैं। इसी तरह से राजस्थान के कोटा, चित्तौड़ के साथ मप्र के रतलाम जिले में भी आठ कंजर डेरे हैं, जिनमें अनुमानित 261 कंजर रहते हैं। कुल मिलाकर 21 डेरों के 2048 कंजरों में से आपराधिक प्रवृत्ति के कंजरों से लोग दहशत में हैं।
सबसे ज्यादा प्रभावित सुवासरा
पुलिस रिपोर्ट के अनुसार जिले में सात थाना क्षेत्रों में 295 गांव कंजर प्रभावित हैं। इसमें सुवासरा थाने के सभी 82 गांवों को कंजर प्रभावित घोषित किया गया है। शक्रवार-शनिवार की रात को भी कंजरों ने सुवासरा थाने के ग्राम अजयपुर में लूटपाट करने की कोशिश की थी। ग्रामीणों ने दो कंजरों की पिटाई कर मरणासन्न स्थिति में पहुंचा दिया था। वहीं दो दलालों के नाम सामने आने के बाद पुलिस ने उनके घर दबिश भी दी थी पर वे फरार हो गए थे। इधर ग्रामीणों द्वारा पकड़े गए दोनों कंजर भी झालावाड़ जिले में स्थित मुंडला डेरे के ही हैं।
गांवों की संख्या से भी कम स्टाफ थानों में
जिले में सात थाना क्षेत्रों में 295 गांव कंजर प्रभावित माने गए हैं। इन सभी थानों में ही टीआई सहित 180 पुलिसकर्मियों का स्टाफ है। सुवासरा थाने के 82 कंजर प्रभावित गांवों को संभालने की जिम्मेदारी 26 पुलिसकर्मियों के कंधों पर है। शामगढ़ में 27 पुलिसकर्मियों पर चंदवासा चौकी सहित 38 कंजर प्रभावित गांवों का जिम्मा है। इसी तरह से टीआई, एसआई, एएसआई, आरक्षक और प्रआ मिलाकर नाहरगढ़ में 15, गरोठ में 38, सीतामऊ में 29, अफजलपुर में 26 और भानपुरा में महज 30 पुलिसकर्मियों का स्टाफ है। थानों के वाहन भी खटारा हालत में हैं।
इसलिए पकड़ना मुश्किल
झालवाड़ जिले के टोकड़ा, लाखखेड़ी, अरनिया, मुंडला, धामनिया, डग, बड़ौद सहित अन्य क्षेत्रों में कंजरों के डेरे हैं। मंदसौर जिले के गांवों में आकर वारदात करने के बाद सभी भाग जाते हैं। इनके डेरों वाला पूरा क्षेत्र जंगल और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। एक तो राजस्थान की सीमा के अंदर और फिर भौगोलिक स्थिति के बारे में भी जानकारी नहीं होने से पुलिस ज्यादा कार्रवाई नहीं कर पाती है।
प्रभावशालियों व धनवानों का संरक्षण
पुलिस द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में यह सत्य भी स्वीकार किया गया है कि कंजरों को मंदसौर जिले के गांवों में प्रभावशालियों व धनवानों का संरक्षण है। यही लोग कंजरों द्वारा की गई लूट-पाट की बात छुपा लेते हैं और इन्हें छुपने की जगह भी उपलब्ध कराते हैं। राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधि भी चुनावों के दौरान प्रभावित गांवों में कंजरों की दशहत के कारण इनकी मदद लेते हैं। गांवों के प्रभावशाली कंजरों से चोरी का सामान भी खरीद लेते हैं और दबदबे के कारण ग्रामीण इनकी सूचना भी पुलिस को नहीं देते हैं।