क्या भगतसिंह को गोली मारी गई?
(डॉ.डीएन पचौरी)
ये ऐसा छुपा तथ्य है,जिससे अधिकांश लोग अनजान है। वास्तव में शहीद भगतसिंह,राजगुरु और सुखदेव को २३ मार्च १९३० को शाम ७.१५ पर फांसी दे दी गई परन्तु फांसी इस प्रकार दी गई कि तीनों की गर्दनें टूटी व अध्र्दमूच्र्छित अवस्था में उन्हे सतलज के किनारे ले जाकर गोलियों से भूना गया। आईए,पूर्ण विवरण से परिचित हो।
पं.जवाहरलाल नेहरु के इलाहाबाद स्थित आनन्द भवन में एक माली काम करता था,जिसका नाम दिलीपसिंह इलाहाबादी था। इसी दिलीपसिंह ने कुछ ब्रिटीश आफिसरों के कहने पर साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त नेहरु जी से अभद्रता की थी,और ब्रिटीशर्स की नजरों में चढ गया। उसे हर प्रकार की सुविधा दी जाने लगी और उसे लाहौर भेज दिया गया। दिलीपसिंह इलाहाबादी के गोद लिए लडके का पुत्र अर्थात दिलीपसिंह के पौत्र का नाम कुलवन्तङ्क्षसह कुनेर है,जो आज भी डर्बी यू.के. में रहते है। इन्ही की लिखी पुस्तक,जो २८ अक्टूबर को २००५ में प्रकाशित हुई है,उसमें इस छुपे तथ्य का रहस्योद्घाटन किया गया है। इसका पूर्ण विवरण इस प्रकार है-
श्री के.एस.कुनेर ने अपने दादा दिलीपसिंह से जो तथ्य एकत्रित किए,उनके आधार पर एक पुस्तक लिखी थी,किन्तु उस समय भारत में इमरजेंसी लागू थी और कोई बवाल खडा न हो जाए इसलिए इनके पिताजी ने पूरी पांडुलिपी जला दी थी। १९८६ में अपने पिता की मृत्यु के बाद पुन: कुनेर ने पुस्तक लिखने की तैयारी की,किन्तु कोई प्रकाशक तैयार नहीं था। १९९२ में कुलवन्त सिंह कुनेर ब्रिटेन गए तो फिर भारत नहीं लौटे। वहां उन्होने गुरुप्रीतसिंह सिंघरा,जो कि हौम्योपैथी के डाक्टर है,के साथ मिलकर २८ अक्टूबर २००५ को पुस्तक प्रकाशित की। डॉ.जीएस सिंघरा ने लन्दन की विभिन्न लाईब्रेरियों की कई पुस्तकों का अध्ययन किया,तब जाकर इस रहस्य को प्रकट किया जा सका है। इस तथ्य की पुष्टि तत्कालीन सीआईडी के एसपी महोदय की पुस्तक से होती है,जो उन्होने अपने रिटायरमैन्ट के बाद लिखी है।
जब ८ मार्च १९३० को भगतसिंह के वकील श्री विजय साहनी बडी मुश्किल से भगतसिंह की ओर से ब्रिटीश एम्पायर के यहां मर्सी पिटीशन लगाने के लिए इन शहीदों को राजी कर सके,किन्तु ब्रिटीश आफिसर्स,जो सॉण्डर्स की हत्या से बदले की आग में जल रहे थे,वो क्षमादान देना नहीं चाहते थे। ब्रिटीश आफिसर्स ने -आपरेशन ट्रोजन होर्स- नामक प्लान तैयार किया,और उस समय के गवर्नर जनरल लार्ड इरविन को भी इस प्लान में सम्मिलित किया गया।
इसी के अन्तर्गत तीनों शहीदों को २३ मार्च १९३० को शाम ७.१५ बजे फांसी दे दी गई,किन्तु गर्दनें टूटते ही अध्र्दमूच्र्छित अवस्था में तीनों को लॉरी से लाहौर से ६ मील दूर,जहां पर व्यास और सतलज नदियां मिलती है,वहां पर सॉंडर्स के परिवार को बुलाया गया। सॉंडर्स के ससुर,जो कि पंजाब के गवर्नर के पीए थे,ने तीनों शहीदों पर गोलियां बरसाई। अन्य परिवार वालों ने भी पैशाचिक बदला लिया। फिर व्यास नदी के दाहिने किनारे पर तीनों की लाशों को जलाया गया,तथा अधजली लाशों के कुछ हिस्से नदी के बायें किनारे पर हुसैनीवाला के निकट जलाए गए। शहीदों के अंतिम संस्कार की सूचना कुछ भारतीय गद्दारों द्वारा जनता को पंहुचा दी गई। भगतसिंह की बहन बीबी अमृतकौर व अन्य लोग हुसैनीवाला के निकट गए। वहां मौजूद कुछ मांस के लोथडे,एक अधजली बांह,जो अधिक लम्बी होने पर अनुमानित भगतसिंह की बांह मान ली गई और रावी नदी के किनारे थोडे से मांस,अस्थिपंजर,राख आदि की अश्रुपूरित श्रध्दांजलि के साथ पुन: अंत्येष्टि की गई।
ब्रिटीश अधिकारियों की क्रूरता यहीं खत्म नहीं होती। गौरतलब है कि जिस जल्लाद ने क्रान्तिकारियों को फांसी दी थी,उसे भी मौत की नींद सुलाकर जला दिया गया जिससे कि राज राज ही बना रहे।
ब्रिटीशर्स का चहेता होने के कारण दिलीपसिंह इलाहाबादी को ये बात मालूम थी,जो उसने कुलवन्तसिंह को सुनाई। सम हिडन फैक्ट्स अबाउट भगतसिंह एण्ड अदर्स लेखक के.एस. कुनेर तथा डा.जी.एस.सिंघरा यूनिक स्टार पब्लिकेशन लुधियाना से प्रकाशित इस पुस्तक में इन सारे तथ्यों को पढा जा सकता है।