November 8, 2024

किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं बनें, राम से सीखें कर्तव्य परायण्ता

संगीतमय श्रीराम कथा में बोले जूनापीठाधीश्वर आचार्य

रतलाम,06 दिसम्बर(इ खबरटुडे)। जूनापीठाधीश्वर आचार्य व महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंदजी गिरि ने कहा है कि समाज किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं बने। कर्तव्य परायण्ता सीखना है तो इस देश के आदर्श श्रीराम से सीखें। प्रभु श्रीराम ने कर्तव्य पालन के लिए राजपाठ छोड़ वनवास को भी वरदान माना। माता कौशल्या ने भी यह कहकर बल दिया कि कैकई स्वप्न में भी श्रीराम का अमंगल नहीं कर सकती। कैकई ने यदि राम को वन भेजने का निर्णय लिया है तो यह जरूर कल्याण के ही कपाट खोलेगा।
स्वामीजी ने प्रभुप्रेमी संघ द्वारा आम्बेडकर मांगलिक भवन परिसर में आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा के छठे दिन भगवान राम के वन गमन का मार्मिक चित्रण किया। इस दौरान पूरा पांडाल भावविह्ल हो गया। उन्होंने कहा कि श्रीराम को वनवास भेजने का प्रसंग यह संदेश देता है कि कर्तव्यों के प्रति यदि व्यक्ति सचेत हो जाता है तो उसका जीवन बड़े साहस से जुड़ जाता है। यदि व्यक्ति अधिकारों के प्रति सजग रहे तो उसका मतलब है वह लांभावित होना चाहता है। कर्तव्यों के लिए बड़े लाभ भी त्यागने पड़ते हैं। राईट और ड्यूटी में बहुत अंतर होता है। कर्तव्य पालन के प्रति श्रीराम की ऐसी प्रसन्नता थी कि जैसे किसी बंाधे हुए हाथी को छोड़ देने पर उसे होती है। वनवास जाने के लिए उन्हें पिता ने नहीं बोला लेकिन माता कैकई के वचनों की जानकारी होते ही वे तत्काल तैयार हो गए। उत्तम कोटि का पुत्र वह होता है जो बिना बोले समझे। बोलने पर समझे वह मध्यम कोटि का होता है। स्वामीजी ने आव्हान किया कि जननी को जनना है तो संत जने, अन्यथा बांझ रहे। कथा के प्रारंभ में मुख्य यजमान सुरेशचंद्र अग्रवाल, नीता अग्रवाल, ऋषी अग्रवाल, रीना अग्रवाल, पूर्व विक्रयकर आयुक्त अशोक नायक, डॉ. उर्मिला तिवारी, अतुल कल्पना सैलत ने पोथी पूजन व स्वागत किया। विश्राम की बेला में सिंहस्थ समिति के अध्यक्ष माखनसिंह, सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश ओमप्रकाश शर्मा, सुभाष खाड़े, ताराबेन सोनी, अनीता सोनी, संजय सोनी, पीके सोनी, दीप्ति दवे, दीपेंद्र दवे और समन्वय परिवार द्वारा आरती की गई। संचालन पंडित अश्विन शास्त्री ने किया।

कल्याण के कपाट खोलता है उपदेश

स्वामीजी ने कथा के प्रारंभ में जीवन की सार्थकता के लिए उपदेश का महत्व प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में भी कहा गया है वह जीवन आत्मघाती होती जिसमें विचार नहीं होते और शुभ कर्म की संस्कृति नहीं होती। ऐसा प्रतीत होता है व्यक्ति केवल आहार के लिए जी रहा है। उपदेश कल्याण के कपाट खोलता है। जीवन के विकास, उन्नति और उन्नयन के लिए जो बल सहायक है वह विचारबल और ज्ञान बल ही है।

सैकड़ों प्रभुप्रेमियों ने गृहण की दीक्षा

श्रीराम कथा पंाडाल में रविवार सुबह दीक्षा उत्सव का आयोजन हुआ। इसमें जूनापीठाधीश्वर आचार्य व महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंदजी गिरि से सैकड़ों प्रभुप्रेमियों ने दीक्षा गृहण की। स्वामीजी ने इस मौके पर कहा कि मंत्र उस ताले की चाबी है जिसमें आनंद छुपा है। मंत्र ईश्वर से संबंध स्थापित करने का सीधा माध्यम होता है। गुरुमंत्र में सभी देवताओं का वास होता है। एक स्वर्ण से जिस तरह अनेक आभूषण बनते हैं, यह मंत्र भी वही फल देने वाला है। स्वामीजी ने गुरु दक्षिणा में प्रभुप्रेमियों से स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर देने का आव्हान किया।

कथा समापन 7 दिसंबर को

सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा का समापन 7 दिसंबर को शाम 6 बजे बाद होगा। अंतिम दिन रावण वध और राम राज की कथा श्रवण करवाई जाएगी।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds

Patel Motors

Demo Description


Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds