कार्यकर्ता बोले- पहलवान के मन की हो जाने दो
पार्टी ने दिया ही दिया, पार्टी को मिला कुछ नहीं, खोखले दावे जरुर मिले
उज्जैन 7 अप्रैल (इ खबरटुडे)। पूर्व महापौर और भाजपा के वरिष्ठ नेता ने बगावती तेवर अख्तियार किये हैं। रविवार को इसकी जानकारी पार्टी के आम कार्यकर्ता तक पहुंच गई। कार्यकर्ताओं में स्थापना दिवस पर एक ही चर्चा रही कि पहलवान को मन की कर लेने देना चाहिये। हश्र 16 मई को पता चल जायेगा।
उज्जैन -आलोट संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने इस बार नये चेहरे को अवसर दिया है। संघ की पृष्ठभूमि से आये डॉ. चिंतामणि मालवीय को मैदान में उतारा गया है। भाजपा के कई दिग्गज नेताओं को यह बात हजम नहीं हो पा रही है। इसी के चलते उम्मीद थी कि कहीं न कहीं पार्टी में खुराफात की शुरुआत होगी। इसकी शुरुआत एक पूर्व विधायक ने अपने वक्तव्य से की थी। इसको आगे बढ़ाते हुए भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा की बैठक में पूर्व महापौर एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता मदनलाल ललावत ने खुले तेवर बयान किये थे। तब तक भी पार्टी इस मुद्दे को घर का मान रही थी। बैठक में आक्रोश की स्थिति बयान होने पर पार्टी यह मान बैठी थी कि अब मुद्दा यहीं शांत हो जायेगा। इसके उलट शनिवार को पूर्व महापौर मदनलाल ललावत ने एक नामांकन पार्टी और दूसरा नामांकन निर्दलीय रुप से रिटर्निंग अधिकारी के समक्ष दाखिल किया था। मोर्चा के कुछ नेताओं के समझाइश के लिये पहुंचने पर उन्होंने खरी बातें कहते हुए उन्हें रवाना कर दिया था। बैठक में जिन शब्दों के साथ पहलवान ने अपनी बात रखी थी, उसे लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं में चर्चा है कि पहलवान को पार्टी ने सबकुछ दिया। दो बार की पार्षदी, एक बार के महापौर, विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष पद पर उन्हें बैठाया गया। इसके उलट पार्टी को कुछ यादा हासिल नहीं हो सका। कार्यकर्ताओं में साफतौर पर यह चर्चा रही कि पहलवान का नजरिया लोकसभा के आवेदन के समय से ही कुछ ठीक नहीं है। लोकशक्ति पर एकत्रित कार्यकर्ताओं का कहना था कि पहलवान को अब मन की कर लेने देना चाहिये, जिससे कि स्थिति साफ हो जायेगी। कार्यकर्ताओं का कहना था कि वर्तमान महापौर और पूर्व महापौर के वार्ड से पिछले नगरीय निकाय चुनाव में वर्तमान महापौर 1800 मतों से गच्चा खा गये थे। और भी कई अवसरों पर इन क्षेत्रों में पार्टी को गच्चा मिला है। इन हालातों के बावजूद अगर लाभ और हानि के स्तर से मुद्दे को आंका जा रहा है तो फिर यही सही। कार्यकर्ताओं के मजबूत तर्कों के आगे वहां पहुंचे कुछ नेता भी निरुत्तर थे। वैसे लोकशक्ति पर इस बगावती रुख को लेकर दिनभर चर्चाओं का दौर बना रहा।