उच्च न्यायालय के अधिकारियो ने सर्वोच्च न्यायालय मे दिए झूठे शपथपत्र- एडीजे श्रीवास का आरोप
रतलाम,28 नवम्बर (इ खबरटुडे)। नीमच मे पदस्थ निलंबित एडीजे राजेंद्र श्रीवास ने म.प्र. उच्च न्यायालय के अधिकारियो पर सर्वोच्च न्यायालय मे झूठे शपथ पत्र प्रस्तुत करने का आरोप लगाया है. जिला न्यायालायो मे न्यायाधिशो के तबादलो मे होने वेल भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष कर रहे एडीजे श्रीवास ने सर्वोच्च न्यायालय मे याचिका प्रस्तुत की है.
न्यायाधीश श्रीवास ने यहा जारी अपने प्रेस बयान मे बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित रिट याचिका मलिक मज़हर सुलतान व अन्य विरूद्ध संघ लोक सेवा आयोग व अन्य क्रमांक सिविल अपील न. {एस} 1867/2006 में माननीय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर, के कतिपय अधिकारियों द्वारा उच्च न्यायिक सेवा में नियुक्ति एवं रोस्टर बिंदु के संबंध में शपथ पत्र प्रस्तुत कर व्यक्त किया गया था कि, मध्यप्रदेश में जिला न्यायाधीश {प्रवेश स्तर} के कुल 52 पद स्वीकृत है जिनमें से 20 पदों की भर्ती प्रक्रिया अंतिम दौर में है, व शेष 32 पदों की भर्ती प्रक्रिया को मध्यप्रदेश में रोस्टर प्रणाली को माह जनवरी 2011 से लागू करने उपरांत ही भरा जाएगा, उक्त आशय के शपथ पत्र के आधार पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा माननीय मुख्य न्यायाधिपति महोदय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय को पारित आदेश दिनांक 10/02/2011 को शीघ्रता से समस्त रिक्त पदों को भरने हेतु निदेर्शित किया गया था।
माननीय उच्च न्यायालय के कतिपय अधिकारियों द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मिथ्या व असत्य रूप से साशय 31.01.2011 को शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है तथा कतिपय अधिकारियों द्वारा शपथ पर कथन करने के उपरांत भी मध्यप्रदेश में रोस्टर प्रणाली लागू करे बिना ही जिला न्यायाधीश की समस्त परीक्षाऐं निरन्तर आयोजित की जाकर रिक्त पद भरे जा रहे है, शपथ पत्र प्रस्तुत करने के बाद 7 वर्ष का समय निकल जाने के बावजूद आज तक रोस्टर नहीं बनाया गया, वैसे भी उक्त कृत्य माननीय उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली के निर्णय ए.आई.आर. 2002 सुप्रीम कोर्ट 1752 आॅल इंडिया जजेस एसोशिएशन विरूद्ध यूनियन आॅफ इंडिया में मार्च 2003 से रोस्टर प्रणाली आवश्यक रुप से लागू करने के संबंध में निर्देश जारी किये गये थे उसके बावजुद लगभग 15 वर्ष व्यतीत हो जाने के बावजूद भी रोस्टर संबंधी नियम नहीं बनाये गये व उसके उल्लंधन व बिना खेल की नियमावली बनाये मनमानें रुप से खेल खेले जाकर न्यायाधीशों के साथ खुले रुप से अन्याय किया जा रहा है। न्यायाधीशों की नियुक्तियों में भी अनियमितताओं की जाँच नहीं करवाई जा रही है। एन.एल.आई.यू. भोपाल में अनियमितता पाये जाने पर तथा किसी अन्य संस्था में भ्रष्टाचार व अनियमितता की शिकायत पाये जाने पर जाँच के आदेश दिये गये, किन्तु स्वयं की संस्था में इतनी अनियमितताऐं मय दस्तावेजों के बताये जाने पर उनकी जाँच नहीं करवाई जाकर दोहरा मापदण्ड अपनाया जाकर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि म.प्र. में न्याय व्यवस्था में न्यायिक आपातकाल लागू हो चुका है। संविधान निर्मित करते समय विधि विशेषज्ञों के मन मस्तिष्क में यह ख्याल था कि राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने पर अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने जाने का प्रावधान किया गया था, उस समय विधि विशेषज्ञों के मन मस्तिष्क में यह ख्याल नहीं आया कि यदि किसी विपरित परिस्थिति में राज्य में न्यायिक तंत्र विफल हो जाये तो क्या स्थिति निर्मित होगी इस संबंध में भी निश्चित रुप से वर्तमान परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में प्रावधान होना चाहिए था।
माननीय उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश के कतिपय अधिकारियों के उपरोक्त कृत्य से ऐसा दर्शित होता है कि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समस्त नियम एवं निर्देशांे की पूर्व में स्वैच्छया साशय अवहेलना कारित करने के आशय से ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष न्यायिक कार्यवाही में मिथ्या शपथ पत्र पेश किया गया है तथा शपथ पत्र का उल्लंधन करते हुए न तो रोस्टर बनाया गया, और बिना रोस्टर बनाये वर्तमान में उच्च न्यायिक सेवा में नियुक्तियाँ धृष्टता पूर्वक निरंतर बिना किसी भय के शपथ पत्र के उल्लंधन में की जा रही है। माननीय उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश के कतिपय अधिकारियों के उपरोक्त कृत्यों से माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश की छवि धूमिल हो रही है। माननीय उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश के कतिपय अधिकारी स्वयं को संविधान व विधि से परे समझकर उक्त कार्यों को अंजाम दे रहें। इस और मुख्य न्यायाधिपति महोदय म.प्र. भी ध्यान नहीं दे रहे है। इस संबंध में कार्यवाही हेतु आर. के. श्रीवास तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश {निलंबित} जिला नीमच द्वारा पृथक से पत्र भी मुख्य न्यायाधिपति सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली को लिखा गया साथ ही इस प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से भी निवेदन किया जा रहा है कि कि, इस संस्था के सरंक्षक एवं पालन कर्ता होने के नाते, न्यायाधीशों कि हितों को संरक्षित करते हुए माननीय उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उपरोक्त शपथ-पत्र प्रस्तुत करने के उपरांत उसके उल्लंघन में कार्य करने वाले संबंधित अधिकारियों के विरूद्ध धारा 177,193 भा.द.वि. के तहत प्रकरण पंजीबद्व करने के संबंध में निर्देश जारी किये जावे अथवा स्वतः संज्ञान लेकर योग्य दण्ड से दण्डित करे, जिससे की कोई व्यक्ति उक्त कृत्य दुबारा करने का साहस न करे, तथा भारत वर्ष की शीर्ष संस्था के समक्ष ऐसे झूठे शपथ पत्र पेश करने की पुनरावृत्ति न हो।