आचार संहिता की आड में जनता पर अत्याचार
राजनैतिक दलों और नेताओं की बजाय जनता को बना रहे निशाना,मेले में मचाया आतंक
रतलाम,20 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। निर्वाचन आयोग ने निर्वाचन प्रक्रिया को पारदर्शी और दोषरहित बनाने के उद्देश्य से आदर्श आचार संहिता बनाई है और राजनैतिक दलों व नेताओं से इसका सख्ती से पालन करवाने के निर्देश दिए हैं। राजनैतिक दलों व नेताओं द्वारा किए जा रहे आचार संहिता उल्लंघन पर की जा रही कार्यवाही तो सामान्य स्तर की है,लेकिन आचार संहिता की आड में आम जनता पर अत्याचार किया जाने लगा है। शनिवार रात कालिका माता परिसर में प्रशासन द्वारा की गई सख्ती यही साबित करती है। प्रशासनिक अधिकारियों ने पुलिसिया डण्डों के जोर पर मेेले की दुकानें बन्द करवा दी। नवरात्रि के दौरान बारिश से त्रस्त इन छोटे व्यवसाईयों को शनिवार रविवार के आखरी दिनों में अपनी घाटापूर्ति करने का मौका नजर आ रहा था,लेकिन संवेदनहीन अधिकारियों ने उनसे वह मौका भी छीन लिया।
नवरात्रि मेले में व्यवसाय के लिए आने वाले छोटे और गरीब व्यवसायी इस दौरान अच्छी कमाई की उम्मीद रखते है। लेकिन मौसम की मार ने नवरात्रि के सारे दिन खराब कर दिए थे। असमय बारिश के कारण इन छोटे व्यवसाईयों को भारी नुकसान उठाना पडा था। मौसम खुलने के बाद मेला जमने ही लगा था कि मेला समाप्ति का समय आ गया। मेले में आमतौर पर शनिवार रविवार के दिनों में अच्छी भीड उमडती है। दुकानदारों को उम्मीद थी कि इन दो दिनों में उनकी घाटा पूर्ति हो सकेगी। वैसे भी पिछले कई सालों से मेला समाप्ति के दो तीन बाद तक दुकानें लगी रहती है। दो तीन दिनों में लोगों का आना भी कम हो जाता है और दुकानदार अपना सामान भी समेट लेते है। इस पूरी प्रक्रिया का चुनाव की आचार संहिता से कोई लेना देना नहीं है।
लेकिन बीती रात इन दुकानदारों पर संवेदनहीन अधिकारियों का ऐसा कहर टूटा कि घाटे से उबरने की उनकी तमाम कोशिशों पर पानी फिर गया। शाम के आठ बजे से ही मेले में प्रशासन का आतंक शुरु हो गया। खाद्य सामग्री बनाने वाले दुकानदार भारी मात्रा में माल बनाकर ग्राहकों के इंतजार में थे कि पुलिस के डण्डों की आवाज गूंजने लगी। निर्ममता के साथ दुकानें बन्द कराई जाने लगी। मेले में आए छोटे गरीब व्यवसायी,खोमचे,रेहडी लगाने वाले,गुब्बारे बेचने वाले गरीब व्यवसाईयों को मेले से भगाया जाने लगा। बिजली ठेकेदार को डरा कर बिजली बन्द करवा दी गई। रात नौ साढे नौ तक तो मेले में सांय सांय होने लगी। मेला घूमने परिवार सहित पंहुचे लोग निराश होकर लौट गए। पीछे रह गए दुकानदार अन्धेरे में अपनी किस्मत के साथ साथ क्रूर और संवेदनहीन अधिकारियों व चुनाव को कोस रहे थे। एक तरफ मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करने के कथित अभियान चलाए जा रहे है,दूसरी तरफ उन्हे चुनाव के नाम पर आतंक व अत्याचार का शिकार बनाया जा रहा है।
दुखी और परेशान गरीब छोटे व्यवसाईयों और मेले से अपमानित कर भगाए गए नागरिकों का पक्ष रखने वाला भी कोई नहीं बचा। राजनैतिक दलों के नेता आचार संहिता के डर से मौन साधे रहे। संवेदनहीन अधिकारियों और क्रूर पुलिस कर्मियों से बात करने या उन्हे रोक पाने का साहस बेचारे गरीब छोटे व्यवसायी कैसे जुटा पाते।
मेले में मचे आतंक के बाद घबराए हुए दुकानदारों ने बताया कि उन्होने निगम अधिकारियों से अपना सामान आदि समेटने के लिए दो तीन दिन का समय देने का निवेदन किया था। दुकानदार निगम आयुक्त के पास पंहुचे थे। निगमायुक्त ने कलेक्टर राजीव दुबे से इस बारे में मार्गदर्शन मांगा लेकिन उन्होने दुकानदारों की पीडा जानने की कोई कोशिश नहीं की। उन्होने पूरी सख्ती से मेला उजाडने के निर्देश जारी कर दिए। इतना ही नहीं दुकानदारों को यह धमकी भी दी गई कि यदि रविवार दोपहर तक दुकानें नहीं हटाई गई तो उनका सामान जब्त कर लिया जाएगा। नतीजा यह हुआ कि डरे हुए तमाम दुकानदारों ने दोपहर में ही सारा सामान समेट लिया। रविवार के दिन कमाई करने की उनकी सारी योजना अधिकारियों के अमानवीय व्यवहार के आगे धरी रह गई। जिन लोगों ने अधिकारियों से इस निर्णय के बारे में पूछा तब उनका कहना था कि उपर का आदेश है,जिसका वे पालन कर रहे है।त