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उप-कार्यालय वीरान, दावे तो थे पर सेवा गायब

 

Neemuch News: नीमच शहर के एक प्रमुख मार्ग पर बने उप-कार्यालय की हालत अब दिलचस्प नहीं रही। लगभग पंद्रह साल पहले नागरिकों की सुविधा के उद्देश्य से दस कमरों वाला यह केंद्र खोला गया था ताकि लोग मुख्य कार्यालय तक 4 किलोमीटर का चक्कर न काटें। शुरुआत में कुछ सेवाएँ मिलीं, पर धीरे-धीरे कर्मचारियों की कमी और प्रशासनिक उदासीनता ने इसे सुनसान बना दिया।

आज वही कमरे जर्जर और ताले पड़े दिखते हैं। जहाँ कभी पेंशन, राशनकार्ड और शिकायत निवारण जैसी बेसिक सुविधाएँ दी जाती थीं, वहीं अब बाहर कूड़ा-मус्सा और अव्यवस्था का नज़ारा है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इन केंद्रों के उद्घाटन के समय बड़े-बड़े वादे किए गए थे, पर धरातल पर वे पूरे होते नहीं दिखे। कई हिस्सों में ताले लगे हैं और आसपास कचरा जमा रहता है, जिससे निकटवर्ती इलाकों की स्वच्छता भी प्रभावित हो रही है।

स्थानीय निवासियों का यह भी कहना है कि उप-कार्यालयों के नियमित संचालन के लिए स्टाफ की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई। परिणामतः सेवाएँ फिर से मुख्य दफ्तर तक सीमित हो गईं और आम लोगों को सुविधाएँ पाने के लिए दूर जाना पड़ता है। कुछ लोगों ने इसे सिर्फ दिखावे तक सीमित बताया और प्रश्न उठाया कि क्या यह सिर्फ प्रचार-उद्घोषणा थी न कि वास्तविक जनहित की पहल।

प्रशासन की तरफ से माना गया है कि मुख्य कार्यालय में स्टाफ की कमी है और इसी कारण उप-कार्यालय सुचारू रूप से नहीं चल पा रहे। अधिकारियों ने कहा है कि स्थिति की जांच कर उचित रूपरेखा बनाई जाएगी। हालाँकि इससे स्थानीय लोगों का भरोसा कम हुआ है और वे त्वरित कार्रवाई की मांग कर रहे हैं — चाहे वह सफाई हो, मरम्मत हो या कर्मचारियों की नियुक्ति।

विभागीय स्तर पर भी यह मामला जवाबदेही और प्राथमिकताओं की परीक्षा बन चुका है। लोग चाहते हैं कि यदि केंद्र जनता के लिए खोले गए थे तो उन्हें पुनः सक्रिय कर दिया जाए या फिर बंद करने के कारणों की सार्वजनिक जांच कराकर पारदर्शिता पेश की जाए। समय पर सकारात्मक कदम न उठाने पर ये भवन न केवल संसाधनों की बर्बादी होंगे बल्कि नागरिकों के खिलाफ दावे और हकीकत के बीच की खाई और चौड़ी होती जाएगी।

नागरिक अब सामाजिक हितों के लिए वास्तविक जवाबदेही की उम्मीद रखते हैं।