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बड़ के पेड़ों और औषधीय फसलों की पहचान

 

Neemuch News: होल्कर स्टेट का बड़कुआं गांव अब अपनी औषधीय फसलों के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि गांव का नाम इसी वजह से पड़ा कि हर खेत में कुएं के पास बड़ का पेड़ था। धीरे-धीरे यह गांव पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक और औषधीय खेती की ओर बढ़ा और अब इसे गुजरात और महाराष्ट्र में भी पहचान मिली है।

1821 की आबादी वाला यह गांव तहसील मुख्यालय से 28 किमी दूर स्थित है। यहां धनगर समाज के लोग मुख्य रूप से रहते हैं, साथ ही गुर्जर और तेली समाज के लोग भी बसे हैं। गांव में माध्यमिक स्तर तक स्कूल है, जबकि हाई और हायर सेकंडरी की पढ़ाई के लिए बच्चे पास के गांव जाते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उपस्वास्थ्य केंद्र की सुविधा मौजूद है।

गांव के किसानों ने पिछले कुछ सालों में औषधीय फसल की खेती को अपनाया। सबसे पहले मिर्ची की खेती शुरू हुई, फिर अश्वगंधा, ईरानी करकरा और सफेद मूसली की खेती करने लगे। इन फसलों से अच्छा मुनाफा मिलने के कारण अन्य किसान भी इससे प्रभावित हुए और अब गांव के 60 बीघा से अधिक क्षेत्र में औषधीय फसल उगाई जा रही है। इसके अलावा सोयाबीन, मक्का और गेहूं की खेती भी होती है।

नीमच मंडी में औषधीय फसलों के अच्छे भाव मिलते हैं, जबकि गुजरात और महाराष्ट्र के किसान बीज और खेती के तरीकों को सीखने यहां आते हैं। उदाहरण के लिए, ईरानी करकरा 35 हजार रुपए प्रति क्विंटल बिकता है। किसानों के नवाचार और मेहनत के कारण गांव में आर्थिक समृद्धि बढ़ रही है।

सरपंच गीताबाई शंकरलाल गुर्जर ने गांव के विकास और मूलभूत सुविधाओं के लिए लगातार काम किया है। किसानों के खेतों तक पहुंचने के लिए सड़कें बनाई गई हैं और जलस्तर बनाए रखने के लिए चार अमृत सरोवर तालाब बनाए गए हैं। गांव में जनता की सुविधा और समस्याओं के समाधान पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

बड़कुआं गांव अब न केवल अपने बड़ के पेड़ों के लिए, बल्कि औषधीय फसलों और विकास की पहल के लिए भी जाना जाने लगा है।