Mandsaur News: भगवान के अभिषेक में असीमित जल का उपयोग गलत है: विभक्त सागरजी महाराज
Mandsaur News: जैन धर्म में जन्म लेने से कोई जैन नहीं बनता। जब मंदिर जाने का समय ही नहीं है तो फिर जैन कहलाने का अधिकार भी नहीं है। यह बात आचार्य 108 विभक्त सागर महाराज ने नाकोड़ा नगर स्थित आचार्य 108 सम्मति कुंज संत निवास पर धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि नए मंदिर तो बन रहे हैं लेकिन दर्शनार्थी नहीं आ रहे। युवा पीढ़ी मंदिरों से दूर होती जा रही है। आचार्यश्री ने कहा कि भगवान के अभिषेक में असीमित जल का उपयोग गलत है। अधिक जल गंधोदक के रूप में उपयोग के बाद पेड़-पौधों में फेंक दिया जाता है। इससे उनमें रहने वाले छोटे जीवों की मृत्यु हो जाती है। इससे पुण्य की जगह पाप लगता है। अभिषेक के बाद जल का लौटा पूरी तरह खाली न करें। उसमें थोड़ा जल बचाएं। इससे घर में सुख, शांति और लक्ष्मी का वास होता है।
उन्होंने कहा कि मंदिरों में बेवक्त एक-दो लोग ही अभिषेक करने पहुंचते हैं। यह परंपरा ठीक नहीं है। सभी को छोटे-बड़े से विनम्रता से हाथ जोड़कर जय जिनेन्द्र कहना चाहिए। यही जैन होने की पहचान है। धर्मसभा में क्षुल्लक श्री 105 क्षेमंकर नंदी जी महाराज भी उपस्थित रहे। दीप प्रज्ज्वलन समाजसेवी रमेश जैन कुलथाना परिवार ने किया। महिला मंडल ने मुनिश्री को शास्त्र भेंट किए।