चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति से तीर्थ के रूप में विकसित हुआ घसोई, देश-विदेश से आ रहे समाजजन
Mandsaur news: मंदसौर जिले में सीतामऊ से 38 किलोमीटर दूर स्थित घसोई गांव की जैन तीर्थ के रूप में देशभर अनोखी पहचान बन गई है। यहां स्थित मंदिर में चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति है, जो करीब 2500 साल पुरानी है। इसके अलावा भगवान महावीर महावीर की बहुत दुर्लभ मूर्ति है। यह भी अपने आप में बहुत अनोखी है और बलुआ पत्थर से बनी है। श्री आनंद धाम जैन तीर्थ के रूप में विकसित होने से इस गांव में हर महीने औसतन हजार से भी अधिक समाजजन पहुंचते हैं। इससे न सिर्फ गांव में आर्थिक गतिविधियां बढ़ी हैं बल्कि तीर्थ के रूप में भी विकसित होने से क्षेत्र समृद्ध हो गया है। गांव में जैन समाज के सिर्फ 5 ही परिवार हैं लेकिन पूरे गांव के सभी समाज के लोगों के लिए यह मंदिर बड़ी आस्था के केंद्र है।
इतिहासकारों के अनुसार घसोई को पहले पंपापुर नगरी कहा जाता था। यह स्थान प्राचीन समय में राजा गंधर्व सेन की नगरी के रूप में जाना जाता था। करीब 100 साल पहले गांव के बाहर कालिया कोट स्थान से भगवान चिंतामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा भूगर्भ से निकली थी। इसके बाद गांव में प्रतिष्ठित की गई।
वर्ष 1998 में आखर गांव की प्रतिष्ठा में पधारे गुरु भगवंत धुरंधर विजय महाराज को कालिया कोट पर जीणोंद्धार और मणिधर नाग का आभास हुआ। जब वे मूल स्थान पर पहुंचे तो गांव वालों से भी यही जानकारी मिली। इसके बाद हर्ष सागर महाराज का आगमन हुआ। संघ की विनती पर उन्होंने तीर्थ के जीर्णोद्धार के लिए भूमि पूजन और शिला पूजन के लिए सोमपुरा को बुलाया। पूजन से एक दिन पहले ही उन्होंने बताया कि वहां 9 फन की प्रतिमा है और भगवान की पुरानी बैठक निकलेगी।
यह बात बाद में सच साबित हुई। यह घटना चमत्कारिक मानी गई। इसके बाद दो और प्रतिमाओं का आभास हुआ। इनमें से एक पर महासुधी छठ विक्रम संवत 130 का शिलालेख है। तीनों प्रतिमाएं भूगर्भ से निकलीं। 3 फरवरी 2012 को इन्हें नूतन जिनालय में प्रवेश कराया गया। 26 फरवरी 2012 को भव्य प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ। यह आयोजन सागर नंद सुरीश्वर, द्वारका सुरीश्वर जी महाराज, गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलत
सागर सुरीश्वर जी महाराज और अन्य साधु भगवंतों की निश्रा में संफन हुआ।
खास बात यह भी है कि गांव घसोई में एक प्राचीन गुफा माता का स्थान है। ग्रामीणों के अनुसार पूर्वज बताते थे कि यहां से उज्जैन तक जमीन के अंदर रास्ता है, जो अब बंद है। गांव में एक पुराना तालाब है, जिसकी खासियत है कि इसमें अस्थियां गल जाती हैं। पास ही रदन मारा स्थान है, जहां पत्थर के चार पिलर हैं। इन्हें बजाने पर चारों से अलग-अलग आवाज आती है।