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उज्जैन-इंदौर संभाग में पहली बार शुरू हुई नेपाली गोल्ड सतावर की खेती

 

Mandsaur News: सीतामऊ के माऊखेड़ा गांव में किसान सुनील कुमार खाती ने परंपरागत सोयाबीन की जगह पहली बार नेपाली गोल्ड सतावर (शतावरी) की खेती शुरू की है। यह इंदौर-उज्जैन संभाग का पहला सतावर का बगीचा है। खाती ने मार्च में अपने खेत में सतावर के पौधे लगाए। इसके लिए उन्होंने उत्तरप्रदेश से 3 हजार रुपए किलो की दर से 2 किलो बीज खरीदे, जिनसे 6 हजार पौधे तैयार किए। पौधों को नर्सरी में 120 दिन में तैयार कर डेढ़ से दो फीट की दूरी पर लगाया गया।

पहले इसी खेत में सोयाबीन की खेती होती थी, जिससे 4-5 क्विंटल उपज और 30-40 हजार रुपए की आमदनी मिलती थी। अब सतावर की खेती से दो साल में लगभग 10 क्विंटल जड़ें और 2 क्विंटल बीज मिलेंगे। जड़ों का बाजार मूल्य 60-70 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। पूरी खेती में दो साल में सिर्फ एक लाख रुपए खर्च आएगा, जिससे दो बीघा में 10 लाख रुपए तक की आमदनी संभव है।

सतावर कम उपजाऊ और बंजर जमीन में उगाया जा सकता है। इसमें कीड़े, फफूंद या पशु नुकसान नहीं पहुंचाते। यह कटिदार पौधा 4 फीट तक ऊँचा होता है और 45 डिग्री तक गर्मी सहन कर सकता है। ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती और दो साल में यह पूरी तरह तैयार हो जाता है।

सुनील ने बताया कि खेती पूरी तरह ऑर्गेनिक है, केवल गोबर की खाद का उपयोग हुआ। सतावर को औषधियों की रानी कहा जाता है। यह दर्द, सूजन, पाचन, मूत्रविकार, ट्यूमर और महिलाओं में दूध बढ़ाने में लाभकारी है।

उद्यानिकी विभाग के सीतामऊ ब्लॉक अधिकारी बनवारीलाल वर्मा ने बताया कि यह मंदसौर ही नहीं, उज्जैन और इंदौर संभाग का भी पहला सतावर बगीचा है। विभाग किसानों का पंजीयन कर अनुदान भी देगा। पानी की कमी, कम उपजाऊ जमीन या नीलगाय की समस्या वाले किसान इस फसल से कम मेहनत में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।