Mandsaur News: बेटी और पति को खोने के बाद, घर फिर से बसाया और बनी देश की पहली महिला, जिसने बड़े हथियारों की ट्रेनिंग ली!
Mandsaur News: मातृभूमि पर जब भी बात आए, तब इतिहास रहा है कि नारी के हर स्वरुप ने कभी पीछे कदम नहीं हटाए। इसके लिए चाहे परिवार को ही क्यों ना छोड़ना पड़ा। संघर्ष व त्याग की एक ऐसी ही मिसाल हैं मंदसौर की मेजर ऊषा कुमावत।
बचपन से देशसेवा करने के लिए सेना में जाने की ठानी। हालात विपरीत रहे तो विवाह के बाद संतान को सेना में भेजने का मन बनाया लेकिन नियति ने बेटी व पति को छीन लिया। तब जीवन की नई शुरुआत करते हुए दोबारा पढ़ाई शुरू की और सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) में जाकर कठिन सरहदी इलाकों में सेवाएं दीं। अपने जुनून के बूते ऊषा ने सपोर्ट वेपन का कोर्स करने वाली देश की पहली महिला सैनिक का मुकाम हासिल किया।
एक पल ऐसा भी आया जब उन्हें परिवार व देश में से किसी एक को चुनना था, तब देश को चुनते हुए त्याग की नई इबारत लिख दी। ऊषा आज फौज में जाने का ख्वाब देखने वाले हर बेटे व बेटी को अपनी संतान मानती हैं। मौजूदा हालात में सरहद पर तनाव बढ़ा तो ऊषा का दोबारा बगैर वेतन लिए देश की सेवा करने का मन है। प्रशासन के समक्ष इच्छा जाहिर की है ताकि हरसंभव देश की सेवा हो सके।
नरसिंहपुरा निवासी ऊषा का 17 साल की उम्र में ही विवाह हो गया था। 18 साल की आयु में इन्होंने बेटी को जन्म दिया लेकिन कुछ समय बाद दुर्घटना में पति को खो दिया। गंभीर बीमारी के चलते बेटी का भी निधन हो गया। इस बीच पिता भुवानजी अपने घर लाए और हौंसला दिया। खुद को व्यस्त रखने के लिए ऊषा ने सिलाई, मेहंदी सीखी लेकिन मन में अलग ही युद्ध चल रहा था।
कठिन समय में मन की सुनी और सपने को पूरा करने की ठानी। माहौल नहीं मिलने के बावजूद माता-पिता के सहयोग से 12वीं की परीक्षा पास की और 1995 में सीआरपीएफ में कांस्टेबल पद पर चयन हुआ। परिजनों ने दोबारा घर बसाया तो पति ने खुद और नौकरी में से एक चुनने को कहा लेकिन ऊषा ने तलाक देकर देशसेवा को चुना।
हर 3 साल में ऊषा कांस्टेबल से लांस नायक, फिर नायक व हवलदार (मेजर) बनीं। एएसआई पद पर पहुंची ही थीं कि पिता ने अपने अंतिम क्षणों में ऊषा को अपने पास बुला लिया। 2018 में सेवानिवृत्ति लेकर बेटी दायित्व का भी फर्ज निभाया।
मैं और मेरी वर्दी पूरी तरह तैयार, सिर्फ आदेश मिलने का इंतजार
ऊषा की पहली व आखिरी पोस्टिंग अयोध्या में थी। इसके अलावा कश्मीर, कन्याकुमारी, मणिपुर, असम, गुवाहाटी, नागालैंड जैसे इलाकों में ड्यूटी के साथ विदेशों में भी सेवाएं दीं। वे बताती हैं कि शुरुआत में 5 हजार महिला सैनिकों में से सिर्फ मैंने 2013 में सपोर्ट वेपन (बड़े हथियारों का विशेष प्रशिक्षण) का कोर्स किया।
कठिन परिश्रम व बड़े हथियारों के कारण महिलाएं इस कोर्स से दूर रहती हैं। हैं। तब तब नीमच में 400 पुरुषों में एकमात्र महिला थी। इस प्रशिक्षण में रॉकेट लांचर सहित बड़े हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्तमान हालातों पर उनका कहना है कि मैं व मेरी वर्दी पूरी तरह तैयार है, सिर्फ आदेश का इंतजार है।