राग रतलामी/कमाई का आखरी मौका है,मेला रहे ना रहे,क्या फर्क पडता है?
Oct 6, 2019, 12:35 IST
-तुषार कोठारी
रतलाम। कालिका माता का नवरात्री मेला अब समाप्ति की ओर है। मेले में व्यवसाय करने आए,तमाम व्यापारी खून के आंसू रो रहे हैं। प्रदेश के सबसे महंगे मेले में दुकान लगाने के बाद बारिश ने उनका सारा खेल बिगाड कर रख दिया है। लेकिन शहर सरकार के मालिकों को इससे कोई सरोकार नहीं है। वे तो मेले के मंच पर होने वाले तमाशों से हासिल कमाई का हिसाब लगाकर खुश है। दुकानें चले या ना चले,मेले का मंच कमाई का बडा जरिया है। लोग तमाशों को देखे, ना देखे,उन्हे कोई फर्क नहीं पडता,क्योंकि तमाशे वालों से कमीशन पहले से तय हो जाता है। हर मेला लाखों की कमाई देने वाला होता है। हर प्रोग्राम की बिलिंग तीन से चार गुने की होती है। ठेकेदार भी तय है। लेकिन इन्ही सब बातों के चलते अब मेले का महत्व कम होता जा रहा है। कोई जमाना था,जब कालिका माता मेले के चर्चे दूर दूर तक हुआ करते थे। इसीलिए दूर दूर से व्यवसायी इस मेले में आकर दुकानें लगाते थे। मेले की प्रसिध्दि का ही असर था कि शहर सरकार इस मेले को मंहगा करती गई। आसपास के किसी भी शहर का मेला इतना महंगा नहीं है। मन्दसौर,उज्जैन जैसे शहरों में इससे कहीं बडे मेले सजते है.लेकिन वहां के आयोजक मेले में आने वाले व्यवसाईयों को तरह तरह की सुविधाएं मुहैया कराते है। ताकि मेले में ज्यादा से ज्यादा व्यवसायी आएं और लोगों को मेले का भरपूर आनंद मिल सके। मन्दसौर में महज दस रु. फीट के भाव पर बीस दिन के लिए दुकानें दी जाती है। उज्जैन के देश भर में प्रसिध्द महीने भर के कार्तिक मेले में भी सस्ती दरों पर स्थान उपलब्ध कराया जाता है। पडोस के निंबाहेडा में मेले में आने वाले दुकानदारों को प्लाट तो सस्ती दरों पर मिलते ही है,बिजली पूरी तरह मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन रतलाम का हाल सबसे अलग है। यहां तो एक एक झूले से पच्चीस हजार रु. वसूल लिए जाते है। दुकानों के भाव भी आसमान को छूते है। इस पर तुर्रा ये कि हर दुकानदार को शहर सरकार के कारिन्दों की नाजायज मांगों को भी पूरा करना पडता है। जितने दिन मेला चलता है,शहर सरकार के कारिन्दे दुकानदारों से वसूली में लगे रहते है। इतनी सारी मुसीबतों के बावजूद मेले में आने वाले व्यवसाइयों को यह उम्मीद रहा करती थी कि मंच पर बेहतरीन कार्यक्रम होंगे तो बडी तादाद में लोग मेले में आएंगे और उन्हे अच्छी खासी कमाई हो जाएगी। लेकिन अब सबकुछ बिगडने लगा है। कमीशन के चक्कर में मंच के तमाशें बेकार होते जा रहे है। किसी जमाने में मंच के सामने हजारों दर्शक हुआ करते थे। अब सैकडों भी नहीं होते। लोग नहीं आते,तो मेले में आए दुकानदारों के धन्धे में भी उठाव नहीं आ पाता। पहले की शोहरत अब बदनामी में बदलने लगी है। यहां आकर नुकसान उठा चुके व्यवसायी दूसरों को यही सलाह देने लगे है कि कहीं भी जाना,लेकिन रतलाम मत जाना। नतीजा यह है कि अब मेला मरने लगा है। यही आलम रहा,तो वह दिन दूर नहीं जब कालिका माता मेला इतिहास की बात बन कर रह जाएगा। इस बार तो इन बातों के साथ बारिश ने भी जमकर कहर बरपाया है। यही कहानी रावण दहन की भी है। रावण दस मिनट भी नहीं जलता,लेकिन उससे कमाई बडी होती है। हजारों लोग नन्हे बच्चे बडी उम्मीदों से रावण दहन देखने आते है,लेकिन यहां आकर उन्हे सिर्फ नाउम्मीदी हाथ लगती है। लेकिन शहर सरकार की मैडम जी को इससे कोई लेना देना नहीं। उनके लिए तो ये कमाई का आखरी मौका है। अगले सालों में मेला रहे ना रहे,उन्हे इससे क्या? काले कोट की कलह काले कोट वालों ने जो किया,उससे शहर भर में उनकी इज्जत बढ गई थी। दुष्कर्म पीडीत बालिका को न्याय दिलाने के लिए जब काले कोट वाले संघर्ष करते दिखाई दिए तो पूरे शहर में उनकी वाह वाही हुई। लेकिन उन्ही में से एक ने अब नया कारनामा कर दिखाया है। इस काले कोट वाले ने पहले तो दुष्कर्म मामले के आरोपियों की पैरवी करने को रजामंदी दी,फिर अदालत से यह कहकर सुरक्षा भी मांग ली,कि उसके लिए काले कोट वाले ही खतरा बन सकते है। अब काले कोट वालों में खीचतान मची है। तमाम लोग नाराज है। नाराजगी का ही असर है कि सुरक्षा मांगने वाले साहब को नोटिस देकर पूछा गया है कि उन्होने ऐसा क्यों किया? जाहिर है,ये मामला बदनाम हुए तो क्या,नाम तो होगा वाला ही है। देर से आए,दुरुस्त आए शुरुआत बेहद अच्छी थी,लेकिन एक छोटी सी गलती के कारण वर्दी वालों की छबि खराब होने लगी थी। वर्दी वालों ने दुष्कर्म मामले में बेहद तेजी से काम किया था. लोगों को खबर होने के पहले ही आरोपियों को भी पकड़ लिया गया था। लेकिन अदालती कार्रवाई के दौरान एक छोटी सी चूक ने मामला बिगाड कर रख दिया। देर से ही सही इस गलती को दुरुस्त कर लिया गया। यही नहीं,फिर वो सबकुछ किया गया,जिससे छबि और अच्छी हो सकती थी। आरोपियों के खिलाफ धाराएं बढाई गई। रिमांड बढाया गया। और आखिरकार जुलूस भी निकाल दिया गया। सबकुछ ठीक हो गया,लेकिन गलती करने वाले अफसर का क्या हुआ,कोई नहीं जानता....।