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पीला मोज़ेक व कीट का हमला, सोयाबीन फसल 8,000 हेक्टेयर में प्रभावित

 

Damoh News: शुरूआती तेज बारिश के बाद फसलों में रोग और कीटों का प्रकोप तेज़ हो गया है — हटा, पटेरा, पथरिया व बटियागढ़ ब्लॉकों में सोयाबीन पर पीला मोज़ेक बीमारी व इल्लियों (किरमियों) का असर बढ़कर आठ हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र में फैल गया है। कई खेतों में पत्तियाँ पीली पड़ गई हैं और फलियों को कीट खा रही हैं, जिससे भविष्य के उत्पादन पर गंभीर असर दिख रहा है। किसानों की शिकायत है कि जो खेत सामान्यत: प्रति एकड़ 8–10 क्विंटल उत्पादन देते थे, वहां अब बीज व लागत निकालना मुश्किल नज़र आ रहा है।

कई स्थानों पर तेज बारिश के बाद मौसम खुलने और नमी के घटने से रोग-जनित विषाणु सक्रिय हुए हैं, जबकि इल्लियों का प्रकोप भी बढ़ा है। प्रभावित किसान बता रहे हैं कि कुछ मोहल्लों में लगभग एक-तिहाई किसान सोयाबीन की फसल में नुकसान झेल रहे हैं। उड़द व मूंग जैसी दलहन फसलों में भी पानी के कारण कुछ नुकसान दर्ज हुआ है।

स्थानीय किसान कहते हैं कि नुकसान रुकने के बजाय बढ़ता दिखाई दे रहा है, इसलिए वे जल्द कार्रवाई चाहते हैं। खेतों की नियमित निगरानी और शीघ्र पहचान को आवश्यक बताया जा रहा है ताकि अधिक भाग में फसल बचाई जा सके। प्रभावित पौधों को अलग कर निपटाने के सुझाव दिए जा रहे हैं ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इल्लियों के नियंत्रण के लिए पूर्व मिश्रित कीटनाशक विचारणीय हैं। सामान्यतः नोवाल्युरोन+इंदोक्साकार्ब (प्रति हेक्टेयर ~850 मिली), बीटासायफ्लोथ्रिन+इमिडाक्लोप्रिड (≈350 मिली/हेक्टेयर) या थायोमेथाक्साम+लेम्ब्डासायहेथ्रिन (≈125 मिली/हेक्टेयर) जैसे छिड़काव इल्लियों व तना मक्खी पर प्रभावशाली पाए गए हैं। साथ ही फसल चक्र बदलने, प्रतिरोधी किस्मों के उपयोग व खेतों की साफ़-सफ़ाई पर ज़ोर दिया गया है।

किसानों से अपील है कि वे अनधिकृत या अत्यधिक रसायन का प्रयोग न करें, पंजीकृत उत्पाद ही प्रयोग करें और छिड़काव से पहले कृषि अधिकारियों से मार्गदर्शन लें। समय पर जैविक व रासायनिय नियंत्रण अपनाकर तथा नमी-निरोधी सतर्कता बरतकर नुकसान घटाया जा सकता है। जिलास्तर पर निगरानी बढ़ाई जा रही है ताकि प्रभावित इलाकों में त्वरित सलाह व सहायता पहुँच सके। किसानो का कहना है कि सरकारी मदद व बीज आपूर्ति शीघ्र चाहिए ताकि पुनर्वास हो।