राज्य ने 1976 का कानून हटाया, अब कानूनी मदद राष्ट्रीय ढांचे से ही मिलेगी
MP News: मध्यप्रदेश सरकार ने पुराने राज्यस्तरीय कानून को निरस्त कर दिया है जिसके बाद कमजोर और आर्थिक रूप से अल्पसंख्यक व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी सहायता अब केवल राष्ट्रीय व्यवस्था के तहत ही उपलब्ध होगी। पहले राज्य के 1976 के अधिनियम के तहत अलग बोर्ड और जिला समितियाँ बनाई जाती थीं जो पात्र लोगों को वकील तथा आवश्यक खर्च मुहैया कराती थीं। पर 1987 में केंद्र द्वारा लीगल सर्विस अथॉरिटीज का गठन होने के बाद दोनों स्तरों पर व्यवस्था ओवरलैप करने लगी और राज्य कानून धीरे-धीरे केवल कागजी शेष बनकर रह गया।
अधिकारिक मत यह है कि अलग ढांचे के बनाये रखना अब अनावश्यक और बोझिल हो गया था। इसलिए राज्य सरकार ने यह कदम उठाया ताकि एकीकृत प्रणाली के जरिये लाभार्थियों तक तेज और सहज पहुँच सुनिश्चित हो सके। अब सहायता नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (एनएएलएसए) और संबंधित राज्य तथा जिला प्राधिकरणों के अंतर्गत ही दी जाएगी।
जो व्यक्ति कानूनी मदद के लिये पात्र है, वह सीधे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है। इस प्रणाली में पैनल वकील मिलने से लेकर कोर्ट फीस और कानूनी खर्च के लिये सहायता तक के प्रावधान हैं। आवेदन प्रक्रिया अब सरलतम है आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत कर पात्रता सिद्ध होने पर सहायता प्रदान की जाएगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि पुराने तंत्र में फाइलिंग, समिति की मंजूरी और आदेशों की लंबी प्रक्रियाएँ थीं, जो समय और संसाधन दोनों खाती थीं। वहीं राष्ट्रीय ढांचे में नियम स्पष्ट हैं और निगरानी भी केंद्रीकृत होने से प्रशासनिक विलंब घटता है।
हालाँकि कुछ आलोचक चिंता जता रहे हैं कि राज्यस्तर पर स्थानीय समस्याओं को समझकर फैसले लेने की गुंजाइश कम हो सकती है। इसलिए यह सुझाव भी दिया जा रहा है कि जिला व राज्य प्राधिकरणों को पर्याप्त अधिकार, पारदर्शिता और निकटता बनाये रखनी चाहिए ताकि जरूरतमंदों को वास्तविक रूप में लाभ मिल सके।
नए नियम लागू होते ही लाभार्थियों और वकीलों के लिये जागरूकता अभियान और आसान मार्गदर्शन शीघ्र शुरू किये जाने की संभावना है, ताकि कानूनी सहायता समय पर और प्रभावी ढंग से मिल सके — तात्काल लागू होंगे।