Movie prime

Damoh City News: राई नृत्य पहले पारंपरिक वाद्य यंत्रों में होता था,अब होने लगा फिल्मी गानों पर

बच्चे के जन्मदिन या फिर शादी समारोह में राई नृत्य की परंपरा आज भी पहले की तरह चल रही है। नर्तकियों द्वारा किए जाने वाले राई नृत्य को देखे के लिए पूरे गांव के लोग एकत्रित हो जाते हैं। और रातभर कार्यक्रम चलता रहता है। गांव के साधन संपन्न लोग राई नृत्य को शान भी मानते हैं। नृत्यांगनाओं के ऊपर पैसों की बारिश भी की जाती है।
 

Damoh City News: बदलते समय के साथ भले ही मनोरंजन के लिए टीवी, मोबाइल का उपयोग बढ़ गया है, लेकिन ग्रामीण अंचलों में राई नृत्य आज भी मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन माना जाता है। राई के बिना आज भी संफन लोगों के बड़े कार्यक्रम अधूरे माने जाते हैं। लोक धुनों पर धूम मचाने वाली राई ऐसा नृत्य है, जिसमें नर्तकी लोगों की भीड़ जुटाती भी हैं और अपने अंदाज में नचाती भी हैं।

बच्चे के जन्मदिन या फिर शादी समारोह में राई नृत्य की परंपरा आज भी पहले की तरह चल रही है। नर्तकियों द्वारा किए जाने वाले राई नृत्य को देखे के लिए पूरे गांव के लोग एकत्रित हो जाते हैं। और रातभर कार्यक्रम चलता रहता है। गांव के साधन संपन्न लोग राई नृत्य को शान भी मानते हैं। नृत्यांगनाओं के ऊपर पैसों की बारिश भी की जाती है।

हालांकि अब इसका दायरा केवल ग्रामीण अंचलों तक ही सीमित हो रहा है। कई बार मेले, किसी बड़े कार्यक्रम में राई नृत्य देखने मिलता है। हालांकि अब समय के साथ राई नृत्य का स्वरूप भी धीरे-धीरे बदलता जा रहा है। जहां नर्तकियों द्वारा घूंघट डालकर नृत्य किया जाता था, लेकिन अब उनका चेहरा दिखता है और सिर पर चुत्री डाले रहते हैं। दूसरी ओर पहले राई नृत्य के लिए ढोलक, नगडिया, बैंड व अन्य वाद्य यंत्र की अलग से टोलियां होती थीं, लेकिन अब डीजे या साउंड सिस्टम पर लगे फिल्मी गानों की धुन पर नृत्य किया जाने लगा है। 

शान का प्रतीक माना जाता है राई नृत्य

लोधी युवा समाज के अध्यक्ष देवेंद्र ठकुर ने बताया कि समाज में राई नृत्य को शान का प्रतीक माना जाता है। जिसे बच्चों को जन्मदिन व शादी समारोह के दौरान किया जाता है। इन कलाकारों ने प्रदेश व देश में बुंदेलखंड के नृत्यों का खास पहचान दिलाई है। बुंदेलखंड के लोक नृत्यों में राई का मतलब सरसों होता है, जिस तरीके से तश्तरी में रखे सरसों के दाने घूमते हैं, उसी तरह बुंदेली नर्तकी भी नगड़िया, ढोलक, और रमतूला के पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर नाचते हैं। इस नृत्य में नर्तकी अपने नव गज लहंगे, पारंपरिक आभूषण जैसे बेंडा, टिकुली, करधनी, पैजनी पहने हुए नृत्य करती हैं।

इतिहासकार विनोद श्रीवास्तव के मुताबिक राई नृत्य बुंदेलखंड की समृद्धशाली लोक कला का बेजोड़ नमूना है। पहले के समय में ये नृत्य राजाओं की युद्ध की जीत के बाद कराते थे। इसमें पर्दा प्रथा की साफ झलक मिलती थी। लोक मर्यादा के चलते नर्तकियां लंबा घूंघट डालकर नृत्य करती थीं। उनका चेहरा नजर ही नहीं आता था। इस राई नृत्य की खासियत इसका पारंपरिक पहनावा और गहने भी हैं।