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35 वर्षों से चल रही शुद्ध भोजन व्यवस्था, जैन विद्यार्थियों और कर्मचारियों को मिल रहा सात्विक आहार

 

Tikamgarh News: पर्युषण और दशलक्षण पर्व के दौरान जैन समाज में शुद्ध, सात्विक आहार ग्रहण करने की परंपरा है। बाहर रह रहे विद्यार्थी, कर्मचारी और यात्री इस दौरान अक्सर भोजन को लेकर असमंजस में रहते हैं। इसी समस्या के समाधान के लिए टीकमगढ़ में पिछले 35 वर्षों से शुद्ध भोजन की विशेष व्यवस्था की जा रही है।

भोजन व्यवस्था की शुरुआत

यह पहल वर्ष 1987 में क्रांति भदौरा और उनके साथियों ने की थी। उन्होंने देखा कि व्रत और धार्मिक अनुष्ठान के समय बाहर रह रहे जैन समाज के लोगों के लिए शुद्ध भोजन मिलना कठिन होता है। इसी विचार से "शुद्ध भोजन व्यवस्था समिति" बनाई गई और नया जैन मंदिर धर्मशाला से इसका संचालन शुरू हुआ।

समिति की व्यवस्था

समिति के सदस्य आपस में सहयोग करके गेहूं का आटा, बेसन और अन्य सामग्री जुटाते हैं। भोजन पूरी तरह देशी घी में बनाया जाता है और इसमें लहसुन, प्याज, आलू जैसे कंद-मूल या भूमिगत सब्जियों का उपयोग नहीं होता। शहद का भी त्याग किया जाता है, ताकि किसी भी छोटे जीव को नुकसान न पहुंचे। मरीजों के लिए खिचड़ी और दलिया जैसी सरल व्यवस्थाएँ भी की जाती हैं।

शुल्क और टिफिन सेवा

शुरुआत में यह सेवा पूरी तरह निशुल्क थी, लेकिन कई लोग संकोचवश भोजन करने नहीं आते थे। इसी कारण वर्ष 2024 से समिति ने 50 रुपये का टोकन शुल्क शुरू किया। इसे सेवा शुल्क कहा जाता है, ताकि लोग सहज भाव से भोजन ग्रहण कर सकें। अब प्रतिदिन लगभग 60 से अधिक विद्यार्थी और कर्मचारी यहां आकर भोजन कर रहे हैं। साथ ही, जिनके लिए मंदिर आना संभव नहीं होता, उनके लिए टिफिन की भी सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

उद्देश्य और प्रभाव

समिति का मुख्य उद्देश्य "आहार शुद्धो-सत्व शुद्धि" की परंपरा को बनाए रखना है। उनका मानना है कि जब आहार शुद्ध होता है तो मन की शुद्धि और स्थिरता भी बनी रहती है। यही कारण है कि यह सेवा तीन दशकों से अधिक समय से निरंतर चल रही है और हर साल दशलक्षण पर्व पर सैकड़ों लोग इसका लाभ उठाते हैं।