Damoh News: मुरैना-नेपाल के जंगलों से लाए सरसों-आम के जैविक बीज, बांट रहे पौधे
Damoh News: सागर के किसान सुनील खरे परम्परागत जैविक बीजों के संरक्षण और उनके प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। सुनील ने बताया, मैं ऐसे जैविक बीज तैयार कर किसानों को बांटता हूं जिनके फलों का स्वाद वर्षों पहले जैसा हो। इसके लिए 100-150 साल पुराने बीज खोजता हूं। 100 साल पुराना कोदो का बीज लेने के लिए मंडला के जंगल में बसे गांवों में गया। मुरैना के आदिवासियों से जैविक सरसों, नेपाल के पहाड़ी गांव से लंगड़ा आम के बीज लाया। ऐसे ही 30 तरह के जैविक बीज जुटाए। इन्हें खेत में उगाया और इनसे बीज तैयार कर रहा हूं। अब तक 695 किसानों को ये बीज बांट चुका हूं।
मैं निजी कॉलेज में प्रोफेसर था। साल 2020 में लॉकडाउन लगा तो अपने गांव केवलारी (केसली तहसील) आ गया। यहां मेरी 20 एकड़ जमीन है। इसमें से 15 एकड़ पर जैक्कि खेती शुरू की। सबसे बड़ी चुनौती थी, जैविक बीज की। कुछ बीज मिले लेकिन उनमें परंपरागत स्वाद नहीं आ रहा था। इसलिए गांवों में जाकर पुराने जैविक बीज तलाशे।
सबसे पहले भिंडी के बीज मिले। इन्हें उगाया। रसायन का उपयोग नहीं किया। केवल गोबर खाद व जीवामृत डाला। जब भिंडी ठगी और चखा तो वही स्वाद आया, जो बहुत पहले सब्जियों में आता था। इनके बीज बनाकर अब तक 35 किसानों को बांट चुका हूं। बाजार में सामान्य भिंडी 40 रुपए किलो मिलती है लेकिन यह जैविक भिंडी 80 रुपए किलो बिक रही है। अपने खेत पर 100 साल से केले का बीज वाला जो पेड़ लगा था, उसे संरक्षित कर पौधे तैयार किए। अब तक 23 किसानों को वितरित कर चुका हूं।
इसके अलावा सरसों, राजगिर, मक्का, गोल व लंबी लौकी, गिलकी, भिल्मा, फूल गोभी, बैर, बथुआ, तेंदू, देसी, पपीता, ककड़ी, ग्वार फली, काकोड़ा, परवल, मीठी नीम, अंजीर, टमाटर, मिर्च, लाल भाजी, अलसी, मसूर, सहजन, गन्ना, 4 प्रकार के अमरूद, दो प्रकार का पत्थरचट्टा के बीज एकत्र किए। इन्हें तैयार कर जैविक बीज बनाकर किसानों को बटि। इन बीजों को सुरक्षित रखने का उपाय भी देशी है। इन बीजों को कंडे की राख में रखते हैं, जिससे ये वर्षों तक खराब नहीं होते। जब भी जरूरत हो, उन्हें उगाकर नए बीज तैयार कर सकते हैं।