MP में महिला स्व-सहायता समूह ने मिलकर दिखाया गांव की अर्थव्यवस्था को नया रास्ता, खुद का कारोबार किया खड़ा
MP News: मप्र में 2.5 लाख से ज्यादा महिला स्व-सहायता समूहों ने मिलकर गांव की अर्थव्यवस्था को नया रास्ता दिखाया है। 23-24 में इन समूहों को बैंकों से 1700 करोड़ से अधिक का लोन मिला, जिससे उन्होंने खुद का कारोबार खड़ा किया। झाबुआ, बड़वानी, निवाड़ी, श्योपुर, उमरिया जैसे जिलों में महिला स्व-सहायता समूह अब केवल सिलाई-कढ़ाई तक सीमित नहीं हैं। वे अब पैकेजिंग, ग्रुप फार्मिंग, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मसाला उत्पादन और किचन गार्डन से लेकर सेवा क्षेत्र में छोटे स्टार्टअप खड़े कर रही हैं। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 52 जिलों के 201 विकासखंडों में करीब 2.5 लाख महिला समूह सक्रिय हैं, जिन्हें 1700 करोड़ से ज्यादा का बैंक लोन मिला। पैसा सीधे-सीधे गांव की आत्मनिर्भरता निवेश हो रहा है। में
महिलाओं ने बैंकों से लोन लेकर खुद का बिजनेस शुरू कर वक्त पर वापस लौटाया
महिला समूहों ने बैंक से कर्ज लेकर कारोबार तो शुरू किए ही, कर्ज ईमानदारी से समय पर लौटाया भी। यही वजह है कि बैंक अब इन समूहों को भरोसेमंद मानते हैं और बिना झिझक लोन देते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, मध्यप्रदेश के महिला स्व-सहायता समूहों की लोन चुकाने की दर 92% से ज्यादा है, जबकि पुरुषों के लिए यह रिकवरी दर करीब 64% होती है। इस फर्क ने यह साबित कर दिया है कि महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि आर्थिक रूप से ज्यादा जिम्मेदार भी हैं। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य के 52 जिलों के 201 विकासखंडों में महिलाएं छोटे-छोटे कारोबारों से खुद को आत्मनिर्भर बना रही हैं, और अब उनकी आमदनी पुरुषों की बराबरी करने लगी है।
एक साल में 27 हजार नए समूह जुड़े
2022-23 में महिलाओं को 2,432 लाख की राशि मिली थी, जो 2023-24 में बढ़कर 3,668 लाख हो गई। इसी तरह निवेश के लिए अलग से दी जाने वाली राशि 22,144 लाख से बढ़कर 26,718 लाख पहुंच गई। अकेले एक साल में लगभग 27 हजार नए महिला समूह बैंकों से जुड़े। 2022-23 में जहां 1.36 लाख समूहों को बैंक से ऋण मिला था, वहीं 2023-24 में यह संख्या बढ़कर 1.63 लाख हो गई। इन समूहों को अब भरोसेमंद भागीदार के तौर पर देखा जा रहा है।
ग्रुप खेती से लेकर मसाले पैकिंग तक
आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज गतिविधियों और जिलों के संकेतों पर स्पष्ट है कि महिला स्व सहायता समूह अब जिलों में मसाले पीसने और पैक करने की यूनिट शुरू कर रहे है। यहां हल्दी, धनिया, मिर्च पिसकर पैकेट में भरकर गांव के बाजारों में बेची जा रही है। महिलाएं बकरी पालन और वर्मी कंपोस्ट बनाने में जुटी हैं। ग्रुप खेती के जरिए सब्जियां उगाकर महिलाएं स्थानीय मंडियों तक खुद पहुंचा रही हैं। शहद का संग्रह और पैकेजिंग कर रही हैं।