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बंजर जमीन से समृद्ध खेत, अंजलेश व्यास की प्रेरणादायक खेती

 

Damoh News: खंडवा के खिड़गांव के किसान अंजलेश व्यास ने दिखा दिया कि मेहनत, हिम्मत और सही मार्गदर्शन से बंजर जमीन भी हरी-भरी और लाभदायक बन सकती है। उनके 16 एकड़ पथरीले खेत वर्षों तक उपजाऊ नहीं थे, लेकिन उन्होंने इसे बदलने का संकल्प लिया।

अंजलेश व्यास को इस दिशा में प्रेरणा पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के एक इंटरव्यू से मिली। इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ जाकर किसान राजाराम त्रिपाठी से कृषि नवाचारों के बारे में जाना और उनकी काली मिर्च व हल्दी की खेती देखी। सीखने के बाद उन्होंने अपने खेत में 5 गुणा 3 फीट की दूरी और ढाई फीट गहरे गड्ढे खुदवाए और ट्रैक्टर से पूरी जुताई कराई।

खेत में पानी की सुविधा के लिए उन्होंने कुआं खुदवाया। फिर गड्ढों में सुबबूल के बीज बोए और ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था की। जिन स्थानों पर पौधे नहीं बढ़ सके, वहां क्रेट में तैयार पौधे लगाए। समय के साथ सुबबूल के पेड़ 10–15 फीट ऊँचे हो गए और खेत में प्राकृतिक पाली हाउस बन गया।

सुबबूल के पेड़ों के नीव में उन्होंने हल्दी की खेती की। इस परंपरागत सह-फसल प्रणाली से दोनों फसलें बिना किसी रासायनिक खाद के उग रही हैं। सुबबूल की पत्तियां हल्दी को नाइट्रोजन प्रदान करती हैं, और हल्दी के पौधे सुबबूल को पोषक तत्व देते हैं। इससे पेड़ों के सहारे गिलकी और तुरई जैसी बेल वाली फसलें भी उगाई जा सकेंगी।

अंजलेश व्यास ने बताया कि सुबबूल की एकड़ लागत लगभग 5 हजार रुपए रही, और दो साल में इससे प्रति एकड़ करीब ढाई लाख रुपए की आमदनी होने की संभावना है। हल्दी की खेती में एकड़ पर 15 हजार रुपए खर्च कर 5 क्विंटल बीज लगाए गए, जिससे 100–190 क्विंटल उपज की उम्मीद है। इस प्रकार आठ माह में हल्दी से लगभग ढाई लाख रुपए की आय संभव है।

इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि अगर सही ज्ञान, मेहनत और नवाचार अपनाए जाएँ तो बंजर जमीन भी किसान के लिए समृद्धि का साधन बन सकती है। अंजलेश व्यास की पहल अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और यह दिखाती है कि साहस और सही तकनीक से खेती में बड़ी सफलता पाई जा सकती है।