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Guna News: किसानों को नहीं मिला बैंक से भरोसा

 

Guna News: मध्यप्रदेश में बैंकिंग सेक्टर के सामने इस समय एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) सबसे बड़ी चुनौती है। राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार अकेले कृषि क्षेत्र में वर्ष 2024 तक 20,292 करोड़ रुपए का कर्ज एनपीए में बदल चुका है। यानी यह वह ऋण है, जिसकी वापसी तय समय पर नहीं हो पाई। यह संकेत देता है कि जिस क्षेत्र में सबसे अधिक ऋण सहायता दी जा रही है, वहीं पर ऋण वापसी में सबसे ज्यादा कठिनाई आ रही है।

आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि राज्य के कई संभागों में खेती से अच्छी आमदनी होने के बावजूद किसानों को बैंक से पर्याप्त कर्ज नहीं मिल पाया। मसलन, भोपाल संभाग में खेती से करीब 55 हजार करोड़ रुपए की आमदनी हुई, लेकिन किसानों को सिर्फ 22 हजार करोड़ रुपए का कर्ज दिया गया।

यानी यहां का अनुपात लगभग 58 फीसदी रहा।इसके विपरीत रीवा संभाग की स्थिति चिंताजनक है। यहां खेती से करीब 46 हजार करोड़ रुपए की आमदनी हुई, लेकिन बैंक ने सिर्फ ढाई हजार करोड़ रुपए का ही कृषि कर्ज दिया। मतलब किसानों को उनकी जरूरत के मुकाबले महज 5 फीसदी कर्ज ही मिल पाया।

शहडोल में भी स्थिति ऐसी ही रही, जहां 14 हजार करोड़ की खेती हुई, लेकिन केवल 600 करोड़ रुपए के आसपास ही ऋण वितरण हो सका। यही हाल सागर, चंबल और ग्वालियर जैसे इलाकों का है। हर 10 में से 3 कर्ज डूबने के कगार परः राज्य में सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से 2023-24 में 1.07 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कृषि ऋण वितरित किया गया।

लेकिन वसूली की दर में गिरावट के कारण यह क्षेत्र सबसे अधिक एनपीए वाला बन गया है। सिर्फ 2024-25 के पहले छह महीनों(सितंबर तक) में ही बैंकों ने कृषि क्षेत्र में 73,222 करोड़ रु. का ऋण वितरित किया, जो तय लक्ष्य का केवल 54.1% है। यह इस बात का भी संकेत है कि ऋण वितरण की रफ्तार पर असर पड़ा है।जहां कृषि क्षेत्र में हर 100 रुपए में 12 रुपए के आसपास राशि फंसी है, वहीं गैर-प्राथमिक क्षेत्र में यह अनुपात महज 2.45 रु. है।

प्रदेश में कहां खुलकर कर्ज और कहां तिजोरी बंद 

सबसे ज्यादा लोन आगर-मालवा, शाजापुर, राजगढ़, रायसेन, मंदसौर, खरगोन, रतलाम, अशोकनगर, देवास, हरदा, झाबुआ, विदिशा, सीहोर, धार में दिया जा रहा है। वहीं छतरपुर, टीकमगढ़, सतना, रीवा, पन्ना, सीधी, अनूपपुर, उमरिया, मंडला और शहडोल में बैंक बहुत कम कर्ज दे रहे हैं।

खेती-किसानी में कर्ज लौटाना सबसे मुश्किल क्यों है

कभी बारिश ज्यादा, कभी सूखा, तो कभी ओले पड़ने से फसलें बर्बाद हो जाती हैं। किसान की सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है और वह कर्ज चुकाने की हालत में नहीं रह जाता। हर फसल पर सरकार की कीमत तय नहीं होती और जिन पर समर्थन मूल्य होता भी है, वहां भी किसान को अक्सर परा पैसा नहीं मिल पाता।

फसल बीमा की योजना तो है लेकिन कई किसानों तक इसका फायदा नहीं पहुंचता। कभी क्लेम पास नहीं होता तो कभी पैसा देर से मिलता है। खेती में एक फसल आने में कई महीनेलग जाते हैं लेकिन बैंक तय समय में पैसा वापस मांगते हैं। इस वजह से किसान अक्सर समय पर पैसा नहीं लौटा पाते। कई बार सरकार चुनाव के समय कर्ज माफ कर देती है। इससे कुछ किसान सोचते हैं कि शायद आगे भी ऐसा होगा और वे कर्ज चुकाने को टालते हैं।