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फसल बीमा में भारी गिरावट, सिर्फ 13.81 लाख किसानों ने कराया बीमा; पोर्टल बंद रहने से चूके लाखों किसान

 

MP News: मध्यप्रदेश में खरीफ सीजन के लिए इस साल फसल बीमा कराने वालों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। बीमा की आखिरी तारीख 31 जुलाई थी, लेकिन इस बार सिर्फ 13.81 लाख किसानों ने ही अपनी फसलों का बीमा कराया। यह आंकड़ा बीते आठ वर्षों में सबसे कम है। बीते साल 2024 में यह संख्या 24.07 लाख थी, यानी इस बार करीब 10.26 लाख किसान बीमा से वंचित रह गए।

बीमा कवरेज के लिहाज से भी स्थिति चिंताजनक रही। इस बार सिर्फ 25.97 लाख हेक्टेयर खेत ही बीमित हो पाए, जबकि पिछले साल 47.12 लाख हेक्टेयर खेतों को बीमा कवरेज मिला था। साल 2020 में तो यह आंकड़ा 72.78 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया था।

इस गिरावट की सबसे बड़ी वजह सरकार द्वारा उसी समय भू-लेख पोर्टल को अपडेट करना बताया जा रहा है। 24 से 29 जुलाई के बीच जब किसान बीमा कराने के लिए सबसे ज्यादा सक्रिय रहते हैं, उसी दौरान 53 जिलों में भू-लेख पोर्टल बंद रहा। इससे किसान न तो अपने खेतों का डिजिटल रिकॉर्ड निकाल सके और न ही बीमा आवेदन कर पाए। जब 30 और 31 जुलाई को पोर्टल फिर से चालू हुआ, तब महज दो दिन में केवल 80 हजार किसान ही बीमा करा सके।

बीमा से सबसे ज्यादा वे किसान वंचित रह गए जिन पर पहले से बैंक का कर्ज है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस बार 11 लाख से ज्यादा कर्जदार किसानों ने बीमा नहीं कराया, जो कि चिंता की बात है। प्राकृतिक आपदा या फसल नुकसान की स्थिति में इन्हीं किसानों को सबसे ज्यादा झटका लग सकता है। बीमा नहीं होने से फसल नुकसान की भरपाई और बैंक लोन चुकाने में दिक्कत आएगी।

गैर-कर्जदार किसानों की संख्या भी इस बार बहुत कम रही। पिछले वर्षों में जहां दो लाख से ज्यादा गैर-कर्जदार किसान बीमा कराते थे, वहीं इस बार यह संख्या केवल 13 हजार के आसपास रही।

खरीफ फसल के लिए प्रदेश में लगभग 104 लाख हेक्टेयर क्षेत्र होता है, और किसानों की संख्या करीब 1 करोड़ है। ऐसे में 25.97 लाख हेक्टेयर का बीमा होना यह दिखाता है कि बड़ी संख्या में किसान इस योजना से वंचित रह गए हैं। सामान्यतः 45 से 50 लाख हेक्टेयर खेती हर साल बीमा दायरे में आती है।

तकनीकी लापरवाही और गलत समय पर पोर्टल अपडेट करने के कारण इस बार किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। जहां फसल बीमा उनकी सुरक्षा का अहम साधन है, वहीं अब इसका लाभ आधे से भी कम किसानों को मिल पाएगा।