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इतिहास, संस्कृति और धरोहर का संगम है बसारी गांव

 

Chhatarpur News: छतरपुर जिले से करीब 20 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व दिशा में बसा बसारी गांव आज बुंदेली कला और संस्कृति की पहचान बन चुका है। रियासत काल में यह छतरपुर रियासत की प्रमुख जागीर हुआ करता था। समय भले ही बदला हो, लेकिन आज भी यह गांव लोककला, संगीत, नृत्य और अभिनय की परंपराओं को सहेजकर आगे बढ़ा रहा है। यहां लगभग हर घर से कोई न कोई कलाकार निकलता है, जो इस गांव की पहचान को और भी खास बनाता है।

बुंदेली उत्सव से बढ़ी पहचान

बसारी गांव में हर साल बुंदेली उत्सव का आयोजन होता है। इस उत्सव ने यहां के प्रतिभाशाली लोक कलाकारों को मंच दिया है, जिसके चलते गांव की पहचान राज्य स्तर तक फैल चुकी है। लगभग 30 साल पहले मध्यप्रदेश सरकार ने बसारी को पर्यटक ग्राम घोषित किया था। इसी दौरान गांव के प्राचीन तालाबों और स्मारकों का सौंदर्यीकरण भी कराया गया। साथ ही यहां एक आधुनिक स्टेडियम का निर्माण किया गया, जिससे ग्रामीण युवाओं को खेलकूद की सुविधा मिल सके।

ऐतिहासिक धरोहरें और हेरिटेज होटल

बसारी की प्राचीन गढ़ी बुंदेली हस्तशिल्प का अनोखा उदाहरण मानी जाती है। यहां बने मंदिर भी ऐतिहासिक और दर्शनीय हैं। गढ़ी परिसर में एक हेरिटेज होटल का संचालन भी हो रहा है। करीब दो दशक पहले खजुराहो आने वाले कई पर्यटक बसारी भी पहुंचते थे, लेकिन अब यहां पर्यटन गतिविधियां सीमित हो गई हैं। केवल वही पर्यटक आते हैं, जिन्हें स्मारकों में विशेष रुचि होती है।

गांव की चुनौतियां

गांव की आजीविका का प्रमुख साधन अब भी कृषि ही है। बड़े किसानों ने कुएं और ट्यूबवेल बनाकर अपने खेतों को विकसित कर लिया है, लेकिन छोटे किसानों और मजदूरों के पास सिंचाई की सुविधाएं अब भी नहीं हैं। यही कारण है कि बड़ी संख्या में ग्रामीण रोज़गार की तलाश में गांव से बाहर पलायन कर रहे हैं।

शिक्षा की स्थिति

शिक्षा के क्षेत्र में गांव में एक हायर सेकेंडरी स्कूल और तीन प्राथमिक शासकीय विद्यालय हैं। इसके अलावा दो निजी स्कूल भी संचालित हैं। हालांकि उच्च शिक्षा के लिए कोई कॉलेज नहीं है, इस कारण छात्रों को छतरपुर जाना पड़ता है।

पंचायत का संक्षिप्त लेखा-जोखा

जनसंख्या: 7250

साक्षरता दर: 64%

मुख्यालय से दूरी: 20 किमी

कनेक्टिविटी: नेशनल हाइवे 39 पर स्थित

रेलवे स्टेशन: छतरपुर

पहचान: प्राचीन गढ़ी, मंदिर और तालाब

मुख्य आय का स्रोत: कृषि और व्यापार

बसारी गांव न केवल बुंदेली संस्कृति की धरोहर है, बल्कि यह उस परंपरा का प्रतीक है, जिसमें कला और आस्था मिलकर एक नई पहचान गढ़ते हैं।