10वीं सदी का शैव मठ और स्थानीय इतिहास की पहचान
Shivpuri News: शिवपुरी जिले की ग्राम पंचायत तेरही अपनी अनोखी पहचान के लिए जानी जाती है। तेरही नाम सुनते ही लोग अक्सर त्रयोदशी रस्म से जुड़ी मान्यता याद कर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। वास्तव में, इस गांव का प्राचीन नाम तेरम्भी था, जो 10वीं सदी में शैव मठ के रूप में प्रसिद्ध था। समय के साथ ग्रामीणों ने इसे तेरही कहना शुरू किया, और यही नाम अब ग्राम पंचायत के रूप में दर्ज है। पंचायत में दो अन्य गांव—कंजीखेड़ी और चंदौरिया—भी शामिल हैं। इतिहास, परंपरा और स्थानीय भाषा का मिश्रण इस गांव को विशेष पहचान देता है।
मध्यकाल में तेरही शैव सम्प्रदाय का एक प्रमुख केंद्र रहा। यहां कई मंदिर और शैव मठ के प्रमाण आज भी मौजूद हैं। प्राचीन अभिलेखों में तेरम्भी का नाम मिलता है, और यह कदवाया, सुरवाया और रन्नौद के शैव मठों के समान ही 10वीं से 11वीं सदी का प्रमुख धार्मिक स्थल था।
तेरम्भी मठ की स्थापत्य कला भी अनूठी है। मठ में खुला आंगन है, जिसके चारों ओर बरामदे और कमरे बने हैं। यह दो मंजिला भवन है और पश्चिमी कौने पर सीढ़ियां हैं। निर्माण में बड़े पत्थर और छत के लिए पत्थर की पटियों का इस्तेमाल हुआ है। मठ के सामने 10वीं सदी का पश्चिम मुखी शिव मंदिर है। मलबे की सफाई के दौरान कई अन्य मंदिरों के भग्नावशेष भी मिले हैं। उत्तर-पूर्वी दिशा में मठ के पास एक बाबड़ी है। प्राचीन मंदिर के सामने 11वीं सदी का आकर्षक तोरण भी है, जिसे स्थानीय लोग मोहजा माता का मंदिर मानते हैं।
तेरही गांव अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण आज भी अपनी अनोखी पहचान बनाए हुए है, जो शैव धर्म और स्थानीय परंपराओं का सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करता है।