बिना डिग्री के आदिवासियों ने गांवों में साकार किया जल संरक्षण का सपना
Jhabau News: झाबुआ और अलीराजपुर जिले के आदिवासी ग्राम इंजीनियरों ने यह साबित किया है कि डिग्री होना सफलता की शर्त नहीं है। इन ग्रामीणों के पास औपचारिक इंजीनियरिंग की डिग्री नहीं है, लेकिन उनके कौशल और अनुभव ने गांवों में जल संरचनाओं के निर्माण का कार्य सरल बना दिया है। तालाब, नहरें, कंटूर ट्रेंच और अन्य जल संरचनाएं ये इंजीनियर अपने गांवों में खुद बनाते हैं, पुराने और क्षतिग्रस्त संरचनाओं को नया जीवन देते हैं।
इस काम में उनके पारंपरिक जल संग्रहण के ज्ञान के साथ-साथ इंदौर के जीएसआईटीएस में सात दिवसीय प्रशिक्षण भी उनकी मदद करता है। इस प्रशिक्षण में उन्हें जल संरचनाओं के निर्माण, रखरखाव और सुरक्षा के बारे में आधुनिक तकनीकी जानकारी दी जाती है। संस्था शिवगंगा इन ग्राम इंजीनियरों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराती है।
ग्राम इंजीनियर बनने का यह मिशन पिछले 15 सालों से चल रहा है। अब तक चार हजार से अधिक ग्राम इंजीनियर इन दोनों जिलों के 1320 गांवों में तैयार हो चुके हैं। उन्होंने 131 तालाब बिना सरकारी मदद के बनाए हैं और लाखों कंटूर ट्रेंच का निर्माण किया है। आने वाले समय में तीन हजार तालाब बनाने का लक्ष्य रखा गया है और इसके लिए और अधिक ग्राम इंजीनियर तैयार किए जा रहे हैं।
इन ग्राम इंजीनियरों को तालाब की सुरक्षा, पाल में चूहे बिल न बनना, वेस्टवेयर में कचरा न जमना और रखरखाव की जिम्मेदारी के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है। साल में एक बार 350–400 ग्राम इंजीनियरों को जीएसआईटीएस में प्रशिक्षण मिलता है।
ग्रामीणों और टीमों के प्रयास से बड़े तालाब भी बन चुके हैं। उदाहरण के तौर पर, भांडाखेड़ा गांव में 72 हजार करोड़ लीटर क्षमता वाला तालाब बनाया गया। इसका पाल 7 फीट ऊँचा और तालाब 15 फीट गहरा है। आसपास के दर्जनों खेतों की सिंचाई इस तालाब से की जाती है। इसकी देखरेख और मेंटेनेंस पूरी टीम द्वारा नियमित रूप से की जाती है।
इस मिशन में कई नामी इंजीनियर और विशेषज्ञ तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। स्थानीय आदिवासी समाज अपने पारंपरिक जल संग्रहण के ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीक को जोड़कर बेहतर परिणाम दे रहे हैं। इससे जल संरक्षण की जागरूकता बढ़ रही है और गांव आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
ग्राम इंजीनियरों के इस प्रयास से न केवल जल संरचनाएं मजबूत हुई हैं, बल्कि गांवों में विकास और आत्मविश्वास भी बढ़ा है। प्रशिक्षण और लगातार काम के अनुभव से ये आदिवासी इंजीनियर अपने गांवों में स्थायी बदलाव ला रहे हैं।