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90s Music: "पल दो पल का शायर हूँ" – एक अमर गीत की कहानी

 
90s Music: हिंदी सिनेमा के इतिहास में कुछ गीत ऐसे होते हैं जो समय बीतने के बाद भी अपनी जगह बनाए रखते हैं। फिल्म कभी-कभी (1976) का मशहूर गीत “पल दो पल का शायर हूँ” ऐसा ही एक नगमा है। हालांकि यह गाना 70 के दशक में बना था, लेकिन 90 के दशक और उसके बाद भी युवाओं और संगीत प्रेमियों की जुबान पर हमेशा ताज़ा रहा।

साहिर लुधियानवी द्वारा लिखे इस गीत को मुकेश की मधुर आवाज़ ने और भी गहराई दी। इसमें जीवन की अस्थायीता और कलाकार के मन की संवेदनाओं को बेहद सादगी और खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है। गीत का मुख्य भाव यही है कि इंसान चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, वह इस दुनिया में कुछ पलों का ही मेहमान है, लेकिन उसके बनाए शब्द, गाने और रचनाएँ हमेशा जीवित रहती हैं।

90 के दशक में जब कॅसेट और रेडियो का दौर था, उस समय भी यह गीत श्रोताओं के बीच बेहद लोकप्रिय रहा। कॉलेज के कार्यक्रमों, कवि सम्मेलनों और सांस्कृतिक आयोजनों में अक्सर इसे गुनगुनाया जाता था। यह गाना सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन का एक दर्शन भी है।

आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो यह गीत हमें याद दिलाता है कि शोहरत और पहचान से बढ़कर रचनात्मकता और सच्ची भावनाएँ ही अमर होती हैं। यही कारण है कि “पल दो पल का शायर हूँ” आज भी सुनने वालों के दिल को छू जाता है और नई पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा बनता है।