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Success Story: रतलाम की प्रांजल को 2018 में हुआ था ब्रेन हेमरेज, 2 साल में रिकवर कर 2023 में MPPSC पास कर भटेवरा बनीं सहायक प्रोफेसर

Success Story: Pranjal of Ratlam had a brain hemorrhage in 2018
 

Success Story: रतलाम की प्रांजल भटेवरा ने अपनी मेहनत और हिम्मत से एक अद्वितीय उदाहरण पेश किया है। ब्रेन हेमरेज के बाद भी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए निरंतर प्रयास किया। उल्टे हाथ से लिखकर उन्होंने एमपीपीएससी में सहायक प्रोफेसर का पद हासिल किया। यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत का परिणाम है। शहर के कालिका माता मंदिर क्षेत्र महालक्ष्मी नगर निवासी प्रांजल पिता सुरेश भटेवरा बचपन से पढ़ने में तेज रही। 12वीं 90 प्रतिशत अंक से पास की। 

बीएससी के दौरान 2017 में पीएमटी की परीक्षा दी, दिसंबर 2017 में आए रिजल्ट में 1 नंबर कम आने से शासकीय मेडिकल कॉलेज नहीं मिल पाया। इसके बाद से वे गुमसुम रहने लगीं और दिमाग पर ज्यादा लोड ले लिया। इससे 2018 में ब्रेन हेमरेज हो गया। कई दिनों तक इंदौर में इलाज चला, फिर अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में ब्रेन की ओपन हेड सर्जरी हुई, परंतु सीधे ओर से पैरालिसिस का असर रह गया। बावजूद परिस्थिति का सामना किया और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक परिषद अनुसंधान (सीएसआईआर) नेट क्लियर किया। एमपीपीएससी की परीक्षा और इंटरव्यू पास कर सहायक प्रोफेसर बनीं। प्रांजल ने बताया कि घर पर ही लैपटॉप और मोबाइल पर पढ़ाई की। पीएचडी के साथ ही आईएएस की तैयारी भी कर रही हूं।

नेट में ऑल इंडिया में 91वीं रैंक और एमपीपीएससी में हासिल की 35वीं रैंक

प्रांजल ने 2023 में नेट की परीक्षा दी। ऑल इंडिया में 91वीं रैंक हासिल की। एमपीपीएससी (बॉटनी) में की। इंटरव्यू क्लियर कर सहायक प्रोफेसर (बॉटनी) का पद अनारक्षित श्रेणी में 35वीं रैंक से हासिल किया है। नियुक्ति-पत्र आना बाकी है।

ऑपरेशन के बाद भी पढ़ाई जारी रखी

ऑपरेशन के बाद रिकवर करने में 2 साल से ज्यादा समय लग गया। माता-पिता, परिवार के सदस्यों और मित्रों ने आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद प्रांजल सहयोग से अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करने लगीं। लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए खुद को तैयार कर उल्टे हाथ से लिखना सीखा और पढ़ाई जारी रखी।

दूसरों की परीक्षा लिखी तो आसानी से राइटर मिला

प्रांजल के अभिभाषक पिता सुरेश भटेवरा ने बताया कि बेटी ब्रेन हेमरेज के पहले कॉलेज के दौरान 2 सालों तक एक दृष्टिहीन विद्यार्थी के परीक्षा-पत्र लिखा करती थी। उसे खुद परीक्षा- पत्र लिखवाने के लिए किसी की जरूरत पड़ी तो ईश्वर की कृपा से कोई बाधा नहीं आई। आसानी से राइटर मिल गया। उससे हमेशा उत्साह के साथ बात करते और जोश भरते थे। उसने भी हिम्मत नहीं हारी और हमेशा आगे बढ़ने की सोच रखी। पैरालिसिस का असर होने से वह सीधे हाथ से काम नहीं कर सकती है। उनकी माता अनिता भटेवरा एलआईसी एजेंट हैं।