High court : सशस्त्र बलों के कर्मियों को दिव्यांगता पेंशन देना दान न होकर सैन्य सेवा के दौरान उसके बलिदानों की उचित स्वीकृति
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि
भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों को दिव्यांगता पेंशन देना दान न होकर सैन्य सेवा के दौरान उसके बलिदानों की उचित स्वीकृति है। न्यायमूर्ति नवीन चावला व न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने कहा कि दिव्यांगता पेंशन के अनुदान का लाभउदारतापूर्वक समझा जाना चाहिए और योग्य लाभार्थियों तक पहुंचाया जाना चाहिए। ऐसी पेंशन सुनिश्चित करती है कि सेवा शर्तों के कारण चोट या दिव्यांगता से पीड़ित सैनिक को बेसहारा नहीं छोड़ा जाता है। यह पेंशन समर्पण के साथ राष्ट्र की सेवा करने वाले जवानों के प्रति राज्य की जिम्मेदारी बनाए रखने का उपाय है।
हाई कोर्ट ने उक्त टिप्पणी आई फोर्सेज ट्रिब्यूनल (एए) द्वारा पारित विभिन्न आदेशों को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिकाओं पर विचार करते हुए की। ट्रिब्यूनल ने कहा था कि कर्मी अपनी संबंधित दिव्यांगता के लिए दिव्यांगता पेंशन के अनुदान के हकदार थे। यह मामला सैन्य सेवा के दौरान किसी बीमारी के कारण सशस्त्र बल कर्मियों को होने वाली दिव्यांगता से संबंधित था। पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए निष्कर्ष निकाला कि दिव्यांगता पेंशन को केवल इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि दिव्यांगता की शुरुआत उस समय हुई, जब कार्मिक शांति स्टेशन पर तैनात थे।
पीठ के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या सेवा के दौरान किसी बीमारी या दिव्यांगता से पीड़ित होने वाले जवानों को वर्ष 2008 के पात्रता नियमों के अनुसार सेवा के कारण या सेवा के कारण बढ़ी हुई दिव्यांगता से पीड़ित माना जाएगा या नहीं ? जबकि सेना में भर्ती के समय उन्हें यह समस्या नहीं थी। पीठ ने कहा कि यह निराशाजनक है कि सशस्त्र बलों के सदस्यों को केवल उक्त आधार पर दिव्यांगता पेंशन से वंचित किया जा रहा है। पीठ ने निर्णय सुनाया कि सशस्त्र बलों के जवानों को कठोर और अमानवीय मौसम में अपने कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है। वे ऐसी जगहों पर सेवा प्रदान करते हैं, जहां मनुष्य के जीवित रहने की सीमाओं की परीक्षा होती है।
बता दें, जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने केंद्र सरकार की 200 से ज्यादा अपीलें खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। केंद्र सरकार ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के आदेशों को चुनौती दी थी। न्यायाधिकरण ने कहा था कि कार्मिक सैन्य सेवा के दौरान किसी बीमारी या अन्य किसी कारण से होने वाली विकलांगता के लिए विकलांग पेंशन का हकदार है जो भर्ती होते समय नहीं थी।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि विकलांगता तय करने वाले रिलीज मेडिकल बोर्ड (आरएमबी) के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने निष्कर्षों के लिए ठोस और तर्कसंगत औचित्य प्रस्तुत करे कि कार्मिकों द्वारा झेली गई बीमारी या विकलांगता उसकी सेवा शर्तों के कारण नहीं हुई।