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डस्टबिन खरीदी में गड़बड़ी का खेल: पुराने हटाए, नए पर लाखों फिर खर्च

 

Dhaar News: धार नगर पालिका में स्वच्छता अभियान के नाम पर लगातार लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। हाल ही में सामने आए एक मामले ने नगर पालिका की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक साल पहले करीब साढ़े चार लाख रुपये की लागत से शहर में डस्टबिन लगाए गए थे। अब उन्हें खराब बताकर हटाया जा रहा है और पाँच लाख रुपये की नई खरीदी की जा रही है। पिछले तीन वर्षों में ही डस्टबिन लगाने पर 15 लाख रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं।

जिम्मेदारों का कहना है कि पुराने डस्टबिन खराब हो गए हैं और उनकी समयावधि पूरी हो चुकी है, इसलिए नए लगाए जा रहे हैं। वहीं हकीकत यह है कि कई स्थानों पर डस्टबिन अब भी उपयोग योग्य हैं। कुछ अच्छे डस्टबिन तो सीएमओ के बंगले के पास फेंके पड़े हैं, जहाँ बारिश के पानी में खराब होने के लिए छोड़ दिए गए हैं। यह स्थिति बताती है कि नगर पालिका रिपेयरिंग कराने के बजाय नए डस्टबिन खरीदने पर जोर दे रही है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि पुराने डस्टबिन की मरम्मत कर दी जाती तो नए की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। इसके बावजूद हर वर्ष नए डस्टबिन की खरीदी का बजट तैयार किया जाता है। इससे साफ जाहिर होता है कि इस प्रक्रिया में अनियमितताओं की संभावना है।

पड़ताल में सामने आया कि वर्ष 2022-23 में नगर पालिका ने लगभग 4 लाख रुपये की लागत से 50 से अधिक डस्टबिन लगाए थे। इसके अगले वर्ष फिर से साढ़े चार लाख रुपये खर्च कर 60 डस्टबिन लगाए गए। रखरखाव की कमी के कारण कुछ डस्टबिन जरूर खराब हुए, लेकिन अधिकांश अब भी ठीक हैं। इसके बावजूद इस बार फिर पाँच लाख रुपये का बजट बनाकर नए डस्टबिन खरीदने की तैयारी की जा रही है। पहले चरण में त्रिमूर्ति चौराहा, आदर्श रोड, छत्री और देवीजी रोड पर डस्टबिन लगाने की योजना है।

नई खरीदी पर भी सवाल उठ रहे हैं। कई जगह लगाए गए डस्टबिन का पतरा मुड़ रहा है और स्टैंड जंग खाए हुए हैं। इससे साफ है कि गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया। नागरिकों का कहना है कि खराब क्वालिटी के कारण ये डस्टबिन समय से पहले ही बेकार हो जाएंगे और अगले साल फिर नए खरीदने का बहाना मिल जाएगा।

नगर पालिका अधिकारियों का कहना है कि पुराने डस्टबिन को कबाड़ नहीं किया जाएगा, बल्कि जिनकी मरम्मत संभव है उन्हें अन्य स्थानों पर लगाया जाएगा। लेकिन वास्तविकता यह है कि बड़े पैमाने पर राशि खर्च होने के बावजूद सड़कों पर गंदगी का अंबार बना रहता है और स्वच्छता व्यवस्था में कोई खास सुधार नहीं दिखता।