लकीर खींच पाकिस्तान बनाने का ऑफर ठुकराने वाले शख्स की कहानी, आज भी करता है पछतावा
India Pakistan Divided: अगस्त 1947 का समय था। भारत आज़ाद हो रहा था, लेकिन साथ ही बंटवारे का सबसे बड़ा दर्द भी सामने था। इस जख्म का नक्शा खींचने का काम ब्रिटिश वकील सिरिल रैडक्लिफ को सौंपा गया था। उन्होंने पहले भारत नहीं देखा था और न ही इसकी जटिलताओं को समझा था। उनके सामने थे 4.5 लाख वर्ग किलोमीटर इलाका, सैकड़ों हजार गाँव और 40 करोड़ से ज्यादा लोग। केवल 36 दिन में उन्हें भारत और पाकिस्तान के लिए सीमाएं तय करनी थीं।
रैडक्लिफ को अधूरे नक्शे और राजनीतिक दबावों के बीच यह काम करना पड़ा। भारतीय और पाकिस्तानी प्रतिनिधि सहमति पर नहीं पहुंच सके, इसलिए आखिरी सीमाएं रैडक्लिफ ने खुद तय कीं। इसी से बनी रैडक्लिफ लाइन, जो आज भी विवादों और संघर्ष का कारण है। कई गाँव और शहर अचानक दो हिस्सों में बँट गए। लाखों लोग अपने घर छोड़ने पर मजबूर हुए, पैदल, बैलगाड़ी या ट्रेन से सफर करते हुए। यात्रा अक्सर हिंसा और लूट-खसोट से भरी थी।
बंटवारे के बाद फैली हिंसा और मौतों ने रैडक्लिफ को भीतर तक झकझोर दिया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ₹2,37,880 (तब के £2,000) देने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने यह रकम लेने से इनकार कर दी। उन्होंने अपने कागज़ जलाए और भारत वापस कभी नहीं लौटे। रैडक्लिफ ने बाद में माना कि उनके पास और कोई विकल्प नहीं था, समय बहुत कम था।
आज भी रैडक्लिफ लाइन भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव और संघर्ष की जड़ बनी हुई है। युद्ध, सीमा विवाद और आतंकी घटनाओं की वजह उसी नक्शे में छुपी है। इतिहास उन्हें दुखांत पात्र के रूप में याद करता है, जिसने परिस्थितियों और समय की कमी में ऐसी लकीर खींची, जिसने उपमहाद्वीप के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया।