इलेक्ट्रिक स्कूटर की दौड़ में बढ़त, पेट्रोल से सस्ता और किफायती साबित हुआ: रिसर्च रिपोर्ट
EV Vs Petrol: आने वाले वर्षों में भारत में वाहनों की संख्या दोगुनी से भी अधिक बढ़ने की उम्मीद है। इसी बीच, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) की एक नई रिपोर्ट में इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत को लेकर महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, खासकर दोपहिया और तिपहिया वाहनों के मामले में इलेक्ट्रिक वाहन अब पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की तुलना में काफी सस्ते और किफायती हो चुके हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन चलाने का खर्च लगभग 1.48 रुपये प्रति किलोमीटर है, जबकि पेट्रोल आधारित दोपहिया वाहन में यह खर्च 2.46 रुपये प्रति किलोमीटर तक पहुंच जाता है। इसी तरह, तीन पहिया वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहन चलाने का खर्च 1.28 रुपये प्रति किलोमीटर है, जो पेट्रोल वाहनों के 3.21 रुपये प्रति किलोमीटर की तुलना में काफी कम है। यह खासतौर पर कमर्शियल टैक्सी सेवाओं के लिए एक बड़ा फायदा है।
इस बदलाव के पीछे मुख्य कारण हैं। बैटरी की घटती लागत, राज्य सरकारों की सब्सिडी, और बेहतर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर। हालांकि, निजी इलेक्ट्रिक कारों के मामले में खर्च राज्यों के हिसाब से अलग-अलग होता है, जो बिजली की दरें, वाहन की शुरुआती कीमत और सब्सिडी के अंतर के कारण है।
जहां हल्के वाहनों जैसे स्कूटर और ऑटो में इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़त देखी जा रही है, वहीं भारी कमर्शियल वाहन जैसे ट्रक और बस के लिए इलेक्ट्रिक विकल्प अभी महंगे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2040 तक भारी वाहनों के लिए LNG (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) सबसे किफायती ईंधन विकल्प बना रहेगा।
भविष्य में, अगर सुधार की गति नहीं बढ़ी, तो डीजल पर निर्भरता 2047 तक बनी रह सकती है, और पेट्रोल की मांग 2032 तक अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच सकती है।
डॉ. हिमानी जैन ने बताया कि भारत का परिवहन क्षेत्र ऊर्जा, प्रदूषण और शहरी योजना के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना कर रहा है। उन्होंने जोर दिया कि अभी से कदम उठाए जाने चाहिए ताकि ट्रैफिक और प्रदूषण की समस्याएं बढ़ने से रोकी जा सकें।रिपोर्ट में इलेक्ट्रिक वाहनों की पहुंच बढ़ाने के लिए आसान फाइनेंसिंग मॉडल, बैटरी रेंटल विकल्प और बेहतर डेटा के माध्यम से चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की योजना बनाने की सलाह दी गई है।
CEEW का ट्रांसपोर्टेशन फ्यूल फोरकास्टिंग मॉडल भविष्य की जरूरतों को समझने में नीति निर्माताओं के लिए मददगार साबित होगा।