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कैपिंग' और 'सब लिमिट' के बारे में सब कुछ जानें

 

Health Insurance: हेल्थ इंश्योरेंस खरीदते समय नियम व शर्तों को ध्यान से पढ़ लेना चाहिए वरना क्लेम करते समय काफी परेशानी आती है। खासकर, कैपिंग या सब लिमिट से जुड़े रुल्स पर जरूर गौर करना चाहिए, क्योंकि इससे ही आपके हॉस्पिटल के खर्चों की सीमा तय होती है। अक्सर, ग्राहकों को यह गलतफहमी रहती है कि 5 लाख का हेल्थ इंश्योरेंस है तो अस्पताल के सारे खर्च बीमा कंपनी उठाएगी. बेशक, उठाएगी लेकिन कुछ शर्तों के साथ, और यही शर्तें कैपिंग या सब लिमिट कहलाती हैं।

क्या होती है कैपिंग

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में “कैपिंग” का मतलब है– बीमा कंपनी द्वारा किसी विशेष खर्च पर तय की गई अधिकतम सीमा से है, जिसके तहत ही क्लेम का भुगतान किया जाता है। चाहे आपने 5 लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस ले लिया हो, लेकिन हर मेडिकल सुविधा के खर्च कैपिंग के तहत तय होते हैं।

कैपिंग पर ध्यान देना क्यों जरूरी

चूंकि, कैपिंग या सब लिमिट के तहत अस्पताल में होने वाले विभिन्न अहम खर्चों की सीमा तय होती है इसलिए इनके बारे में पॉलिसी खरीदने से पहले जान लेना चाहिए। हालांकि, कुछ कंपनियां ऐसी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ऑफर करती है, जिनमें "रूम रेंट पर कोई कैपिंग" नहीं होती है। हालाँकि, ये पॉलिसी अक्सर हायर प्रीमियम चार्ज करती हैं।

कैसे काम करती है कैपिंग

मान लीजिए, आपने 5 लाख रुपये की हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली। लेकिन, उसमें कैपिंग के तहत अस्पताल के रूम रेंट की लिमिट 5000 रुपये प्रतिदिन है तो आप इसी बजट के रूम में रह सकते हैं. अगर, रूम रेंट 5000 रुपये से ज्यादा होता है तो बैलेंस अमाउंट के तौर पर दो हजार रुपये आपको देने होंगे।

क्योंकि, इंश्योरेंस कंपनी सिर्फ 5000 रुपये का ही भुगतान करेगी. ठीक, इसी तरह मेडिकल से जुड़े अन्य खर्चों पर भी कैपिंग का नियम ऐसा ही काम करता है।ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेते वक्त जरूरी है कि आप कैपिंग से जुड़ी शर्तों के बारे में अच्छे-से जान लें और मेडिकल ट्रीटमेंट लिमिट को देखकर ही पॉलिसी खरीदें, और उसके अनुसार ही अस्पताल के खर्चों का ध्यान रखें।