रतलाम / चमक के पीछे का सन्नाटा: सवाल उठे, जवाब नहीं मिले
रतलाम की गलियों और प्रमुख चौराहों पर कुछ समय पहले तक जिस ज्वेलरी कंपनी की मौजूदगी अनदेखी नहीं की जा सकती थी, वह अनधिकृत होर्डिंगों की बाढ़, भव्य उद्घाटन की चकाचौंध और तेजी से फैलती आक्रामक मार्केटिंग रणनीति के कारण शहर के लगभग हर दृश्य पर छाई हुई थी। अब इसी कंपनी की कार्यप्रणाली की पड़ताल के दौरान उठे दस्तावेज़-आधारित प्रश्नों पर उसकी लंबी चुप्पी इस पूरे घटनाक्रम को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा कर रही है।
रतलाम, 18 नवंबर (इ ख़बर टुडे)। पहली रिपोर्ट के बाद जब इ ख़बर टुडे ने कंपनी के कॉरपोरेट ढांचे और वित्तीय दस्तावेज़ों की क्रमबद्ध समीक्षा शुरू की, तो कई ऐसे बिंदु सामने आए जिनमें गहराई से पड़ताल की आवश्यकता स्वाभाविक रूप से उभरकर आई। बहुस्तरीय उद्घाटन समारोह, अनधिकृत विज्ञापन सामग्री और तेजी से फैलते विस्तार-मॉडल की पृष्ठभूमि में कंपनी की संरचना और वित्तीय रिकॉर्ड की जाँच की गई, तो यह साफ दिखने लगा कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध काग़ज़ों और वास्तविक विस्तार की गति के बीच कई प्रश्न स्वाभाविक हैं। इन्हीं आधारों पर कंपनी से विस्तृत और दस्तावेज़-आधारित प्रतिक्रिया माँगी गई, ताकि किसी भी निष्कर्ष की दिशा संतुलित और तथ्य-आधारित रह सके।
पत्रकारिता के स्वीकृत मानकों के अनुसार, किसी भी संस्था को अपने बारे में उठे प्रश्नों का उत्तर देने का अवसर दिया जाना आवश्यक है। इसी सिद्धांत पर कंपनी सचिव और निवेशक-सम्बंध विभाग को 14 बिंदुओं वाली एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी गई। यह प्रश्नावली ईमेल और पंजीकृत डाक, दोनों माध्यमों से प्रेषित की गई, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रश्न विधिवत प्राप्त हो जाएँ और प्रक्रिया-सम्बंधी किसी भी बहाने की गुंजाइश न रहे।
एक पखवाड़े से अधिक दिनों के इंतजार के बाद भी न तो ईमेल की प्राप्ति-स्वीकृति प्राप्त हुई और न ही डाक से भेजे गए पत्र का उत्तर मिला। आक्रामक प्रचार के शोर के बाद छाई यह चुप्पी अब केवल संवाद की अनुपस्थिति नहीं रह गई, बल्कि उसी कहानी की नई परत बन गई है जिसने पहले ही अनेक प्रश्नों को जन्म दिया था। इतना बड़ा कारोबारी नेटवर्क अपने ही बारे में पूछे गए सरल, दस्तावेज़-आधारित और तथ्यात्मक प्रश्नों पर चुप रहे, यह किसी भी जिम्मेदार कंपनी की मानक पारदर्शिता से मेल नहीं खाता। यह चुप्पी अब स्वयं एक महत्वपूर्ण तथ्य के रूप में दर्ज हो रही है और आगे की पड़ताल का आधार भी बन रही है।
कॉरपोरेट दस्तावेज़ों में दिखे कई विरोधाभासों और कंपनी के तेजी से फैलते नेटवर्क ने इ ख़बर टुडे की शुरुआती पड़ताल को स्वाभाविक रूप से अगली कड़ी तक पहुँचाया। गंभीर जाँच की बुनियाद यही होती है कि सभी प्रश्न ठोस रिकॉर्ड पर टिके हों और किसी भी प्रकार की कल्पना या पूर्वाग्रह से दूर रहें। इसी सिद्धांत पर 14 बिंदुओं की जिस प्रश्नावली को तैयार किया गया, उसमें वही मुद्दे शामिल थे जो MCA फाइलिंग, स्टॉक एक्सचेंज प्रकटीकरण, सार्वजनिक दस्तावेज़ों और कंपनी के स्वयं के वित्तीय रिकॉर्ड के अध्ययन से सामने आए थे।
इस प्रश्नावली में राजस्व और लाभ के पैटर्न, ऋण और नकदी-प्रवाह, सार्वजनिक और निजी समूह-कंपनियों के बीच हुए लेन-देन, RPT (रिलेटेड पार्टी ट्रांजेक्शन) की प्रकृति, अनुपालन व्यवस्था, हॉलमार्किंग और लीगल मेट्रोलॉजी की प्रक्रिया तथा कंपनी सचिव और कंप्लायंस अधिकारी से जुड़े DIR-12 रिकॉर्ड जैसे मूलभूत बिंदु शामिल थे। उद्देश्य किसी निष्कर्ष को थोपना नहीं, बल्कि पारदर्शिता की पुष्टि करना था, ताकि कंपनी का संस्करण रिकॉर्ड पर आ सके और रिपोर्ट एकतरफा न रहे।
क्योंकि सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनी होने का अर्थ यह है कि वह जनता के निवेश की संरक्षक होती है। SEBI, MCA और स्टॉक एक्सचेंज जैसी नियामक संस्थाएँ ऐसी कंपनियों से सुसंगत, समयबद्ध और सत्यापित प्रकटीकरण की अपेक्षा करती हैं। यदि कोई कंपनी तेज विस्तार, उच्च प्रचार और अनेक निजी-सार्वजनिक इकाइयों के नेटवर्क के साथ आगे बढ़ रही हो, तो उसका दस्तावेज़-आधारित स्पष्टीकरण केवल अपेक्षित नहीं, कई मामलों में नियामकीय रूप से आवश्यक भी हो जाता है।
कंपनी का पक्ष प्राप्त करने की प्रक्रिया खोजी पत्रकारिता की स्थापित परंपरा के अनुरूप अपनाई गई। कंपनी सचिव को आधिकारिक ईमेल भेजा गया, क्योंकि प्रकटीकरण, अनुपालन और रजिस्ट्रार या नियामक संस्थाओं के साथ संवाद की प्राथमिक जिम्मेदारी इसी पद पर होती है। समानांतर रूप से वही प्रश्नावली डाक द्वारा पंजीकृत कार्यालय को भी प्रेषित की गई, ताकि यह निश्चित रहे कि कंपनी को सभी प्रश्न विधिवत प्राप्त हो चुके हैं और किसी तकनीकी आधार पर चुप्पी को उचित नहीं ठहराया जा सके।
प्रश्न तटस्थ, दस्तावेज़-आधारित और सटीक थे। जिन सम्बद्ध निजी इकाइयों के निदेशक और पते समान पाए गए, वहाँ केवल उनके व्यावसायिक औचित्य के बारे में पूछा गया। जहाँ DIR-12 और कंपनी सचिव के रिकॉर्ड में अंतर दिखा, वहाँ प्रमाणीकरण योग्य दस्तावेज़ का स्पष्टीकरण माँगा गया। कंपनी के जिन विभिन्न शहरों में शोरूम संचालित हो रहे हैं, उनके संदर्भ में हॉलमार्किंग और लीगल मेट्रोलॉजी जैसी प्रक्रियाओं के व्यावहारिक अनुपालन पर भी प्रश्न पूछा गया। प्राप्ति-स्वीकृति के लिए चौबीस घंटे और उत्तर के लिए सात कार्यदिवस की समयसीमा दी गई, जो गंभीर खोजी रिपोर्टिंग का स्वीकृत मानक है।
इसके बावजूद पंद्रह दिन बीतने के बाद भी जब किसी भी माध्यम से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो यह मौन एक तथ्य के रूप में सामने आया। इस स्थिति में चुप्पी केवल प्रतिक्रिया की कमी नहीं, बल्कि आगे की जाँच का स्वतंत्र आधार बन गई है। पारदर्शिता जहाँ उत्तर से प्रकट होनी चाहिए थी, वहाँ उसका अभाव अब इस रिपोर्टिंग का एक प्रमुख संकेतक बन चुका है।
जाँच के अगले चरण में इ ख़बर टुडे की टीम अब GST और आयकर रिटर्न के उन हिस्सों का क्रमबद्ध विश्लेषण कर रही है जहाँ घोषित बिक्री, स्टॉक की आवाजाही, इनवॉइसिंग प्रथाओं और हॉलमार्किंग या तौल अनुपालन के बीच कोई अंतर उभरता है या नहीं। ज्वेलरी उद्योग में कच्चे माल का प्रवाह, वास्तविक बिक्री, स्टॉक रिकॉर्ड और बिलिंग प्रथाएँ अक्सर कई महत्वपूर्ण परतें खोलती हैं। इसलिए इन सभी डेटा-पॉइंट्स का क्रॉस-वेरिफिकेशन इस पड़ताल का अनिवार्य हिस्सा है।
समानांतर रूप से कंपनी समूह की निजी और सूचीबद्ध इकाई के बीच वित्तीय संबंध, निदेशक स्तर के कनेक्शन, पूँजी स्रोत और आंतरिक संरचना का भी गहराई से विश्लेषण किया जा रहा है। उद्देश्य यह समझना है कि विस्तार की यह गति किस वास्तविक आर्थिक क्षमता पर आधारित है और यह मॉडल किस हद तक टिकाऊ, पारदर्शी और नियामकीय मानकों के अनुरूप है।
आगामी रिपोर्ट में इन्हीं दस्तावेज़ों, रिकॉर्ड और क्रॉस-वेरिफिकेशन से जुड़े ठोस निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाएंगे। इ ख़बर टुडे की टीम तथ्यों और दस्तावेज़ों पर आधारित उसी प्रक्रिया का पालन कर रही है जिसे खोजी पत्रकारिता की आधारशिला माना जाता है: जाँच, सत्यापन और पारदर्शिता।