Raag Ratlami Heavy Rain एक घण्टे की आंधी और सामने आ गई सारी सरकारी बदइंतजामी / पंजा पार्टी में रेस के घोडे की तलाश जोरों पर
-तुषार कोठारी
रतलाम। दो दिन पहले आई एक घण्टे की तेज आंधी और बारिश ने जिला इंतजामियां के तमाम दावों की हकीकत सामने लाकर रख दी। पूरा शहर अन्धेरे में डूब गया। शहर के बाशिन्दों ने बिना किसी युद्द के ब्लैक आउट का मजा भी चख लिया और उमस भरी गर्मियों की पूरी रात बिना बिजली के गुजारने का एहसास भी कर लिया। कहने को तो अब शहर के ज्यादातर इलाकों में बिजली रानी वापस आ गई है,लेकिन सडक़ किनारे पडे,अपनी जडों से उखडे पेड बदइंतजामी की कहानी अब भी बयान कर रहे है।
किसी भी शहर में अचानक आने वाली प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए सरकारी इंतजाम पहले से कर के रखे जाते है ताकि ऐसी स्थिति आते ही उस पर फौरन नियंत्रण किया जा सके। लेकिन बदकिस्मती से रतलाम में जिला इंतजामिया ने ऐसी कोई तैयारी नहीं की हुई थी। तेज आंधी ने जब पेडों को उखाडना शुरु किया और जैसे ही बिजली के खंभे गिरने लगे,ऐसा लगा जैसे पूरा शहर लावारिस हो।
कहीं कोई कहने सुनने वाला नहीं। किसी को पता नहीं कि हो क्या रहा है? ये तूफान तो करीब एक घण्टे में गुजर गया,लेकिन तूफान की वजह से आई तबाही से निपटने वाले जिम्मेदार घण्टों तक नदारद रहे। अपने अन्धेरे घरों में कैद रतलाम के लोग,क्या करें,कहां जाए? किसी को समझ मेंं नही आ रहा था। जो लोग तूफान के बाद घरों से बाहर निकले उन्हे पता चला कि शहर की कई सडक़ों पर पेड गिरे पडे है,जिसकी वजह से सडक़ बन्द है। बिजली के खंभे टूटे पडे है।
लेकिन जिन्हे इन चीजों को सम्हालना था,उनका कहीं अता पता नहीं था। ना तो बिजली कंपनी वाले किसी को मिल रहे थे,ना ही जिला इंतजामिया के अफसर दिखाई दे रहे थे। कोई यह बताने को तैयार नहीं था कि आखिरकार तबाही कितनी आई है और इंतजामों को दुरस्त करने में वक्त कितना लगेगा।
अलग अलग सरकारी महकमों में आपस में कोई तालमेल नहीं था। बिजली कम्पनी वालों को बिजली लाईनों पर गिरे पेडों को हटाने के लिए नगर निगम की मदद चाहिए थी,लेकिन वे मदद करने को राजी नहीं थे। इन दोनो महकमो में तालमेल करवा कर इंतजाम दुरस्त करवाने की जिम्मेदारी जिला इंतजामिया के साहब लोगों की थी,लेकिन वे किसी का फोन तक नहीं उठा रहे थे।
मामला सिर्फ इतनी ही नहीं था। अस्पताल के मरीज भी बिजली ना होने की वजह से तडप रहे थे। अस्पताल की बिजली सप्लाय किसी भी स्थिति में बरकरार रहे,इसके लिए सरकार ने अस्पताल को जेनरेटर देकर रखे है,लेकिन अस्पताल की बदइंतजामी का आलम ये है कि इन जेनरेटरों को कभी चालू हीं नहीं किया गया। आईसीयू में भर्ती मरीजों को तो जैसे तैसे मेडीकल कालेज ले जाया गया,लेकिन दूसरे वार्डो में भर्ती मरीजों के सामने तडपने के सिवाय और कोई चारा नहीं था।
अस्पताल की इस बदइंतजामी से कितने मरीजों की हालत बिगडी होगी,और कितनों को अपनी जान से हाथ धोना पडा होगा इस बात की जानकारी कभी भी किसी को नहीं मिल पाएगी।
ऐसे विकट हालातों में वर्दी वालों का रोल भी महत्वपूर्ण हो जाता है,लेकिन वर्दी वालों की व्यवस्था का आलम ये है कि कंट्रोल रुम जैसी व्यवस्था ही नदारद थी। कंट्रोल रुम पर फोन ही नहीं है,जिस पर फोन करके कोई व्यक्ति यह बता सके कि किसी स्थान पर कोई घटना दुर्घटना हुई है। वर्दी वालों के महकमे में भी तालमेल नदारद था।
झुलसा देने वाली गर्मी की उमस भरी रात को गुजारना लोगों के लिए बेहद तकलीफदायी था,इसलिए कई लोगों ने शहर के होटलों की तरफ भी रुख किया। उन्हे उम्मीद थी कि होटलों में चल रहे जेनरेटरों की मदद से उनकी रात की नींद आसानी से पूरी हो सकेगी। इसका नतीजा ये था कि शहर के अधिकांश होटलों के कमरे उस रात को फुल हो गए थे।
इस पूरे वाकये का सबसे बडा फायदा इन्वर्टर और बैटरी विक्रेताओं को मिला। जैसे तैसे रात कटी थी,अगली सुबह कई सारे लोगों ने अपने घरों को इन्वर्टर से लैस करने का इरादा पक्का कर लिया। बीते दो दिनों से इन्वर्टर,बैटरी विक्रेताओं और इलैक्ट्रिशियनों की मांग बढी हुई है। लोगों को डर है कि बारिश के दिनों में कहीं फिर से ऐसी नौबत आ गई तो कम से कम इन्वर्टर उन्हे कुछ घण्टों की राहत तो दे सकेगा।
कुल मिलाकर,एक घण्टे के तूफान का सबक ये है कि जिला इंतजामिया को आपदा प्रबन्धन के अपने तौर तरीकों को नए सिरे से पुख्ता करने की कोशिश कर लेना चाहिए। सरकार के अलग अलग महकमों के बीच में तालमेल रखने का मैकेनिज्म तैयार कर लिया जाना चाहिए वरना बारिश के दिनों में इस तरह की स्थितियां बनती ही रहेगी और शहर के लोगों को परेशानियां ही झेलना पडेगी।
पंजा पार्टी में रेस के घोडे की तलाश जोरों पर
लम्बे वक्त तक खबरों से दूर रही पंजा पार्टी अब फिर से खबरों में आ रही है। पंजा पार्टी के शहजादे ने सूबे की राजधानी में आकर संगठन सृजन का नया फार्मूला बनाते हुए पंजा पार्टी को तीन तरह के घोडों में बांटा था। पंजा पार्टी के शहजादे ने बताया था कि पंजा पार्टी में तीन तरह के घोडे है। इनमें से कुछ रेस के घोडे है,कुछ शादी वाले घोडे है और कुछ लंगडे घोडे है। शहजादे का कहना था कि पंजा पार्टी वाले लंगडे घोडे को रेस में उतार देते है और रेस वाले घोडे को शादी मेंं लगा देेते है। शादी वाले घोडे यूं ही रह जाते है। शहजादे का कहना था कि अब रेस वाले घोडे को ही रेस में उतारा जाएगा,जबकि लंगडे घोडों पर कोई दांव नहीं लगाया जाएगा।
बस इसी के बाद से रतलाम की पंजा पार्टी में भी रेस वाले घोडे की तलाश की जा रही है। पंजा पार्टी ने रेस वाले घोडे की तलाश करने के लिए अपने पर्यवेक्षक भी भेजे है। अभी तक सामने आई जानकारियों के मुताबिक अभी तक आठ लोगों ने खुद को रेस का घोडा बनाते की दावेदारी की है।
अब सवाल ये पूछा जा रहा है कि अगर ये आठ रेस के घोडे है,तो लंगडे घोडे और बारात वाले घोडे कौन से है? पंजा पार्टी अभी जिसके भरोसे चल रही है,वह रेस का घोडा नहीं है तो वह किस श्रेणी का घोडा है,शादी वाला या लंगडा। सवाल ये भी है कि कि इन आठ दावेदारों में से रेस का घोडा तो कोई एक ही होगा,तब बाकी के घोडे किस श्रेणी के माने जाएंगे,शादी वाले या लंगडे?
बहरहाल रेस वाले घोडे की तलाश जारी है। उम्मीद है कि जल्दी ही इस बात का पता चल जाएगा कि पंजा पार्टी में रेस का घोडा कौन है और लंगडे घोडे कौन कौन है? शादी वाले घोडे का पता तो चुनाव के वक्त ही चल पाएगा,क्योंकि सेहरा तो उसी के सर पर सजेगा,जिसे शादी में लगाया जाएगा।