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Raag Ratlami Congress resignation:अपनी ही जडें खोदने में जुटी है पंजा पार्टी / फूल छाप पार्टी में एक अनार और दर्जनों बीमार

 
 

-तुषार कोठारी

रतलाम। पंजा पार्टी की यही समस्या है कि  चाहे दिल्ली हो या रतलाम,पंजा पार्टी के लोग अपनी ही जडें खोदने में लग जाते है। मध्यप्रदेश,राजस्थान जैसे प्रदेशों की राज्य सरकारें रही हों या अभी कर्नाटक की कहानी। पंजा पार्टीे हाथ आई सरकार तक को अपने ही हाथों से गंवां देती है। इसी तरह की कहानी रतलाम की पंजा पार्टी में भी दोहराई जा रही है। पंजा पार्टी की एक बडी बीमारी यह भी है कि यहां योग्य और जनाधार वाले नेताओं को महत्व ना देकर चापलूसों को आगे बढाया जाता है और आखिरकार इसका खामियाजा पंजा पार्टी को ही भुगतना पडता है।

पंजा पार्टी के युवराज पप्पू,बिहार का चुनाव बीच मझधार में छोड कर मध्यप्रदेश मेंं संगठन सृजन करने आए थे। पंजा पार्टी के लोगों को लगा था कि जब युवराज खुद संगठन सृजन कर रहे है,तो सूबे में अब पंजा पार्टी मजबूत हो ही जाएगी। युवराज ने यह भी कहा था कि पंजा पार्टी अब लंगडे घोडों पर दांव नहीं लगाएगी।

लेकिन युवराज का संगठन सृजन जब जमीन पर आया तो पता चला कि यह संगठन का सृजन नहीं बल्कि विसर्जन बन गया है। संगठन सृजन के नाम पर जिनके हाथों में पार्टी की कमानें सौंपी जा रही थी,उनसे ज्यादातर लोग खुश नहीं थे। रतलाम में तो संगठन सृजन ने बवाल खडा कर दिया। आदिवासी इलाके में पंजा पार्टी को मजबूती से थामे खडे गुड्डू भैया जैसे जमीनी नेता को दरकिनार करके पार्टी ने ऐसे लोगों के हाथों में पार्टी की कमान सौंप दी जिनकी कोई हैसियत ही नहीं थी। इतना ही नहीं पार्टी वालों ने भैया से सहमति लेना तक जरूरी नहीं समझा। यही कहानी जिले के दूसरे हिस्से से अपने बलबूते जिला पंचायत में जीत कर आए नामली वाले भैया की भी थी। पार्टी ने उनके इलाके की कमान भी एक विवादित नेता को सौंप दी और उनसे पूछा तक नहीं।

संगठन के इस उटपटांग सृजन से सैलाना और नामली दोनो वाले भैया लोग भडक गए और उन्होने सीधे अपने इस्तीफे भोपाल भिजवा दिए। मजेदार बात यह है कि ये दोनो ही नेता अपने अपने इलाके के कद्दावर और मजबूत नेता है। पंजा पार्टी को जैसे ही इनके इस्तीफे मिले पार्टी में जैसे भूचाल आ गया। भोपाल वाले फौरन सक्रिय हुए और मान मनौव्वल का दौर शुरु हो गया।

सबसे पहले तो पार्टी वालों ने इस्तीफे स्वीकार करने से इंकार कर दिया। नेताओं की नाराजगी को दूर करने के वादे भी किए गए। नेताओं को जिन जिन पर आपत्ति थी,उन्हे हटाने के भी वादे किए गए। फिलहाल मामला होल्ड पर आ गया है। जिन पर आपत्ति है,वो अभी अपने पदों पर काबिज है। नाराज नेताओं के इस्तीफे मंजूर नहीं हुए हैैं। नाराज नेता उपर वालों के वादों के पूरे होने का इंतजार कर रहे है। 

कुल मिलाकर पंजा पार्टी की हालत सांप छछूंदर वाली हो चुकी है। ना तो निगलते बन रही है,और ना उगलते बन रही है। पंजा पार्टी के लिए आने वाले दिन और भी उठापटक वाले साबित हो सकते है। इन सबके होते हुए इतना तय है कि पंजा पार्टी में दिल्ली से लगाकर रतलाम तक काम करने वाले काबिल लोगों को दरकिनार करने और नाकाबिल चापलूसों को आगे लाने की बीमारी पूरी तरह हावी है।

नहीं उठी सियासी सरगर्मी

उधर दिल्ली की एक अदालत ने पंजा पार्टी की मैडम जी और युवराज के खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले में संज्ञान लेने से जब इंकार कर दिया,तो पंजा पार्टी वालों ने पूरे देश में इस बात का जश्न मनाने और फूल छाप पार्टी के दफ्तरो के सामने प्रदर्शन करने की योजना बना डाली। दिल्ली से तमाम सूबों और वहां से तमाम जिलों को फरमान भेज दिए गए कि फूल छाप के दफ्तरों के बाहर जंगी प्रदर्शन करना है।

जब पंजा पार्टी के इस फरमान की जानकारी इधर तक पंहुची,तो सियासत पर नजर रखने वालों की उम्मीदें जगी कि अब शायद सियासी सरगर्मी तेज होगी। पंजा पार्टी वाले जब फूल छाप के दफ्तर के बाहर नारेबाजी करेंगे तो मजेदार दृश्य देखने को मिलेंगे। हो सकता है कि दोनो के बीच विवाद भी देखने को मिले। इधर फूल छाप वाले भी बेसब्री से इस बात का इंतजार कर रहे थे कि पंजा पार्टी वाले आएंगे और प्रदर्शन करेंगे। फूल छाप वाले ये भी देखना चाहते थे कि पंजा पार्टी वाले कितनी तादाद में लोगों को ला पाते है।

लेकिन आपसी खींचतान में उलझे पंजा पार्टी वाले फूल छाप के दफ्तर पर पंहुचे ही नहीं। पंजा पार्टी के नेता एक दूसरे के भरोसे थे,लेकिन कोई भी भरोसेमन्द साबित नहीं हुआ। फूल छाप के नेता इंतजार करते रह गए। बल्कि इंतजार की इंतेहा हो गई,लेकिन फिर भी पंजापार्टी का कोई नेता वहां नहीं पंहुचा। अब लोग पूछ रहे है कि आखिर ऐसा क्या हुआ,जिसकी वजह से रतलाम के पंजा पार्टी वालों ने दिल्ली के फरमान को भी अनसुना कर दिया। 

अब तरह तरह की बातें भी हो रही है। कहा जा रहा है कि पंजा पार्टी वालों ने तैयारी तो की थी,लेकिन उनके कार्यकर्ता आए ही नहीं। अब सिर्फ दो चार लोग चले भी जाते तो क्या खाक प्रदर्शन होता,उलटे इज्जत जरुर उतर जाती। कोई कह रहा है कि पंजा पार्टी वाले आपसी झगडों में इतने उलझे हुए हैैं कि कोई काम हो ही नहीं सकता। खैर,जो भी हो इससे इतना जरुर साफ हो गया है कि पंजा पार्टी अब आईसीयू में नहीं बल्कि वेन्टीलेटर  पर पडी है,जिसका किसी भी वक्त इंतकाल हो सकता है।

फूल छाप में एक अनार दर्जनों बीमार

उधर पंजा पार्टी वेन्टीलेटर पर पडी है और इधर फूल छाप पार्टी में एक अनार और दर्जनों बीमार वाली हालत बनी हुई है। लम्बे इंतजार के बाद फूल छाप पार्टी की टीम तैयार हो पाई,लेकिन कई सारी नियुक्तियां अभी बाकी है। सबसे ज्यादा नजरें शहर का विकास करने के लिए बनाए गए प्राधिकरण पर लगी है। चुनाव से पहले इन्दौरी आका के एक पट्ठे ने थोडे से दिनों के लिए प्राधिकरण की कुर्सी हासिल कर ली थी,लेकिन उनकी खुशी चार दिन की चांदनी की तरह साबित हुई। जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई,उनकी कुर्सी छिन गई। अब मोहन सरकार अपने दो साल पूरे कर चुकी है,लेकिन प्राधिकरण की कुर्सी खाली पडी हुई है।

फूल छाप में इस एक अनार के दर्जनों बीमार है। लेकिन ये अनार किसे और कब मिलेगा? कोई नहीं जानता। तब तक शहर के विकास का सवाल भी इसी तरह लटका रहेगा। शहर के कई नेता इस कुर्सी पर अपनी दावेदारी जता रहे हैैं,लेकिन उपर वालों को शहर के विकास की चिन्ता ही नहीं है। दो साल गुजर जाने के बावजूद अब तक उपर वालों ने विकास करने वाले प्राधिकरण की तरफ ध्यान नहीं दिया है। फूल छाप के नेताओं का इंतजार कब खत्म होगा,यह देखने वाली बात है।