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 Raag Ratlami Commissioner : अटके पडे हैैं शहर के कई सारे काम,एक ही साहब पर है दो दो जिम्मेदारियां/ अब खत्म होने को है फूल छाप वालों का इंतजार  

 
 

-तुषार कोठारी

रतलाम। शहर में कई काम अटके पडे है। कुछ पूरे होकर भी पूरे नही हो पा रहे हैैं। इनमें ज्यादातर काम शहर सरकार के हिस्से के हैैं। शहर सरकार इन दिनों बडी उलझन में हैैं। शहर सरकार के बडे साहब की रवानगी के बाद शहर सरकार की जिम्मेदारी जिला इंतजामिया के तीन नम्बर वाले साहब सम्हाल रहे है। इससे पहले तक उन पर शहर की कानून व्यवस्था सम्हालने की जिम्मेदारी थी। वे शहर के मजिस्ट्रेट भी थे। लेकिन जब शहर सरकार के साहब की रवानगी हुई तो शहर सरकार को सम्हालने की अतिरिक्त जिम्मेदारी इन्हे दे दी गई।

अब साहब के कन्धों पर जिम्मेदारियों के दो दो बोझ रखे हुए है। वे अपना आधा दिन जिला इंतजामिया की बिल्डिंग में बने अपने आफिस में गुजारते है.तो बाकी का आधा दिन शहर सरकार के दफ्तर में लोगों की समस्याएं सुनते हैैं। दिन तो चौबीस घण्टों का ही है,लेकिन साहब को चौबीस घण्टों में अडतालिस घण्टों का काम करना पड रहा है।

शहर में देखें,तो कई सारी सडक़ें खुदी पडी है। शहर सरकार को सम्हालने वालों ने इतना तक ध्यान नहीं रखा कि सडक़ को खोद दिया जाएगा तो इस पर से गुजरने वाले कैसे निकलेंगे? नई सडक़ बनाने के लिए पुरानी को खोदना तोडना जरुरी होता है,लेकिन पुरानी को तोडने खोदने से पहले यह तय कर लिया जाना चाहिए कि नई सडक़ कितने समय में बना ली जाएगी? शहर सरकार के जिम्मेदारों को इस बात से कोई फर्क नहीं पडता कि नई सडक़ का काम तय समय में पूरा होना चाहिए। वे तो सिर्फ इतने से खुश हो जाते है कि नई सडक़ बनने वाली है। नई सडक बनने वाली है,इसलिए पुरानी को खोदना तोडना जरुरी है। पुरानी सडक़ को तोड फोड दो,कभी ना कभी नई सडक़ तो बन ही जाएगी। जनता का क्या है? जब तक नई सडक नहीं बनेगी,जनता कोई ना कोई रास्ता तो ढूंढ ही लेगी। कस्तूरबा नगर में इस कहानी को लाइव देखा जा सकता है।

शहर सरकार के कारिन्दे सिर्फ सडक़ों पर ही कमाल नहीं करते। वे तो नालों पर बने पुल पुलियाओं को तोडने में भी कोई हिचक झिझक नहीं रखते। आनन्द कालोनी को शहर से जोडने वाली सडक पर बने नाले के पुल को शहर सरकार के कारिन्दों ने तडातड तोड डाला। पुल को इसलिए तोडा गया,ताकि यहां नया पुल बनाया जा सके। लोगों को लगा था कि पुल को तोडने के फौरन बाद में नए पुल का काम शुरु हो जाएगा। लेकिन पुल टूटे को कई दिन गुजर गए,नए पुल का काम कहीं नजर ही नहीं आ रहा है।

आनन्द कालोनी की तरफ से कालिका माता के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं और शहर के अलग अलग हिस्सों में जाने के इच्छुक लोगों को अब कई किमी का घेरा काटकर आना जाना पड रहा है। शहर सरकार का कोई बन्दा ये बताने को राजी नही है कि नए पुल का आखिर हुआ क्या? ये बनेगा भी या नहीं? बनेगा तो इसका काम कब से शुरु होगा? बस उन्होने तो पुल तोड कर अपना काम कर दिया।

अब सवाल ये है कि शहर सरकार के इन अधूरे कामों को तेजी से पूरा कराने की जिम्मेदारी कौन उठाएगा? कायदे से तो ये जिम्मेदारी शहर सरकार के बडे साहब की होती है,लेकिन बडे साहब फिलहाल सिर्फ प्रभारी है। उनकी जिम्मेदारी,शहर सरकार के नए बडे साहब के आने पर उन्हे चार्ज देने तक की है। वैसे माना तो यही जा रहा था,कि यही साहब फुल फ्लैश बडे साहब बनने वाले है,लेकिन शहर सरकार वाले महकमे के बडे अफसर और मंत्री अब तक किसी नतीजे पर ही नहीं पंहुच पा रहे है।

न सिर्फ शहर के लोग,बल्कि शहर सरकार के चुने हुए नेता भी इन्ही साहब को फुल फ्लैश बडे साहब बनते हुए देखना चाहते है,लेकिन फूल छाप पार्टी की सरकार कोई फैसला ही नहीं ले पा रही है। प्रभारी बडे साहब नींबू उछाल राजा की तरह शहर सरकार की जिम्मेदारी सम्हाले हुए है। उन्हे यह नहीं पता कि किस दिन उन्हे किसी नए अफसर को चार्ज देने को कह दिया जाएगा।

फूल छाप पार्टी सरकार में है,और शहर सरकार में भी फूल छाप का ही राज है। फैसला भी फूल छाप वालों को ही करना है,लेकिन लगता है कि भाव ताव तय नहीं हो पा रहा है। प्रभार सम्हाल रहे बडे साहब का कहना है कि उन्हे उनकी योग्यता के आधार पर जिम्मेदारी मिलेगी तो वे जरुर सम्हाल लेंगे,लेकिन भाव ताव करना उनकी फितरत नहीं है। दूसरी तरफ शहर सरकार वाले महकमे में भाव ताव के बगैर कोई काम निपट नहीं पाता। इस महकमे के मालिक इन्दौर में विराजते है। वे भी इस मामले को सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। नतीजा यह है कि शहर के कई काम अटके पडे हैैं और ये कब सुलझेंगे कोई नहीं जानता।
 

अब खत्म होने को है ये इंतजार.....

फूल छाप के तमाम नेता हैरान परेशान है। इंतजार की इंतेहा हो चुकी है। अब ये इंतजार सहा नहीं जाता। पहले कह रहे थे,कि जब तक प्रदेश के मुखिया का फैसला नहीं होगा,तब तक इंतजार करना पडेगा। अब तो प्रदेश को नया मुखिया भी मिल गया है। फिर कहने लगे कि बस अब जल्दी ही तय कर लिया जाएगा,बस कोर कमेटी की मीटींग हो जाए। अब तो मीटींग भी हो चुकी है। अब क्या बाकी बचा है?

ये सारे वो सवाल है,जो इन दिनों फूल छाप वाले तमाम नेता पूछ रहे हैैं। सभी को सिर्फ एक ही इंतजार है कि जिले की टीम घोषित हो जाए। जिले के मुखिया,हर किसी को मुस्कुरा मुस्कुरा के टाले जा रहे है। हर किसी को उम्मीद बन्धी हुई है कि उसे महत्वपूर्ण स्थान मिलने वाला है। अब किसको क्या मिलेगा ये तो जिम्मेदारी देने वालों को ही पता होगा,लेकिन इसकी घोषणा कब होगी ये बडा सवाल है। नेताओं से अब इंतजार सहा नहीं जा रहा है। लेकिन मजबूरी है,जब तक घोषणा नहीं हो जाती इंतजार तो करना पडेगा। 

वैसे अन्दर की बात ये है कि  ये इंतजार बस अब खत्म ही होने को है। सारे सांसद विधायक अपने पसन्दीदा लोगों के नाम भी दे चुके है। आजादी का दिन आते आते नेताओं को इस इंतजार से भी आजादी मिलने की पूरी उम्मीद है।

वर्दी वालों की दादागिरी....

वर्दी वालों की दादागिरी आम लोगों पर तो चलती ही है,कई बार इस दादागिरी का शिकार दूसरे लोग भी बन जाते है। वर्दी के रौब में वर्दी वाले भूल जाते है कि क्या सही है और क्या गलत। इस बार एक वर्दी वाले दारोगा ने सीधे शहर के खबरची को अपना शिकार बना लिया। खबरची ने एक ढाबे वाले के खराब खाने की शिकायत क्या कर दी,खबरची ने ढाबे वाले के साथ साथ दारोगा जी को भी नाराज कर दिया। 

सीधी सी बात है,ढाबे वाला,दारोगा जी के पीने खाने का सारा इंतजाम करता था। अब ऐसे ढाबे वाले के खिलाफ कोई शिकायत करेगा तो दारोगा जी कैसे बर्दाश्त करते। दारोगा जी ने आव देखा ना ताव,सीधे खबरची के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मारा। झूठे मामले में जब खबरची को उलझाया गया,तो शहर के तमाम खबरची इकट्ठा हो गए और जा पंहुचे सीधे कप्तान के पास। कप्तान ने भी जब मामला देखा तो उन्हे समझ में आ गया कि दारोगा जी ने बेवजह ही अपनी दादागिरी दिखाई है। आखिरकार दारोगा जी को लाइन में जमा कर दिया गया और झूठी शिकायत करने के मामले में ढाबे वाले के खिलाफ भी कार्रवाई की गई।