रास्ते को लेकर हुए विवाद में एससीएसटी एक्ट लगाना उचित नहीं,विशेष न्यायाधीश ने दोषमुक्त किया दो भाईयों और उनके पिता को
रतलाम,04 मई (इ खबरटुडे)। अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के विशेष न्यायाधीश रवीन्द्र प्रताप सिंह चुण्डावत ने गत दिनों पारित अपने एक आदेश में डेलनपुर निवासी ओमप्रकाश जाट और उसके भाई व पिता को एजाजजा एक्ट के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। विद्वान न्यायाधीश श्री चुण्डावत ने अपने आदेश में कहा कि यदि फरियादी और आरोपी के बीच विवाद जातिगत आधार से नहीं है तो ऐसी स्थिति में अजाजजा एक्ट के प्रावधान आकर्षित नहीं होते।
प्रकरण में अभियुक्त ओमप्रकाश जाट,उसके भाई भरतलाल और पिता गोवर्धनलाल पर आरोप था कि उन्होने विगत 22 सितम्बर 2020 को डेलनपुर निवासी मोतीलाल और उसके भाई विनोद बलाई को जातिसूचक शब्द बोलकर अपमानित किया और उनके साथ मारपीट की। इसके साथ ही उन्होने फरियादी मोतीलाल और उसके भाई को जान से मारने की धमकी भी दी थी। फरियादी मोतीलाल की रिपोर्ट पर पुलिस थाना औद्योगिक क्षेत्र पर अभियुक्तगण ओमप्रकाश,भरतलाल और उनके पिता गोवर्धनलाल जाट के विरुद्ध भादवि की धारा 294,323,324,506 और अजाजजा एक्ट के तहत आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया गया था।
अभियुक्त गण के अभिभाषक प्रकाशराव पंवार ने बताया कि प्रकरण के विचारण के दौरान बचाव पक्ष ने साक्षियों के कूट परीक्षण के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि अभियुक्तगण और फरियादी पक्ष के बीच रास्ते को लेकर पूर्व से विवाद चल रहा था। फरियादी का खेत अभियुक्तगण के खेत से लगा हुआ है और फरियादी के खेत में जाने का रास्ता अभियुक्तगण के खेत में से होकर जाता है।
घटना दिनांक 22 सितम्बर 2020 को दोपहर में फरियादी ने जब जबर्दस्ती अभियुक्तगण के खेत में से जाने का प्रयास किया तो अभियुक्तगण ने उसे रोका और इसी बात को लेकर दोनो पक्षों में विवाद हुआ। फरियादी बलाई जाति का होने के कारण उसने अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया था कि अभियुक्तगण ने विवाद के दौरान उसे बलïट्टे कहकर जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया था।
बचाव पक्ष के अभिभाषक प्रकाशराव पंवार ने साक्षियों के कूट परीक्षण के माध्यम से यह तथ्य स्थापित किया कि अभियुक्तगण की निजी भूमि में से फरियादी के जाने के कारण विवाद हुआ था। अभियुक्तगण को अपनी निजी भूमि में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकाकर है।
विद्वान न्यायाधीश रवीन्द्र प्रताप सिंह चुण्डावत ने अपने विस्तृत निर्णय में यह स्पष्ट किया किअभियुक्तगण और फरियादी के बीच हुए विवाद का कारण जातिगत ना होकर रास्ते का विवाद था,ऐसी स्थिति में उन पर अजाजजा एक्ट के आरोप प्रमाणित नहीं माने जा सकते। विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि अभियुक्तगण की निजी भूमि में अनाधिकार प्रवेश करने पर उन्हे रोकने का अधिकार प्राप्त है। ऐसी स्थिति में उनके द्वारा फरियादी गण को कारित की गई चोटों से और जान से मारने की धमकी दिए जाने के आरोप से भी उन्हे दोषमुक्त किया जाता है।
प्रकरण में अभियुक्तगण की ओर से सफल पैरवी प्रकाशराव पंवार और उनके सहयोगी नीलेश शर्मा द्वारा की गई।