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 पुलिस थानों में अस्सी प्रतिशत अपराध सिर्फ शराब पीने और बेचने के,अन्य अपराधों पर पुलिस का ध्यान नहीं

 
 

रतलाम,29 अप्रैल (इ खबरटुडे)। जिले में दर्ज होने वाले अपराधों में लगभग अस्सी प्रतिशत अपराध सिर्फ सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने या शराब के अवैध विक्रय से जुडे है। जबकि मारपीट लडाई झगडे और चोरी चकारी जैसे मामले सिर्फ बीस प्रतिशत ही है। इसे दूसरे शब्दों में इस तरह भी कहा जा सकता है कि पुलिस विभाग का पूरा ध्यान सिर्फ शराब से जुडे मामलों पर है। दूसरे अपराधों की ओर पुलिस का ध्यान ही नहीं है।

अपराधों के इन आंकडों का खुलासा पुलिस द्वारा जारी की जाने वाली दैनिक अपराधों की रिपोर्ट से हुआ है। पुलिस विभाग द्वारा प्रतिदिन मीडीयाकर्मियों के लिए जिले के विभिन्न थानों पर दर्ज हुए अपराधों की दैनिक रिपोर्ट प्रेषित की जाती है। कुछ वर्षों पूर्व तक जिले के थानों पर दर्ज होने वाले प्रत्येक अपराध का विवरण इस रिपोर्ट में रहा करता था। चोरी,लूट,हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों का विवरण भी इस रिपोर्ट में दर्ज किया जाता था। पुलिस विभाग द्वारा यही रिपोर्ट प्रतिदिन पुलिस मुख्यालय भोपाल को भी प्रेषित की जाती है।

लेकिन पिछले कुछ समय से मीडीया को जारी की जाने वाली दैनिक रिपोर्ट को सेंसर किया जाने लगा है। वर्तमान में मीडीयाकर्मियों को जारी की जाने वाली दैनिक रिपोर्ट में गंभीर अपराधों के विवरण हटा दिए जाते है,ताकि गंभीर अपराधों की खबरें प्रकाश में ना आ पाए। वर्तमान में गंभीर अपराधों की जो भी खबरें मीडीया वालों को मिलती है,वह उन्ही की मेहनत की वजह से मिल पाती है।

मीडीयाकर्मियों को जारी की जाने वाली सेंसर की गई दैनिक रिपोर्ट का विश्लेषण यह बताता है कि जिले में सर्वाधिक अपराध सिर्फ शराब पीने या अवैध रुप से शराब का विक्रय किए जाने से सम्बन्धित है। पुलिस विभाग द्वारा 29 अप्रैल को जारी की गई दैनिक रिपोर्ट का विश्लेषण बताता है कि कई थाने तो ऐसे है जहां चौबीस घण्टों के दौरान शराब से सम्बन्धित अपराध के अलावा दूसरा कोई अपराध ही नहीं हुआ। यही नहीं कई थाने ऐसे है जहां शराब के अवैध विक्रय के तो मामले दर्ज हुए लेकिन शराब पीने का कोई मामला नहीं आया।

पुलिस द्वारा जारी दैनिक रिपोर्ट को देखें तो बीतें चौबीस घण्टों के दौरान जिले के कुल बीस पुलिस थानों में कुल एक सौ दस आपराधिक प्रकरण दर्ज हुए। इनमें से भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के अपराध मात्र तेईस है। थानों में बीते चौबीस घण्टों में सïट्टे के तीन प्रकरण और एक प्रकरण आम्र्स एक्ट का भी दर्ज हुआ है। 

लेकिन आबकारी अधिनियम (एक्साइज एक्ट) के प्रकरण देखें तो बीते चौबीस घण्टों में जिले में आबकारी अधिनियम के कुल 83 प्रकरण दर्ज किए गए है। इन 83 प्रकरणों में दो प्रकार के प्रकरण है। आबकारी अधिनियम की धारा 34 के तहत और धारा 36(बी) के तहत मामले दर्ज किए गए है। आबकारी अधिनियम की धारा 34 शराब के अवैध विक्रय परिवहन इत्यादि से सम्बन्धित है,जबकि धारा 36(बी) सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने से सम्बन्धित है।

आबकारी अधिनियम के तहत दर्ज किए गए मामलों को देखें तो इन 83 मामलों में से सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने के प्रकरण कुल 52 है,जबकि शराब के अवैध विक्रय और परिवहन के मामले मात्र 31 है। शराब के अवैध विक्रय और परिवहन के भी अधिकांश मामले जिले के आदिवासी अंचलों के है,जहां पुलिस ने कच्ची शराब बनाने के मामले में आदिवासियों के विरुद्ध प्रकरण बनाए हैै।

इन प्रकरणों को देखा जाए तो इसमें भी जमा जमाया पैटर्न नजर आता है। जिले के शिवगढ थाने पर आबकारी अधिनियम की धारा 34 के तीन प्रकरण दर्ज किए गए है। मजेदार बात ये है कि तीनों ही आरोपियों से पुलिस ने 8-8 लीटर कच्ची शराब जब्त की है। इसी तरह रिंगनोद पुलिस ने भी एक आरोपी को पकडा तो उसके पास से भी ठीक 8 लीटर कच्ची शराब ही बरामद हुई,ना कम ना ज्यादा। 

लेकिन ताल पुलिस ने जिन दो आरोपियों को पकडा उन दोनो के पास से पांच पांच लीटर कच्ची शराब बरामद हुई। ताल पुलिस द्वारा जब्त की गई इस कच्ची शराब की कीमतों में अन्तर है। एक आरोपी से जब्त की गई कच्ची शराब की कीमत पांच सो रुपए है,जबकि दूसरे आरोपी की पाच लीटर कच्ची शराब मात्र ढाई सौ रुपए की है।

जिले के तमाम आदिवासी अंचलों में इसी तरह कहीं किसी आदिवासी से आठ लीटर तो किसी से पांच या दस लीटर कच्ची शराब बरामद की गई है। इसके विपरित जिले के कुल बीस थानों में से नौ थाने ऐसे है,जिनमें बीतें चौबीस घण्टों में आबकारी अधिनियम के अलावा कोई दूसरा अपराध दर्ज नहीं हुआ। ना किसी का कोई लडाई झगडा हुआ,ना कहीं चोरी हुई और ना अन्य कोई अपराध हुआ। इन नौ थानों में अपराध हुआ तो सिर्फ यही हुआ कि या तो अवैध शराब बेची गई या फिर किसी व्यक्ति ने सार्वजनिक स्थान पर बैठकर शराब पी।

जिले के कुल बीस थानों में दस थाने ऐसे है जहां शराब के अवैध विक्रय के मामले तो दर्ज हुए लेकिन सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। इसी तरह सात थाने ऐसे है,जहां सार्वजनिक स्थान पर बैठकर शराब पीने के मामले दर्ज हुए,लेकिन अवैध विक्रय की एक बी घटना नहीं हुई। केवल तीन थाने ऐसे है,जहां दोनो तरह के मामले दर्ज हुए। जिले के शहरी क्षेत्रों जैसे रतलाम और जावरा में सार्वजनिक स्थान पर पीने के मामलों की भरमार रही।

आंकडो से उठे सवाल

खबर में दिए गए आंकडे 29 अप्रैल की दैनिक रिपोर्ट के आंकडे है,लेकिन यह पैटर्न प्रतिदिन की दैनिक रिपोर्ट में देखा जा सकता है। पुलिस द्वारा जारी की जाने वाले प्रत्येक दैनिक रिपोर्ट में आबकारी एक्ट की धारा 34 और 36(बी)के अपराधों की ही भरमार होती है। गंभीर अपराधों को तो पुलिस पहले ही सैैंसर कर देती है। 

अगर इन गंभीर अपराधो में से पुलिस किसी अपराध को सुलझा लेती है तो फिर जरुर मीडीया को इस अपराध के सम्बन्ध में जानकारी दे दी जाती है। उदाहरण के लिए अगर कहीं चोरी हुई हे तो उसकी जानकारी दैनिक रिपोर्ट में से हटा दी जाती है,लेकिन अगर चोर कपड लिए जाते है तो फिर फौरन पूरी खबर मीडीया को जारी कर दी जाती है।

पुलिस की दैनिक रिपोर्ट में शराब से सम्बन्धित अपराधों में इतनी वृद्धि यही दर्शाती है कि पुलिस बल की सतर्कता और सक्रियता दिखाने के लिए इस तरह के प्रकरण दर्ज किए जा रहे है। सामान्य लोग और मीडीयाकर्मियों के साथ साथ वरिष्ठ अधिकारियों को भी यह प्रतीत होना चाहिए कि पुलिस तत्परता से काम कर रही है और इतनी संख्या में आपराधिक प्रकरण दर्ज किए जा रहे हैैं।

अधिकारियों को टार्गेट और फर्जी मामले

एक तरफ तो मध्यप्रदेश सरकार आदिवासी अंचलों में महुए से बनाई जाने वाली पारंपरिक मदिरा को हेरिटेज वाइन के रुप में प्रमोट कर रही है और दूसरी तरफ जिले के आदिवासी अंचलो में पारंपरिक रुप में अपने घर में महुए की शराब बनाने वाले कई आदिवासियों के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज किए जा रहे है।

इतना ही नहीं पुलिस के तमाम अधिकारियों को आबकारी अधिनियम की धारा 36(बी) के अधिकाधिक प्रकरण दर्ज करने के टार्गेट दिए जा रहे है। ये टार्गेट पूरा नहीं करने पर अधिकारियों को सजाएं दी जाती है। इसी डर के चलते थानों पर तैनात पुलिस अधिकारी येन केन प्रकारेण 36(बी) के प्रकरण बनानें में जुटे रहते है। इसका नतीजा यह है कि अपने निजी खेत में बने अपने कमरे या झोपडी में बैठकर शराब पीने वालों को भी इन प्रकरणों को झेलना पडता है।

हांलाकि उक्त दोनो ही धाराओ में गंभीर सजा का प्रावधान नहीं है और दोनो ही धाराएं जमानती धाराएं है,इसलिए पकडे गए आरोपियों को थाने से ही जमानत देकर छोड दिया जाता है। कुछ मामलों में पुलिस अधिकारी इस धरपकड की आड में मोटी कमाई भी कर लेते है। कई लोगों के खिलाफ झूठे प्रकरण बना दिए जाते है और चूंकि पकडे गए व्यक्ति को थाने से ही छोड दिया जाता है तो वह व्यक्ति इसी बात से संतोष कर लेता है कि उसे थाने से ही छोड दिया गया। 

कुल मिलाकर दैनिक रिपोर्ट में पुलिस अधिकारियों की सक्रियता और तत्परता को आपराधिक प्रकरणों की संख्या के जरिये साबित करने के चक्कर में झूठे प्रकरण बनाने का ये खेल लगातार जारी है और दूसरी तरफ चोरी लूट जैसे गंभीर अपराधों को छुपाने की कोशिशें भी बदस्तुर जारी है।