{"vars":{"id": "115716:4925"}}

टैक्स-फ्री साम्राज्य: रतलाम के फ्रीगंज से चल रहा करोड़ों का खेल

 
 

रतलाम, 12 अक्टूबर (इ खबर टुडे)। रतलाम और मंदसौर में टैक्स चोरी का एक संगठित नेटवर्क सक्रिय है, जो सरकार को हर साल करीब 97 करोड़ के राजस्व से वंचित कर रहा है। गुजरात के राजकोट और अहमदाबाद से रोज़ाना बिना बिल सबमर्सिबल और ओपन वेल पंप रतलाम और मंदसौर पहुँचाए जा रहे हैं। इस गोरखधंधे में फ्रीगंज के बड़े कारोबारी, रतलाम–मंदसौर के ट्रांसपोर्टर और भ्रष्ट जीएसटी अधिकारी—तीनों बराबर के हिस्सेदार हैं।

अभी पिछले महीने फ्रीगंज के दो प्रभावशाली व्यापारियों के यहाँ जीएसटी विभाग की छापेमारी हुई थी। लेकिन उस कार्रवाई के बाद भी काले कारोबार का यह नेटवर्क न तो टूटा, न धीमा पड़ा—बल्कि और मज़बूत हो गया। रतलाम के फ्रीगंज क्षेत्र में आज भी हर रोज बिना बिल के सैकड़ों पंप और पार्ट्स पहुँच रहे हैं, जो दिनभर स्थानीय गोदामों और दुकानों में बिखर जाते हैं, और बिना किसी रिकॉर्ड के बेचे जाते हैं।।

टैक्स चोरी का अनुमान — हर साल 97 करोड़ का नुकसान
इ ख़बर टुडे की पड़ताल के बाद अनुमानित गणना के अनुसार, रतलाम–मंदसौर के बाजारों में हर साल लगभग 1.5 लाख सबमर्सिबल और ओपन वेल पंप बेचे जाते हैं। इनमें से करीब 60% बिक्री बिना बिल के की जाती है। एक पंप की औसत कीमत ₹30,000 और उस पर लागू 18% जीएसटी दर को मिलाकर देखें, तो सरकार को हर साल लगभग 97 करोड़ के राजस्व से वंचित होना पड़ रहा है। यानी जो पैसा सार्वजनिक विकास योजनाओं में जाना चाहिए था, वह मंदसौर सहित रतलाम के फ्रीगंज क्षेत्र और ट्रांसपोर्ट लॉबी के इस काले नेटवर्क में समा रहा है।

मिलीभगत आधारित व्यापार मॉडल
इ ख़बर टुडे की खोजबीन से यह भी सामने आया कि यह पूरा सिस्टम सिर्फ चोरी तक सीमित नहीं है, बल्कि एक मिलीभगत आधारित व्यापार मॉडल में बदल चुका है—जहाँ ट्रांसपोर्टर अवैध माल को वैध दिखाने के लिए फैब्रिकेटेड बिल तैयार करते हैं, कारोबारी इन पंपों को बिना टैक्स के बेचते हैं, और भ्रष्ट अधिकारी अपनी चुप्पी का ‘मासिक मूल्य’ वसूलते हैं।

इन सबके केंद्र में फ्रीगंज क्षेत्र की एक प्राइवेट लिमिटेड फर्म इस चैन की अहम कड़ी मानी जा रही है, जो शहर के सबसे बड़े कृषि उपकरण सप्लायर के रूप में जानी जाती है। कागज़ों पर यह फर्म हर महीने लाखों का टैक्स अदा करती दिखाई देती है, लेकिन जांच से पता चलता है कि इसकी सप्लाई का एक बड़ा हिस्सा “ऑफ द रिकॉर्ड” यानी बिना बिल के चल रहा है। यही फर्म अन्य कारोबारियों के लिए एक “सुरक्षित कवच” बन गई है —जहाँ उसके नाम से तैयार किए गए बिलों पर किसी को शक नहीं होता।

फ्रीगंज: कृषि उपकरणों के नाम पर टैक्स चोरी का अड्डा
रतलाम का फ्रीगंज इलाका अब सिर्फ कृषि उपकरणों का बाजार नहीं रहा —यहाँ के कई गोदाम और दुकानें अब बिना बिल माल के ट्रांजिट प्वाइंट बन चुका हैं। रोज़ाना गुजरात से आने वाला माल यहाँ उतरता है और शहर–कस्बों में फैल जाता है। काग़ज़ों में यह सब कुछ वैध दिखाई देता है —बिल, डिस्पैच नंबर, और जीएसटी विवरण तक दर्ज होते हैं, पर असलियत में यह सब फैब्रिकेटेड दस्तावेज़ों का खेल है, जो सरकारी रिकॉर्ड से ट्रेस नहीं होते और किसी वैध एंट्री से मेल नहीं खाते।

पिछले महीने जिन दो व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर जीएसटी विभाग ने छापेमारी की, वे छोटे व्यापारी नहीं बल्कि इस पूरे नेटवर्क के स्थायी और ताकतवर खिलाड़ी हैं। छापेमारी के दौरान उनके गोदामों से बिना बिल माल मिला, लेकिन कुछ ही दिनों में बाजार फिर सामान्य हो गया। इन व्यापारियों ने अब टैक्स चोरी की कमाई को रियल एस्टेट और कॉलोनाइज़िंग में लगा दिया है। आज फ्रीगंज के यही कारोबारी शहर की नई कॉलोनियों के डेवलपर बन गए हैं।

कच्ची चिट्ठी और कोडवर्ड सिस्टम से गुजरता माल
इ ख़बर टुडे की टीम ने पाया कि रात में चलने वाली बसों में प्रतिदिन 100 से 150 पंप गुजरात से बिना बिल के रतलाम और मंदसौर पहुँच रहे हैं। पूरा लेन-देन कच्ची चिट्ठियों और कोडवर्ड सिस्टम पर चलता है।

यह पर्चियाँ असली इनवॉइस का विकल्प बन चुकी हैं —इनमें माल, ग्राहक और रकम का संकेतात्मक कोड दर्ज होता है। ट्रेवल्स–ट्रांसपोर्टर और व्यापारी दोनों के बीच मौन सहमति है कि “बिल बाद में देखा जाएगा, माल पहले पहुँच जाए।”

लेकिन यही काम बड़े पैमाने पर अब ट्रांसपोर्ट ट्रकों के माध्यम से हो रहा है। रोज़ाना 500 से 700 सबमर्सिबल और ओपन वेल पंप कच्ची चिट्ठियों और फैब्रिकेटेड बिलों के ज़रिए रतलाम–मंदसौर पहुँचाए जा रहे हैं। ट्रेवल्स बसों में बिल नहीं होते — वहाँ सिर्फ कच्ची पर्चियाँ होती हैं, जबकि ट्रकों में वही माल वैध दिखाने के लिए फर्जी कंप्यूटराइज्ड बिल लगाए जाते हैं। इसी के साथ कच्ची चिट्ठियों भी होती है, जो कि ट्रक ड्राइवर को नहीं देते हुए व्हाट्सएप या अन्य जरिए से ट्रांसपोर्ट के डिलीवरी ऑफिस में पहुंचाई जाती है।

फैब्रिकेटेड बिल — ट्रांसपोर्टर का ‘कानूनी मुखौटा’, कारोबारी अनजाने मोहरे
रतलाम–मंदसौर के इस नेटवर्क में सबसे अहम भूमिका दो ट्रांसपोर्टरों की है, इसमें एक ट्रांसपोर्टर मदसौर का है, जबकि दूसरा रतलाम के कनेरी रोड पर स्थापित है। ट्रक रवाना होने से पहले ट्रांसपोर्टर अपने कंप्यूटर पर किसी वैध फर्म का जीएसटी नंबर, पता और लोगो डालकर नकली बिल तैयार कर लेते हैं।

यह बिल पेशेवर ढंग से प्रिंट किया जाता है ताकि हर अधिकारी को यह दस्तावेज़ असली लगे। माल की कीमत जानबूझकर 50,000 से नीचे रखी जाती है ताकि ई-वे बिल की अनिवार्यता से बचा जा सके। जब ट्रक सड़क पर रोका जाता है, तो अधिकारी जीएसटी नंबर देखकर संतुष्ट हो जाते हैं और वाहन छोड़ देते हैं।

माल गंतव्य पर पहुँचने के बाद यह रास्ते का बिल फाड़ दिया जाता है, और माल सीधे रतलाम के फ्रीगंज व मंदसौर शहर के गोदामों में चला जाता है।
सबसे अहम बात यह है कि जिन फर्मों के नाम और जीएसटी नंबर इन बिलों में इस्तेमाल होते हैं, उन्हें खुद इस बात की जानकारी तक नहीं रहती।

उन कारोबारियों का माल नहीं होता, पर उनका नाम और जीएसटी विवरण इस्तेमाल किया जाता है, ताकि असली कारोबारी और खरीदार छिपे रहें। अगर ट्रक कभी पकड़ा भी जाए तो पेनल्टी ट्रांसपोर्ट या ट्रेवल्स कंपनी या फिर ट्रांसपोर्टर के नाम पर लगती है।

असल सप्लायर या व्यापारी हर बार सुरक्षित बच निकलते हैं। सूत्रों के अनुसार इस “फर्जी बिलिंग नेटवर्क” से हर महीने ट्रांसपोर्टर को लाखों रुपये की अवैध कमाई होती है, जिसका एक बड़ा हिस्सा जीएसटी अधिकारियों तक “हफ्ते” के रूप में पहुँचता है। इस तरह यह पूरा सिस्टम अब वैधता की आड़ में अवैध कारोबार का जाल बन चुका है, जहाँ हर परत कानूनी दिखती है लेकिन असलियत पूरी तरह काली है।

कॉरपोरेट मुखौटा: फ्रीगंज की प्राइवेट लिमिटेड फर्म की भूमिका
फ्रीगंज की यह प्राइवेट लिमिटेड फर्म स्थानीय बाजार में “सबसे भरोसेमंद सप्लायर” के रूप में प्रसिद्ध है, पर इसकी भूमिका इस पूरे नेटवर्क की रीढ़ बन चुकी है। ट्रांसपोर्टर अक्सर इसी फर्म के नाम पर बिल तैयार करते हैं, क्योंकि उसके नाम और रजिस्ट्रेशन नंबर पर किसी अधिकारी को संदेह नहीं होता। कारोबारि सूत्रों का कहना है कि “अगर बिल इस फर्म के नाम से है, तो माल वैध मान लिया जाता है।”

यही कारण है कि यह फर्म अब कानूनी आवरण में छिपी गैरकानूनी ढाल बन चुकी है। बाज़ार के सूत्र बताते हैं कि इसकी वार्षिक बिक्री कागज़ों पर जितनी दिखाई देती है, वास्तविक लेन-देन उससे कई गुना अधिक है। छापेमारी की कार्यवाहियों के बावजूद इस फर्म के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है —क्योंकि यह “कॉरपोरेट टैक्स कम्प्लायंस” की आड़ में हर नियम को अपने हिसाब से मोड़ने की क्षमता रखती है।

संपत्ति और सवाल: दो शहरों की समान कहानी
रतलाम और मंदसौर के ये कारोबारी तीस वर्ष पहले छोटे स्तर के रिटेल व्यापारी थे। आज थोक कारोबारी के साथ उनके पास गोदाम, ट्रक, कॉलोनियाँ और कृषि भूमि है। कई अब “कॉलोनाइज़र” के रूप में सक्रिय हैं। अगर इन दोनों जिलों के कारोबारियों सहित फ्रीगंज स्थित प्राइवेट लिमिटेड फर्म का संयुक्त फॉरेंसिक ऑडिट कराया जाए, तो टैक्स रिटर्न, संपत्ति निवेश और बैंकिंग ट्रांजेक्शन में असंख्य विसंगतियाँ सामने आएंगी।

एक वरिष्ठ कर विशेषज्ञ का कहना है —“रतलाम और मंदसौर का यह नेटवर्क एक-दूसरे का दर्पण है। अगर एक पर कार्रवाई होती है तो दूसरा ढह जाएगा, इसलिए दोनों को एक साथ देखना ज़रूरी है।”

वैधता की आड़ में काला कारोबार
इ ख़बर टुडे की पड़ताल यह स्पष्ट करती है कि रतलाम–मंदसौर में टैक्स चोरी का यह संगठित नेटवर्क अब व्यक्तिगत गलती का मामला नहीं रहा — यह एक क्षेत्रीय, संगठन-आधारित व्यवस्था में बदल चुका है, जहाँ ट्रांसपोर्टर, कारोबारी और कुछ अधिकारी मिलकर राजस्व को लीक कर रहे हैं।

यह केवल टैक्स चोरी नहीं, बल्कि उस भ्रष्ट तंत्र का प्रमाण है जो अब वैधता की भाषा बोलता है। फ्रीगंज की गलियों और मंदसौर के गोदामों में यह कारोबार आज भी उसी रफ्तार से चल रहा है — काग़ज़ पर सब वैध, असलियत में सब काला। सरकारी राजस्व की अनुमानित हानि लगभग ₹97 करोड़ सालाना आँकी गई है, जो आगे की आधिकारिक या फॉरेंसिक जाँच के बाद और स्पष्ट हो सकती है।