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तीस वर्षों से चली आ रही कला, टीकमगढ़ में बन रही भव्य दुर्गा प्रतिमाएँ

 

Tikamgarh News: शहर में शारदीय नवरात्र की तैयारियाँ जोरों पर हैं और इस बार पंडालों में बड़ी व आकर्षक दुर्गा प्रतिमाएँ स्थापित की जा रही हैं। पिछले कई दशकों से पन्ना के मूर्तिकार टीकमगढ़ आकर इन प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे हैं और उनकी पारंपरिक बंगाली शैली व कुशलता के कारण समितियाँ उन्हीं को पसंद करती हैं।

किसान-शिल्प समूहों से आए कलाकारों का कहना है कि वे कई वर्षों से यहाँ काम कर रहे हैं और इस शिल्प ने धीरे-धीरे स्थानीय रंग-ढंग में अपना स्थान बनाया है। शुरुआती दौर में बंगाली छाप ज़्यादा थी, पर अब समितियों की मांग और पोस्टरों के अनुसार डिज़ाइन में विविधता आ गई है और अधिकांश प्रतिमाएँ ऑर्डर के आधार पर बनती हैं।

मिट्टी, रंग तथा सजावटी सामग्री की कीमतों में हालिया वृद्धि ने निर्माण की लागत बढ़ा दी है। कलाकार बताते हैं कि कच्चे माल की बढ़ोतरी, परिवहन व्यय और मजदूरी बढ़ने से अब प्रतिमा निर्माण पर पहले से अधिक खर्च आ रहा है और इसका असर आयोजनों के बजट पर पड़ रहा है। इसके बावजूद कई समितियाँ गुणवत्ता पर समझौता किए बिना प्रदर्शन के लिये बड़ा निवेश कर रही हैं।

इस बार कई पंडालों में ऊँची प्रतिमाएँ लगाने की योजना है। पुरानी तहरी में शेर पर विराजमान माँ दुर्गा लगभग दस फुट ऊँची रहेगी, जो शहर की सबसे बड़ी प्रतिमाओं में शुमार होगी। खरगापुर व आसपास के स्थानों के लिये आठ फुट के आसपास प्रतिमाएँ तैयार की जा रही हैं और कुछ स्थानों पर नौ फुट तक की विशेष रचनाएँ भी बन रही हैं ताकि दर्शकों को नया अनुभव मिल सके।

समितियों और मूर्तिकारों का समन्वय अब बेहतर है; प्रतिमाओं की बुकिंग पहले से हो चुकी है और रंग-रोगन का कार्य तेज़ी से चल रहा है। प्रत्यक्ष तौर पर प्रदर्शनी व कार्यशालाएँ आयोजित होंगी। युवा स्वयंसेवक सजावट व व्यवस्थाओं में मदद कर रहे हैं, जबकि वरिष्ठ कलाकार अंतिम निखार पर ध्यान दे रहे हैं।

शहर में उत्सव का माहौल पहले ही दिखने लगा है; बाजारों में सजावट, कपड़े और पूजा-सामग्री की माँग बढ़ गई है। आयोजक उम्मीद जताते हैं कि इस वर्ष के पंडाल न सिर्फ धार्मिक भावना जगाएँगे बल्कि स्थानीय शिल्प की कला को भी नई पहचान देंगे।