खरेड़ा माता और जटाशंकर किले की पावन धरती: भिलोनी पंचायत की कहानी
Damoh News: मड़ियादो के पास बसी भिलोनी ग्राम पंचायत धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व से परिपूर्ण है। यहां का प्रमुख केंद्र खरेड़ा माता का मंदिर है, जहां चैत्र नवरात्र पर दो दिन का बड़ा मेला लगता है। इस मेले में माता की सवारी निकली जाती है और आसपास के लोग लंबे समय से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं; ग्रामवासी बताते हैं कि यह आयोजन सौ साल से अधिक पुराना है। खरेड़ा माता की देन से ही भिलोनी की पहचान बनी है और यह मेला पड़ोसी इलाकों में भी चर्चित है।
गांव के समीप जटाशंकर नामक प्राचीन किला स्थित है, जिसे पुरातत्व विभाग की देखरेख में संरक्षित रखा गया है। किले के चारों ओर फैली हरियाली और पास से बहने वाली जंगली नाली प्राकृतिक सुंदरता बढ़ाती है। किले के अंदर दो मुख्य चौक हैं जिन्हें स्थानीय तौर पर बुंदेली और महरठी कहा जाता है। वहीं एक पुरानी बावड़ी भी है, जिसमें कई स्तर और कक्ष हैं जो इतिहास-प्रेमियों की रुचि जगाते हैं। ये सभी खासियतें मिलकर किले को पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण बनाती हैं।
भिलोनी का वातावरण जंगल से सटा होने के कारण भी आकर्षक है, पर कुछ चुनौतियां भी हैं—लाल मुंह वाले बंदर कभी-कभी आगंतुकों को परेशान कर लेते हैं और उनका सामान छीन लेते हैं। इसके बावजूद सिद्ध स्थल झारखंडी में श्रद्धालुओं का आना-जाना निरंतर बना रहता है। एक रोचक तथ्य यह है कि यहां पानी की उपलब्धता साल भर बनी रहती है; गर्मियों में भी एक चट्टान से पानी रिसता है जिसे स्थानीय लोग आस्था का प्रतीक मानते हैं।
पंचायत का छोटा-सा लेखा-जोखा बताता है कि यहां लगभग तीन हज़ार लोग रहते हैं और साक्षरता दर लगभग पचहत्तर प्रतिशत है। जिला मुख्यालय से दूरी करीब सत्तर किलोमीटर है और कनेक्टिविटी मुख्य रूप से सड़क मार्ग के जरिए है। ग्रामीणों की आय का प्रमुख स्रोत कृषि और मजदूरी है; क्षेत्र के अधिकांश परिवार खेती पर निर्भर हैं और उपलब्ध पानी के कारण खरीफ व रबी दोनों फसलें उगाई जाती हैं। गांव में कुशवाहा समुदाय की संख्या ज्यादा है और शिक्षा व प्राथमिक स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं—माध्यमिक विद्यालय और उप-स्वास्थ्य केंद्र—उपलब्ध हैं।
स्थानीय लोगों का जीवन साधारण है, फिर भी सामुदायिक मेल-जोल और त्योहारों की रौनक ने भिलोनी को सांस्कृतिक तौर पर समृद्ध बनाया है। सदा याद रखा जाएगा।